भाजपा में खट्टर समर्थक और विरोधी की गुटबाजी में फंसा चुनाव वहीं शैलजा की नाराजगी पहुंचा सकती है कांग्रेस को नुकसान अशोक कुमार कौशिक कहते हैं 12 साल बाद तो कुरड़ी के भी दिन बदलते हैं, फिर हमारा नंबर क्यों नहीं। 2014 से 2024 तक अहिरवाल ने भाजपा को सत्ता के शिखर तक पहुंचाया। यह कहना अहिरवाल के छात्र केंद्रीय राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह का है। इसके बाद एक ओर टिप्पणी मुख्यमंत्री को लेकर आई। लोग पूछते हैं कि सबसे वरिष्ठ होने के बावजूद मैं कभी मुख्यमंत्री क्यों नहीं बना। हरियाणा के लोगों की मांग और पार्टी में मेरी वरिष्ठता को देखते हुए मैं सीएम बनने का दावा पेश करूंगा…’ हरियाणा में भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अनिज विज ने यह कहते समय सोचा भी नहीं होगा कि चंद घंटों के भीतर ही पार्टी उनकी महत्वाकांक्षाओं पर सार्वजनिक टिप्पणी करके पूर्ण विराम लगा देगी। हरियाणा में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं. सभी दलों ने अपने पत्ते खोल दिए हैं। लेकिन दोनों प्रमुख दल- सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस- मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान से जूझ रहे हैं। जहां भाजपा में खट्टर समर्थक और विरोधी दो धड़े बने हुए हैं, वहीं कांग्रेस में भुपेंद्र हुड्डा की मनमानी के चलते कुमारी शैलजा नाराज होकर अपने घर बैठी है। राव व विज के बयानों के कुछ ही घंटों बाद उनकी दावेदारी ख़ारिज करते हुए भाजपा के हरियाणा प्रभारी और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा, ‘वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ही राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री चेहरा हैं।’ हरियाणा में मुख्यमंत्री पद की चाहत रखने वाले विज पहले नहीं थे, उनसे पहले केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह भी ऐसी इच्छा जता चुके थे। सिंह ने कहा था, ‘लोग मुझे मुख्यमंत्री देखना चाहते हैं, लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह सैनी का नाम घोषित कर चुके हैं, हर पार्टी नेता वरिष्ठ नेतृत्व की घोषणा का पालन करेगा।’ बता दें कि शाह ने सैनी के नाम की घोषणा जून में ही कर दी थी। इसके बावजूद अगर सिंह और विज ने अपनी महत्वाकांक्षाएं जाहिर की हैं तो इसके गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। क्या भाजपा की कमजोर स्थिति ने दी नेताओं की दावेदारी को मजबूती? मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी पेश करते समय राव इंद्रजीत सिंह का कहना था, ‘यह मेरी नहीं, जनता की इच्छा है। वह चाहती है कि मैं मुख्यमंत्री बनूं, अगर दक्षिण हरियाणा ने 2014 और 2019 में भाजपा का समर्थन नहीं किया होता तो मनोहर लाल खट्टर दो बार मुख्यमंत्री नहीं बन पाते।’ छह बार के सांसद इन्द्रजीत सिंह दक्षिण हरियाणा से हैं। वह 4 बार विधायक भी रहे हैं और मुख्यमंत्री की चाह और भूपेंद्र हुड्डा से अनबन के चलते 2014 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे। उनके पिता राव बीरेंद्र सिंह राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। इस बार बेटी आरती राव भी अटेली से चुनाव लड़ रही हैं। सिंह अहीर समाज से आते हैं, जिसकी दक्षिण हरियाणा की 11 सीटों पर निर्णायक भूमिका है। उनके समर्थकों के मुताबिक, क्षेत्र की 22 सीटों पर राव इंद्रजीत सिंह का प्रभाव है। वह अतीत में भी मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता चुके हैं। पिछले साल एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था, ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमारे क्षेत्र अहीरवाल (दक्षिणी हरियाणा) के लोगों ने मुख्यमंत्री बनाए और गिराए हैं। 