सकारात्मक एवं दृढ़ इच्छा शक्ति और सही उपचार से कैंसर पर विजय पाई जा सकती है- वानप्रस्थ में संगोष्ठी का आयोजन

हिसार – वानप्रस्थ में कैंसर के लक्षण , सावधानियों और उपचार पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें प्रबुद्ध सदस्यों ने अपने अनुभव और विचार साँझा किए।

क्लब के महासचिव डा: जे. के. डाँग ने कहा कि कैंसर एक खतरनाक और जानलेवा बीमारी है। कैंसर तब होता है, जब शरीर के किसी हिस्से में कैंसर की कोशिकाएं अनियंत्रित होकर फैलने लगती हैं। समय के साथ यह कोशिकाएं दूसरे अंगों के कामकाज को प्रभावित करती हैं और इनमें खतरनाक इन्फेक्शन बढ़ता रहता है।

आज के मुख्य वक्ता डा: अजीत सिंह कुण्डू सेवा निवृत पशु चिकित्सक ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि वह एक स्वस्थ जीवन यापन कर रहे थे कि अचानक जून 2015 में उनके पेट में दर्द रहने लगा और बुख़ार आने लगा। उस समय वह 53 वर्ष के थे।

जाँच करने पर पता चला कि उनको गैर हॉजकिन लिंफोमा है इस कैंसर को ठीक करने के लिए लगातार छ: कीमोथेरेपी करवानी पड़ती हैं , पर हर व्यक्ति इस भारी खुराक (डोज़) को सहन नहीं कर सकता।

डा: कुण्डू ने संकल्प लिया कि वह इलाज करवाएँगे और कैंसर को हराएँगे। ऐसा ही हुआ । पाँच मास के गहन चिकित्सा के बाद डॉक्टर ने हरी झंडी दे दी। पिछले 9 वर्ष से वह बिलकुल स्वस्थ हैं , वह अब कोई दवाई अथवा कोई फ़ूड सप्लमेंट आदि नहीं लेते परंतु पूरा परहेज़ करते है।रोज़ाना योग करते हैं एवम् नियमित दिनचर्या का पालन करते हैं।

डॉ कुण्डू कैंसर पर विजय का श्रेय अपनी दृढ़ मानसिक शक्ति, स्वस्थ एवम् पोष्टिक भोजन तथा अपनी पत्नी की सेवा को देते हैं।

मंच संचालन करते हुए डा: सुनीता शिओकंद ने कहा कि शुरुआत में कुछ ऐसे लक्षण जैसे बहुत थकान महसूस होना , आराम करने पर ठीक ना होना, त्वचा के अंदर गाँठे महसूस होना, अचानक वज़न बढ़ना या कम होना, मुँह में छाले होना ( जो काफ़ी समय तक ठीक ना होना) , सांस लेने में तकलीफ़ होना और रात को बुख़ार होना आदि आप महसूस करते हैं तो उसे नज़र अन्दाज़ ना करें और तुरंत डॉक्टर की सलाह लें।

अपने व्यक्तिगत अनुभव साँझा करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें जनवरी 2017 में स्तन कैंसर का पता चला। सर्जरी के द्वारा कैंसर वाले ऊतकों और दाएँ बगल के सभी लसीका ग्रंथियों को हटा दिया गया। आगे की जांचों से पता चला कि मुझे ट्रिपल नेगेटिव ब्रेस्ट कैंसर था, जो एक आक्रामक प्रकार का कैंसर है और हार्मोन उपचार का कोई असर नहीं होता। इस प्रकार के कैंसर में पुनः लौटने की अधिक संभावना होती है, इसलिए मुझे आठ चक्रों वाली तीव्र कीमोथेरेपी दी गई।

पहले चार चक्रों ने उनके श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या को कम कर दिया, जबकि अन्य चार चक्रों ने गंभीर पेरीफेरल न्यूरोपैथी पैदा कर दी, जिससे उनके हाथ और पैर पूरी तरह सुन्न हो गए। इसके कारण कई बार गिरने की समस्या हुई और साधारण कार्य जैसे बटन बंद करना या टीवी का रिमोट दबाना मुश्किल हो गया।कीमोथेरेपी के बाद 32 चक्रों की रेडिएशन थेरेपी दी गई, जिसके अपने नकारात्मक प्रभाव थे, जैसे कि त्वचा का जलना और संक्रमण। भगवान की कृपा से उन्होंने इस उपचार को सहन किया और अब वह स्वस्थ हैं । अब वह किसी प्रकार की दवाई पर नहीं ले रही। केवल सालाना टेस्ट कराए जाते हैं।

