बेटी को उपमुख्यमंत्री बनाने की चाह मंत्री तक सिमट गई राव नरबीर सिंह कैबिनेट मंत्री बने, राव राजा की ताकत होगी कम क्या अब भी राव राजा मुख्यमंत्री से न बनने का बहाना बनाएंगे? अशोक कुमार कौशिक हरियाणा में नायब सिंह सैनी को ही दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी भाजपा ने सौंपी है। सैनी के विधायक चुने जाने के बाद राव इंद्रजीत सिंह के उम्मीदों को झटका लगा है। मोदी कैबिनेट में मंत्री राव इंद्रजीत हरियाणा में मुख्यमंत्री की रेस में शामिल थे। भाजपा नेतृत्व राव नरबीर सिंह को मंत्रिमंडल में स्थान दे दिया है। उन्हें राज्य मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। जबकि बेटी को डिप्टी सीएम की चाह रखने वाले राव राजा को उनकी तरह मंत्री बनाकर बड़ा झटका दिया गया है। सबसे बड़ी बात है कि गुरुग्राम तथा रेवाड़ी जिले से उनके किसी समर्थक को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। राव को लगे इन झटको बाद 2 सवाल सियासी गलियारों में उठ रहे हैं। पहला, राव मुख्यमंत्री बनने से चूक क्यों गए और दूसरा राव का सियासी भविष्य क्या होगा? हरियाणा में सीएम को लेकर चर्चाएं यहां तक भी चली कि राव इंद्रजीत अपने समर्थकों से विधायक दल की बैठक में कोई खेल करवा सकते हैं। अनिल विज स्वयं बैठक में विधायक दल का नेता बनने की दावेदारी पेश कर सकते हैं, अमित शाह के आने के बाद इन सभी चर्चाओं पर विराम लग गया। अनिल विज को बनाया प्रस्तावक अमित शाह बुधवार को 11 बजे के बाद भाजपा विधायक दल की बैठक में पहुंचे। उनके आते ही सब कुछ शांत हो गया। अनिल विज को ही शाह ने नायब सिंह सैनी का प्रस्तावक बना दिया। विज के प्रस्तावक बनते ही उनकी विधायक दल के नेता पर दावेदारी तुरंत खत्म हो गई। दिलचस्प बात यह है कि जो अनिल विज हरियाणा के सीएम बनने के महत्वाकांक्षा लिए हुए थे, उन्होंने कृष्ण बेदी के साथ मिलकर नायब सिंह सैनी का नाम विधायक दल के नेता के तौर पर प्रस्तावित किया था। हरियाणा भाजपा के प्रभारी मोहनलाल बडोली ने एक पर्ची कृष्ण बेदी को दी। जिसे बिजली खोलकर पढ़कर सुनाया। इस पर्ची में नायब सिंह सैनी का नाम था। इसके बाद दूसरे ऑब्जर्वर मोहन यादव ने विधायकों से पूछा तो अनिल विज सहित अनेक विधायकों ने इस पर सहमति जताई। विधायकों की सहमति के बाद अमित शाह ने खड़े होकर नायब सिंह सैनी नाम का ऐलान कर दिया। राव इंद्रजीत भी नहीं कर सके कोई ‘खेला’ राव इंद्रजीत तब तक बैठक में नहीं पहुंचे थे। इसलिए अपने नेता की गैर मौजूदगी में अहीरवाल के किसी विधायक की इतनी जुर्रत नहीं हुई कि वह अमित शाह के सामने नायब सिंह सैनी के विरोध में तथा राव इंद्रजीत के समर्थन में कोई शब्द बोल सकें। अमित शाह ने एक रणनीति के तहत ही राव इंद्रजीत को राजभवन में नायब सिंह सैनी के साथ चलने को कहा। राव दो दिन पहले ही यह दावा कर चुके हैं कि उनकी सीएम पद पर कोई दावेदारी नहीं है और ना ही उन्होंने नौ विधायकों की परेड कराई है। 3 बार मुख्यमंत्री बनने से चूके राव इंद्रजीत यह पहली बार नहीं है, जब राव इंद्रजीत मुख्यमंत्री बनने से चूक गए हैं। 2009 में विधानसभा चुनाव से पहले राव इंद्रजीत सिंह भी सीएम पद के दावेदार थे, लेकिन विधानसभा के नतीजों ने उनका खेल खराब कर दिया। कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में सिर्फ 40 सीटों पर जीत मिली। राव इंद्रजीत समर्थकों का दावा था कि अहीरवाल बेल्ट की 11 में से 7 पर कांग्रेस को जीत मिली है, इसलिए उन्हें सीएम की कुर्सी सौंपी जाए। हालांकि, कांग्रेस हाईकमान ने नो रिस्क फैक्टर के तहत भूपेंदर सिंह हुड्डा को ही सीएम की कुर्सी सौंप दी। 2013 में राव इंद्रजीत बागी होकर बीजेपी में आ गए। 2014 में विधानसभा चुनाव के दौरान महेंद्रगढ़ से रामबिलास शर्मा और रेवाड़ी से राव इंद्रजीत सिंह को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करके भाजपा ने हरियाणा में पहली बार अपने बलबूते पर सरकार बनाई थी। उन्हें केंद्र में राज्य मंत्री बनाया गया। 