2014 में अगर हमारे लोग एकजुट नहीं होते तो भाजपा सत्ता में नहीं आती। हमारे लोगों ने खट्टर का विरोध किया, लेकिन किसी ने नहीं सुना और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया। मैं मुख्यमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखता था, लोगों की भी यही भावना थी।’ दशक भर से महत्वाकांक्षा पाले बैठे इंद्रजीत सिंह को अपनी दावेदारी के लिए यह समय शायद इसलिए मुफीद लगा क्योंकि लोकसभा चुनाव में सैनी के नेतृत्व में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मार्च में मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी चेहरे सैनी पर दांव खेला था ताकि वह नेतृत्व का चेहरा बदलकर सत्ता विरोधी लहर को कमजोर कर सके, लेकिन इसका खासा लाभ हुआ नहीं। पार्टी ने सूबे की आधी सीटें गंवा दीं, करीब 12% वोट घट गए, जबकि कांग्रेस के मत प्रतिशत में 15% का उछाल आया। भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट ऐसे समझिए. 2019 लोकसभा चुनाव में उसे 58% और कांग्रेस को 28% वोट मिले. 2024 में भाजपा 46% और कांग्रेस 43% पर आ गई, यानी दोनों लगभग बराबरी पर। इसलिए भाजपा मुश्किल में है, जिसका लाभ क्षेत्रीय क्षत्रप उठाना चाहते हैं, जिनमें विज भी शामिल हैं। मार्च में विधायक दल की जिस बैठक में सैनी की ताजपोशी हुई, विज उसे छोड़कर चले गए थे। बाद में मंत्री बनने से इनकार कर दिया और सैनी के शपथ ग्रहण में भी नहीं पहुंचे। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान विज अपनी व्यथा सार्वजनिक करते हुए बोले थे, ‘अपनी ही पार्टी में मुझे बेगाना कर दिया गया है।’ विज अंबाला छावनी सीट से विधायक हैं, जो अंबाला लोकसभा का हिस्सा है जहां भाजपा चुनाव हार गई थी। विज ने अपनी सीट के अलावा कहीं और प्रचार नहीं किया था। पंजाबी समुदाय से आने वाले विज 2014 में भी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में थे, लेकिन पार्टी ने इसी समुदाय के पहली बार के विधायक खट्टर को मुख्यमंत्री बना दिया। राज्य में पंजाबी 20-22 फीसदी माने जाते हैं, हालांकि समाज अपनी आबादी 30 फीसदी के करीब बताता है। इसलिए आज जब राज्य में भाजपा मुश्किलों में है, तो संभव है कि विज अपनी दावेदारी पेश करने का इसे उचित समय पाते हों। कांग्रेस में हुड्डा और शैलजा के बीच जंग तेज इधर कांग्रेस में भी हालात भिन्न नहीं हैं। पार्टी ने सीएम चेहरा घोषित तो नहीं किया है लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा का पार्टी के फैसलों में गहरा दखल काफी कुछ कह देता है। कुल 90 में से करीब 70 टिकट हुड्डा और उनके बेटे दीपेंदर हुड्डा समर्थित उम्मीदवारों को मिले हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन न करने में भी हुड्डा की ही चली। इस बात को लेकर राहुल गांधी भी खबर बताए जाते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है कि राहुल गांधी ने अभी तक हरियाणा के लिए कोई रैली करने घोषणा नहीं की है। अभी 2 दिन पहले जब वह करनाल हरियाणा में आए तो उनके साथ कांग्रेस का कोई नेता नहीं था। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा जीतीं 5 सीटों में से 4 पर हुड्डा समर्थक थे। पांचवीं सीट (सिरसा) कुमारी शैलजा ने जीती। शैलजा ही आज हुड्डा को चुनौती दे रही हैं। टिकट आवंटन से पहले उन्होंने विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, उन्हें टिकट नहीं मिला क्योंकि पार्टी की नीति सांसदों को टिकट न देने की थी। मुख्यमंत्री बनने के सवाल पर शैलजा ने मीडिया से कहा था, ‘यह इच्छा रखना क्या गलत है? सबकी इच्छा होती है, सब बनना चाहते हैं।’ शैलजा की दावेदारी उनके दलित होने के चलते है। राज्य में दलित आबादी करीब 21 फीसदी है। हालांकि, पांच बार की सांसद शैलजा अपने पीछे राज्य की 36 बिरादरियों के समर्थन का दावा करती हैं। शैलजा और हुड्डा के बीच लंबा विवाद भी चला है। चुनाव की घोषणा से पहले हुड्डा ‘हरियाणा मांगे हिसाब’ कैंपेन चला रहे थे, उसी दौरान शैलजा ने ‘कांग्रेस संदेश यात्रा’ की घोषणा कर दी। इसकी शिकायत कांग्रेस आलाकमान तक पहुंची। शैलजा की कैंपेन से हुड्डा के पोस्टर गायब थे, बाद में शैलजा ने दूसरा पोस्टर जारी किया जिसमें हुड्डा भी थे। हुड्डा को टिकट वितरण में अहमियत मिलने संबंधी सवाल पर वह एक साक्षात्कार में कहती हैं, ‘2005 में भी बहुमत तो भजनलाल के साथ था!’ उनका सीधा आश्य था कि टिकट वितरण में किसी की भी चली हो, अंतिम फैसला नतीजों के बाद होगा, जिसमें वह भी सीएम दावेदार होंगी। हाल ही में शैलजा के खिलाफ एक कांग्रेस कार्यकर्ता का कथित आपत्तिजनक वीडियो भी सामने आया, जिसके बाद हुड्डा को सफाई देनी पड़ी। फिलहाल टिकट वितरण के बाद से शैलजा पार्टी के चुनाव प्रचार से गायब हैं। उधर भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी उनके पांच समर्थकों जिन्हें कांग्रेस का टिकट दिया गया है के लिए चुनाव प्रचार नहीं कर रहे। कांग्रेस में तीसरे दावेदार राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला हैं। वह भी शैलजा के सुर में बोलते हुए 2005 का घटनाक्रम याद दिलाकर कहते हैं, ‘मुख्यमंत्री बनने के लिए विधायक बनना जरूरी नहीं है। पार्टी ने 2005 में भी एक सांसद को मुख्यमंत्री बनाया था।’ यहां उनका स्पष्ट इशारा हुड्डा की ओर ही था। बता दें कि सुरजेवाला के बेटे आदित्य सुरजेवाला को पार्टी ने कैथल से उम्मीदवार बनाया है. यहां से रणदीप सुरजेवाला दो बार विधायक रहे थे। पिछला चुनाव वह हार गए थे। कांग्रेस ने खोल रखे सबके लिए द्वार सुरजेवाला, शैलजा और दीपेंदर हुड्डा तीनों ही सीएम रेस में बने रहने के लिए चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन पार्टी पर सांसदों को टिकट न देने की का भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने दबाव बनाया। टिकट वितरण से पहले कांग्रेस प्रभारी दीपक बाबरिया ने कहा जो भी मुख्यमंत्री बनना चाहता है, चुनाव परिणामों के बाद दावेदारी पेश कर सकता है, बशर्ते उसे विधायक दल का समर्थन प्राप्त हो।’ बाद में भूपेंद्र हुड्डा की मनमानी के चलते दीपक बावरिया को भी अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। चुनाव न लड़ने वाले भी मुख्यमंत्री बन सकते हैं बाबरिया के बयान से इतना स्पष्ट है कि हुड्डा को राज्य में ‘फ्री हैंड’ दे चुकी कांग्रेस उन्हें सीएम चेहरा घोषित करने से बच रही है। ज़ाहिर है, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही एक रणनीतिक असमंजस की स्थिति बनाए हुए हैं। जाट, ग़ैर-जाट और दलित के फेर में फंसा मुख्यमंत्री पद ‘अभी कांग्रेस के पक्ष में जाट-दलित का योग बना हुआ है. जाट अन्य दलों से किनारा करके हुड्डा को अपना एकमात्र नेता मान रहे हैं और उन्हें सीएम देखने की उम्मीद रखते हैं। ऐसी ही उम्मीद दलितों को है कि शायद शैलजा सीएम बन जाएं। यही उम्मीद दोनों वर्गों के मतदाताओं को कांग्रेस से जोड़े है।’ वहीं राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस का अघोषित सीएम चेहरा बताते हुए कहते हैं, ‘टिकट वितरण से लेकर ‘आप’ के साथ गठबंधन तक हुड्डा की ही चली, लेकिन पार्टी उन्हें उम्मीदवार इसलिए घोषित नहीं कर सकती क्योंकि भाजपा से दलित खिसक रहा है और शैलजा कांग्रेस की सबसे बड़ी दलित नेता हैं। पार्टी उनका दावा खारिज करने का जोखिम नहीं उठा सकती। ‘ यही स्थिति भाजपा में बनती है। विवेक कहते हैं, ‘सैनी के नेतृत्व में लड़ने का भाजपा का कारण गैर-जाट वोट है जो पार्टी की जीत में अहम भूमिका निभाता है, जिसमें ओबीसी करीब 30 फीसदी हैं। राव इंद्रजीत अहीरवाल पट्टी में पकड़ रखते हैं, उनकी सीएम दावेदारी वहां भाजपा को लाभ पहुंचाएगी। भाजपा को नायब, राव और विज तीनों चाहिए। विज पार्टी के पुराने वफादार हैं, उन्हें किनारे किया तो कार्यकर्ता में गलत संदेश जाएगा।’ हालांकि, विज की दावेदारी का एक अन्य पहलू विश्लेषक यह बताते हैं कि वह सिर्फ अपनी सीट बचाने के लिए ऐसे दावे कर रहे हैं क्योंकि पिछली बार उनकी जीत का अंतर कम था, इस बार भी मुकाबला कांटे का है। खुद को सीएम प्रोजेक्ट करके वह जनता को आकर्षित करना चाहते हैं, जिससे उन्हें वोट मिल सकें। इस बीच, सुरजेवाला की दावेदारी को अधिक तवज्जो मिलती नहीं दिख रही है। जानकार कहते हैं कि कैथल से आगे उनका प्रभाव भी नहीं है और उनका नाम उतना पुरजोर तरीके से नहीं उठा, जितना हुड्डा और शैलजा का। विश्लेषक कहते हैं, ‘सुरजेवाला शैलजा गुट में जा मिले हैं।’ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, ‘कांग्रेस ने किसी को भी सीएम बनाने की बात कहकर सही किया। अगर हुड्डा का नाम ले लेते तो यह जाट चुनाव बन जाता और कांग्रेस के लिए दूसरे समुदायों से जुड़ना चुनौती बन जाता। भाजपा ने हमेशा गैर-जाट राजनीति की है, इसलिए कांग्रेस का रुख सही है।’ बहरहाल, जानकार कांग्रेस को सत्ता के अधिक करीब अधिक देख रहे हैं, लेकिन सीएम पर खींचतान भी पार्टी में अधिक है। टिकट वितरण और अपने खिलाफ जातिगत टिप्पणी के बाद से शैलजा चुनावी परिदृश्य से गायब है कांग्रेस का घोषणापत्र जारी करते समय मुख्यमंत्री के सवाल पर पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा, ‘कांग्रेस में चुनाव बाद विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री तय किया जाता है। जो काम करता है, उसे पद मिल ही जाता है। हमारी यह व्यवस्था पहले से ही है।’ गौरतलब है कि इस दौरान शैलजा और सुरजेवाला मौजूद नहीं थे, जबकि हुड्डा खरगे के बगल में बैठे थे। Post navigation नारनौल विधानसभा में दो ‘निराले’ निर्दलीय प्रत्याशी, एक पैदल तो दूसरा बाइक पर ही कर रहा प्रचार आरती नशे से ग्रसित युवाओं को खेलों की और ले जाना चाहती है: राव इंद्रजीत सिंह