यात्रा बहुत चुनौतीपूर्ण थी, संघर्ष किया , अपनी सकारात्मक और दृढ़ मानसिक शक्तिले इसे सहन कर लिया और अब आप स्वस्थ जीवन जी रहे हैं।

इसी तरह श्री मुंजाल ने बताया कि उन्हें पहली बार जनवरी, 2014 को अपने कार्यालय में बैठे एक पैर में सुन्नता महसूस हुई, जो पैरों से ऊपर की ओर बढ़ने लगी। वो अपने पैरों पर खड़ा होने की स्थिति में नहीं थे। उन्हें तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया जहां टेस्ट्स से मालूम हुआ कि उनके खून में थक्के पाए गए और उसी रात को ही वैस्कुलर सर्जरी की गई और वो ठीक हो गये। करीब दस दिन बाद खून पतला करने वाली दवाओं के कारण बहुत ज्यादा खून बहने लगा। उन्हें फिर से अस्पताल में भर्ती कराया गया। इलाज के दौरान बड़ी आंत में कैंसर का पता चला जो कि उच्च अवस्था में था। फिर इसका इलाज शुरू हुआ। डॉक्टरों की टीम की सलाह पर मार्च से मई 2014 तक रेडियोथेरेपी की 30 सिटिंग्स दी गईं। फिर जून में कैंसर की सर्जरी की गई। सर्जरी से पहले एंजियोग्राफी के दौरान तीन नसें सौ प्रतिशत बंद पाई गईं। इस अवस्था में न तो एंजियोप्लास्टी और न ही बाईपास सर्जरी संभव थी। अगस्त और सितंबर में तीन कीमोथेरेपी की गईं। तीसरी कीमोथेरेपी में उनकी तबीयत काफी बिगड़ गई जिसके कारण आगे की कीमोथेरेपी रोक दी गई। मार्च-अप्रैल, 2015 में फिर से सर्जरी हुई। दिसंबर, 2015 में फिर से सर्जरी हुई। फरवरी और मार्च, 2020 में बाएं सीने की दो सर्जरी की गईं। ईश्वर की कृपा, दृढ़ इच्छाशक्ति, ईश्वर में विश्वास, पत्नी और बेटे की सेवा की वजह से कठिन दौर से गुजर गया और वह अब पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं।

क्लब के वरिष्ठ सदस्य डा : आर. डी . शर्मा ने बताया कि उनके भाई और पत्नी इतने भाग्यशाली नहीं थे । दोनों को रक्त कैंसर था और उन्हें बचाया नहीं जा सका।

क्लब के अन्य अनुभवी सदस्य डा: खुराना, डा: खरब , श्रीमती सुनीता महतानी, डा: आर. के जैन , श्रीमती राज गर्ग ने भी विचार रखे । सदस्यों का कहना था कि अधिकतर लोग झाड़ा/ देसी दवाइयाँ और दूसरों के कहने पर इधर उधर भटकते रहते हैं । अगर आरंभ से ही सावधानी रखी जाए और योग्य डॉक्टरों से उपचार करवाया जाए और अपनी सकारात्मक सोच हो तो कई प्रकार के कैंसर पर विजय पाई जा सकती है ।

कैंसर की संगोष्ठी के दौरान सदस्य गामगीन हो गए । माहौल बदलते हुए श्रीयोगेश सुनेजा उत्साहवर्धक गीत
“ रुक जाना नहीं तू कहीं हार के काँटों पे चलके मिलेंगे साए बहार के रुक जाना नहीं तू कहीं हार के काँटों पे चलके मिलेंगे साए बहार के ओ राही.. ओ राही.. ओ राही.. ओ राही..

संगोष्ठी के समापन की ओर ले जाते हुए डा: आर. के . जैन ने कहा कि कैंसर के नाम से ही डर लगने लगता है। आज भारत में दूसरे स्थान पर जानलेवा बीमारी है । आप सब सतर्क रहें , सावधान रहें, जैसे ही कोई लक्षण नज़र आए , डॉक्टर से परामर्श करें । उन्होंने बताया कि आज की संगोष्ठी में 40 से अधिक सदस्यों ने भाग लिया।

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