2019 में राव इंद्रजीत फिर से मुख्यमंत्री की रेस में शामिल थे, लेकिन इस बार सीएम की कुर्सी मनोहर लाल खट्टर को ही मिली। 2024 में तो राव ने सीएम पद पर दावेदारी पेश की थी। हालांकि, पार्टी ने नायब सिंह सैनी को ही सीएम की कुर्सी सौंप दी। नायब को ही मुख्यमंत्री क्यों बनाया गया? बीजेपी ने हरियाणा में नायब सिंह सैनी को उस वक्त मुख्यमंत्री की कमान सौंपी थी, जब राज्य में बीजेपी की स्थिति ठीक नहीं थी। चुनाव से पहले सत्ता विरोधी लहर चल रही थी, लेकिन नायब मैदान में डटे रहे। विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान ने कह दिया कि सरकार बनने पर नायब ही सीएम होंगे। ऐसे में पार्टी अपने वादे से मुकरना नहीं चाहती थी। यही नहीं, राव इंद्रजीत के अलावा अनिल विज और कुलदीप बिश्नोई सीएम पद के दावेदार थे। नायब के बदले किसी और को चुनने पर पार्टी के भीतर नाराजगी और ज्यादा बढ़ती। बड़ा सवाल- अब राव इंद्रजीत क्या करेंगे? राव इंद्रजीत का सियासी दबदबा अहीरवाल बेल्ट तक सीमित है। अहीरवाल बेल्ट की 11 में से 10 सीटों पर बीजेपी को जीत मिली है। इंद्रजीत इसी जीत के बूते सीएम पद पर दावेदारी ठोक रहे थे। हालांकि, उनकी दावेदारी को बीजेपी ने स्वीकार नहीं किया है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि अब राव इंद्रजीत क्या करेंगे? इन 10 सीटों में एक सीट बादशाहपुर से राव नरबीर सिंह की भी है। यहां यह बता दें कि बादशाह पर से राव नरबीर सिंह को राव इंद्रजीत सिंह के न चाहते हुए टिकट बीजेपी ने प्रदान की उसके बाद राव नरबीर सिंह ने जीत हासिल की। अब उन्हें नायब सिंह सरकार के मंत्रिमंडल में बैतोर कैबिनेट मंत्री शामिल किया गया है। इस तरह भाजपा राव इंद्रजीत सिंह के समानांतर नेता खड़ा करके संतुलन साधने के चक्कर में है। भाजपा ने एक और सीट नांगल चौधरी से राव इंद्रजीत सिंह के विरोधी डॉक्टर अभय सिंह यादव को दी थी लेकिन वह चुनाव में पराजित हो गए। मुख्यमंत्री कुर्सी न मिलने के बाद उन्हें आशा थी कि बेटी को उपमुख्यमंत्री अवश्य बनाया जाएगा। उनकी आशा पर तब तुषारापात हो गया जब आरती राव को मंत्री बनाया गया। वह भी अपने पिता की तरह राज्य मंत्री तक सिमट गई। इससे भी बड़ी दिलचस्प बात यह है कि गुरुग्राम तथा रेवाड़ी जिले से उनके किसी समर्थक को मंत्री नहीं बनाया गया। हाल ही में राव इंद्रजीत ने कहा था कि पार्टी का हर फैसला मैं मानूंगा। राव के इस बयान के बाद कहा जा रहा है कि फिलहाल वो बगावत करें, इसकी गुंजाइश कम है। राव के भविष्य इन 3 सिनेरियो पर तय होगा। 1. इंद्रजीत अभी मोदी कैबिनेट में स्वतंत्र प्रभार के मंत्री हैं। उनके पास जनगणना का विभाग है। राव को केंद्र में प्रमोशन मिलती है या नहीं, इससे आगे की तस्वीर साफ होगी। हरियाणा के ही मनोहर लाल खट्टर केंद्र में बड़े विभागों के मंत्री हैं। 2. हरियाणा में कैबिनेट का गठन होना है. अभी तक बीजेपी ने डिप्टी सीएम और मंत्री पद को लेकर कुछ भी साफ नहीं किया है। नई सरकार में राव के कितने लोग एडजस्ट होंगे, इससे भी उनके सियासी भविष्य का फैसला होगा। 3. राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव विधानसभा पहुंची हैं। आरती पर भी बीजेपी का फैसला राव के सियासी कदमों को तय करेगा। यहां सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि अब तक अहीरवाल के विकास न होने के पीछे राव राजा अक्सर मुख्यमंत्री से अनबन रहने की बात जनता के बीच दोहराते रहे हैं। चाहे वह कांग्रेस शासन में भूपेंद्र सिंह हुड्डा थे अथवा भारतीय जनता पार्टी सरकार में मनोहर लाल खट्टर। दोनों के साथ उनका 36 का आंकड़ा रहा। वह जनता के बीच अक्सर यह दुहाई देते थे, मुख्यमंत्री से उनकी नहीं बनती। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी मिलनसार व्यक्ति हैं और उनके मंत्रिमंडल में उनकी पुत्री भी मंत्री के तौर पर शामिल की गई है। क्या अभी राव राजा इंद्रजीत सिंह अहीरवाल के विकास को लेकर मुख्यमंत्री से अनबन का बहाना बनाएंगे? Post navigation हरियाणा मंत्रिमंडल : 13 मंत्रियों में 6 दलबदलू, बेटे-बेटियों को भी तरजीह कहीं ताजपोशी, कहीं रस्साकशी….