वानप्रस्थ संस्था में “रिमोट सेंसिंग एवं उसके उपयोग” पर व्याख्यान का आयोजन

हिसार – आज वानप्रस्थ सीनियर सिटीज़न क्लब में रिमोट सेंसिंग और उसके उपयोग” पर हरियाणा स्पेस एप्लीकेशन सेंटर ( हरसैक) से सेवा निवृत मुख्य वैज्ञानिक डा: रमेश हूडा ने व्याखान दिया। क्लब के महासचिव ने डा: जे. के. डाँग ने कहा कि रिमोट सेंसिंग एक तकनीक है जिसके द्वारा किसी वस्तु या घटना के बारे में जानकारी बिना उससे कोई भौतिक संपर्क बनाए हासिल की जा सकती है ।

मंच संचालन करते हुए भूतपूर्व प्रो: डा पुष्पा खरब ने कहा कि आज के मुख्य वक्ता डा: रमेश हूडा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर के वैज्ञानिक हैं और उन्हें कई बार रिमोट सेंसिंग में उत्कृष्ट कार्य के लिए सम्मानित किया जा चुका है । उन्होंने अपने अथक प्रयास से हरसैक को भारत के नक़्शे पर ला दिया है।

डा: रमेश हूडा ने अपने व्याखान में बताया कि अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी एवं इसके उपयोग के क्षेत्र में भारत विश्व में अग्रणी देशों में से एक बनकर उभरा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अपने स्वयं के उपग्रहों के निर्माण एवं प्रक्षेपण की क्षमताएं विकसित की हैं। धरती व अन्य संबंधित विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए भारत ने आईआरएस, रिसोर्ससैट, कार्टोसैट, ओशनसैट आदि जैसे अनेक रिमोट सेंसिंग उपग्रह प्रक्षेपित किए हैं। इन उपग्रहों से प्राप्त चित्रों का उपयोग भारत के साथ-साथ अनेक विदेशी देशों में प्राकृतिक संसाधनों के मानचित्रण, निगरानी एवं प्रबंधन के लिए किया जा रहा है। रिमोट सेंसिंग एक अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी है, जो हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण एवं बुनियादी ढांचे के बारे में नवीनतम एवम् सटीक जानकारी प्रदान करने में सहायता करती है तथा उनके प्रबंधन के लिए योजनाएं बनाने में भी सहायता करती है।

डॉ. हुड्डा ने बताया कि कृषि, वानिकी, भूविज्ञान, जल संसाधन, पर्यावरण, शहरी एवं आधारभूत संरचना विकास, आपदा प्रबंधन, सर्वेक्षण एवं डिजिटलीकरण आदि विभिन्न क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग बढ़ रहा है। रिमोट सेंसिंग उपग्रहों का उपयोग कर एकत्र किए गए आंकड़ों का उपयोग फसल क्षेत्रफल एवं उत्पादन पूर्वानुमान, भूमि उपयोग योजना, फसल चक्र मानचित्रण, बंजर भूमि मानचित्रण एवं वन मानचित्रण के लिए किया जा रहा है। भूवैज्ञानिक अन्वेषण, खनन एवं सतही एवं भूजल अध्ययन के लिए भी रिमोट सेंसिंग डेटा का उपयोग किया जाता है। डॉ. हुड्डा ने मानचित्रण एवं डिजिटलीकरण में रिमोट सेंसिंग, भौगोलिक सूचना प्रौद्योगिकी (जीआईएस) एवं ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) तकनीकों की भूमिका पर भी चर्चा की। इन तकनीकों का उपयोग कर संपूर्ण भूमि अभिलेख, प्रशासनिक सीमाएं, सड़कें, रेलवे लाइन, नहरें, जल निकासी, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल एवं अन्य सरकारी आधारभूत संरचना का डिजिटलीकरण किया गया है। यह डिजिटल जानकारी नियोजन उद्देश्यों के लिए बहुत उपयोगी है।

डा: डांग ने डा: हूडा की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने ने रिमोट सेंसिंग और इसके उपयोग को इतने सरल शब्दों में समझाया । श्री अजीत सिंह, डा: अमृत लाल खुराना, डा: आर. के. पूनिया, डा: आर पी एस खरब, डॉ सुरेंद्र गहलावत, डॉ बी के सिंह, श्री धर्मपाल ढुल, श्री एस एस लाठर एवं श्री उम्मेद शर्मा ने चर्चा में भाग लिया।

क्लब की उपप्रधान डॉ सुनीता शियोकंद ने डा: रमेश हुड्डा का इतने ज्ञानवर्धक व्याखान के लिए क्लब के सदस्यों की ओर से धन्यवाद किया।

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