पटौदी विधानसभा सीट …. कांग्रेस से मोहनलाल पीपल के बाद भूपेंद्र चौधरी और भूपेंद्र चौधरी के बाद अब कौन ?

1982 में मोहनलाल पीपल 2005 में भूपेंद्र चौधरी इसके बाद हार ही हार

2024 में एक बार फिर 2009 और 2019 में कांग्रेस का नकारा उम्मीदवार

2005 के बाद पटौदी में कांग्रेस के लिए जीत बनी हुई है हसीन सपना

फतह सिंह उजाला 

पटौदी । हरियाणा में 2024 विधानसभा चुनाव और इसके नामांकन के लिए काउंटडाउन आरंभ होने के साथ ही उम्मीदवारों की घोषणा से पहले भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में संभावनाओं को लेकर मंथन का नया सिलसिला चर्चा का विषय बन गया है । भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों अपनी- अपनी बहुमत की सरकार बनाने के लिए हर संभावना और जीत के प्रबल उम्मीदवारों को लेकर किसी भी प्रकार का रिस्क लेता हुआ दिखाई नहीं दे रही। लेकिन फिर भी राजनीति में जान पहचान रिश्ते नातेदारी पारिवारिक संबंध सहित और भी तालमेल बहुत मायने रखते हैं । फिर भी प्राथमिकता यही होती है, चुनाव के मैदान में केवल और केवल जीत के प्रबल दावेदार उम्मीदवारों को ही भेजा जाए । वरिष्ठ राजनेता, राजनीतिक चिंतक और विश्लेषक भी इस बात को कहते आ रहे हैं की राजनीति में संभावनाएं कभी समाप्त नहीं हुआ करती। कांग्रेस और भाजपा दोनों में ही अन्य पॉलिटिकल पार्टियों के साथ गठबंधन किया जाने की चर्चाएं भी अचानक से सुर्खियां बन गई है।

हरियाणा गठन के बाद 2019 तक होने वाले विधानसभा चुनाव में अभी तक कांग्रेस पार्टी केवल चार बार ही पटौदी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव में कामयाब रही है। 1967 में अहीरवाल के दिग्गज और केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह के पिता राव बीरेंद्र सिंह कांग्रेस पार्टी की टिकट पर चुनाव जीते और अहिरवाल क्षेत्र से हरियाणा प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बनने वाले नेता के रूप में आज भी उनका नाम अमिट है। इसके बाद से ही पटौदी विधानसभा क्षेत्र को राव परिवार अथवा रामपुर हाउस का सबसे मजबूत और सुरक्षित राजनीतिक किला कहा जाने लगा है। इसके बाद 1972 में भी कांग्रेस पार्टी को पटौदी से कामयाबी प्राप्त हुई। इसके 10 वर्ष के बाद 1982 में मोहनलाल पीपल के रूप में पटौदी के लोगों ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को विधायक बनाया । 1982 के बाद 2005 तक एक लंबा समय बीत गया , लेकिन कांग्रेस पार्टी को पटौदी में कामयाबी नसीब नहीं हो सकी । वर्ष 2005 में कांग्रेस पार्टी के भूपेंद्र चौधरी ने यहां से जीत प्राप्त कर, कांग्रेस पार्टी का विधायक का नाम विधानसभा में दर्ज करवाया । इसके बाद से 2019 तक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के लिए जीत एक सपना बनकर रह गई है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक पटौदी क्षेत्र में राव परिवार और रामपुर हाउस के राजनीतिक प्रभाव और मजबूत पकड़ को देखते हुए यहां से चुनाव जीतने के लिए परोक्ष अपरोक्ष रूप से रामपुर हाउस अथवा राव परिवार का दखल माना जाता आ रहा है। पटौदी विधानसभा में चुनाव परिणाम किसी हद तक राव के इशारे से भी प्रभावित होते आ रहे हैं। कुछ अपवाद को छोड़ दिया जाए तो उपरोक्त कही गई बात पूरी तरह सही भी कहीं जा सकती है। सीधा-सीधा सवाल और लोगों में जिज्ञासा यही है कि भारतीय जनता पार्टी की तरफ से पटौदी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा आरएसएस या फिर राव इंद्रजीत सिंह के समर्थक उम्मीदवार को चुनाव मैदान में भेजा जाएगा ?  राजनीति के जानकार लोगों का यह भी आकलन है कि राव इंद्रजीत सिंह के समर्थक को पटौदी विधानसभा क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी के द्वारा उम्मीदवार बनाए जाने या किसी और को उम्मीदवार बनाए जाने के साथ ही कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार पर ही पटौदी से विधानसभा चुनाव में हार जीत का परिणाम निर्भर करेगा।

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