क्या शैलजा हुड्डा की सुलह भाजपा की बढ़ाएगी परेशानी?

दोनों नेता करेंगे मंच सांझा, दिखाएंगे एकता

जमानत गवां चुके दो बार हार चुके को टिकट नहीं 

जीतने वाले प्रत्याशियों को ही मिलेगा टिकट, आलाकमान का दोनों ‌गुटों को निर्देश 

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा विधानसभा चुनावों में टिकट बांटने को लेकर भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा में सुलह हो गई है। खबरों की मानें, तो कांग्रेस हाईकमान नेदोनों को एक मंच पर लाने का फार्मूला तैयार कर लिया है। इस फार्मूले को दोनों गुटों के नेताओं ने मान लिया है और अब दोनों नेता मिलकर काम करेंगे। उधर सुत्रों अनुसार कांग्रेस टिकट पर लगातार दो बार चुनाव हार चुके और 2019 के विधानसभा चुनावों में जमानत जब्त करवाने वाले नेताओं की टिकट पर इस बार तलवार लटकी है।

जानकारी के मुताबिक,कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन और राहुल गांधी की अध्यक्षता में यह फार्मूला तैयार किया गया है। इसके हिसाब से कुमारी शैलजा को प्रदेश की 30 सीटों पर फ्री हैंड छोड़ा जाएगा। खबरों की मानें, तो अब भूपेंद्र हुड्डा और कुमारी शैलजा सभी राजनीतिक मंच सांझा करेंगे, कोई किसी गुट से दूरी नहीं बनाएगा। 

कहा जा रहा है कि कांग्रेस हाईकमान ने भले ही कुमारी शैलजा को प्रदेश की 30 सीटों के टिकट वितरण के लिए फ्री हैंड छोड़ दिया हो। लेकिन, कांग्रेस ने इसके साथ ही उन पर शर्त भी लगा दी है। जिसमें कहा गया है कि केवल जीतने वाले कैंडिडेट को ही टिकट दिया जाएगा। वहीं कुमारी शैलजा की ओर से जिन नामों की सिफारिश की जाएगी। उनकी सर्वे रिपोर्ट का आंकलन भी किया जाएगा। इसके बाद ही कांग्रेस टिकट का ऐलान करेगी। 

खबरों की मानें, तो कांग्रेस आलाकमान ने भूपेंद्र हुड्डा, कुमारी शैलजा, हरियाणा कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया और सांसद दीपेंद्र हुड्डा को आमने सामने बैठाकर सुलह का फार्मूला तैयार किया है। ताकि, भूपेंद्र और कुमारी शैलजा की गुटबाजी की वजह से आगामी चुनाव में कोई नुकसान न हो। अगर यह एकता कायम रहती है तो निश्चित ही भाजपा को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

अभी तक हुई चर्चा के हिसाब से पार्टी यह सोचकर चल रही है कि लगातार दो चुनाव हारने वाले नेताओं को टिकट देना जोखिम भरा हो सकता है। साथ ही, उन चेहरों पर भी कांग्रेस नेतृत्व इस बार दांव लगाने के मूड में नहीं है, जिनकी पिछले चुनावों में जमानत जब्त हो गई थी। बताते हैं कि प्रदेश कांग्रेस के ऐसे नेताओं की संख्या 27 के लगभग है, जो 2019 के विधानसभा चुनाव में अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। इसी तरह 15 के लगभग ऐसे नेता हैं, जो लगातार दो बार चुनाव हार चुके हैं।

कांग्रेस में आमतौर पर मौजूदा विधायकों को लेकर ‘सिटिंग-गैटिंग’ का फार्मूला लागू होता रहा है। इसके तहत मौजूदा विधायकों को टिकट मिल जाती है। लेकिन इस बार यह फार्मूला भी लागू होगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। अगर ऐसा होता है तो पार्टी के मौजूदा 28 विधायकों में से आठ से दस की टिकट कट भी सकती है। वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस नेतृत्व लोकसभा चुनावों की तर्ज पर इस बार विधानसभा में भी सोशल इंजीनियरिंग के तहत टिकट देने के पक्ष में है। अगर इस तरह का निर्णय कांग्रेस ने लिया तो फिर प्रदेश में 2019 के मुकाबले इस बार जाट उम्मीदवारों की संख्या कम हो सकती है। आमतौर पर कांग्रेस 28 से 30 जाट नेताओं को टिकट देती रही है। लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस चार जाट उम्मीदवार उतारती रही है। लेकिन इस बार के चुनावों में दो ही जाट नेताओं को टिकट मिली। रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा और हिसार से जयप्रकाश ‘जेपी’ को टिकट मिली। दोनों ही चुनाव जीतने में भी कामयाब रहे। प्रदेश में विधानसभा की नब्बे सीटों में से 17 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 

अब कांग्रेस 73 सीटों को लेकर अपना गणित सैट करने में जुटी है। माना जा रहा है कि पिछड़ा वर्ग-बी के अलावा बीसी-ए के अंतर्गत आने वाली जातियों को इस बार टिकट आवंटन में पहले से अधिक तवज्जों मिल सकती है। इसी तरह ब्राह्मण, पंजाबी, वैश्य और राजूपत कोटे में इजाफा संभव है। रोड़ के अलावा सिख कोटे में भी इस बार बढ़ोतरी संभव है। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने इस बात की पुष्टि की है कि पार्टी नेतृत्व व हरियाणा इकाई सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काफी गंभीरता से मंथन कर रही है।

दीपेंद्र में देख रहे ‘भविष्य’

‘हरियाणा मांगे हिसाब’ अभियान के तहत चालीस के लगभग करीब शहरों-कस्बों में कार्यक्रम कर चुके रोहतक सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा के सामने भी कम चुनौतियां नहीं हैं। अपने दम पर सभी नब्बे हलकों में पदयात्रा पर निकले दीपेंद्र हुड्डा सभी नब्बे हलकों को कवर करेंगे। दीपेंद्र पूरे प्रदेश में अपने लिए अलग जगह बनाने में कामयाब हुए हैं। पार्टी नेतृत्व में भी उनका राजनीतिक कद बढ़ा है। माना जा रहा है कि हलकों में पदयात्रा के जरिये वे टिकट मांगने वाले नेताओं की ग्राउंड रियल्टी भी जांच रहे हैं। बड़ी संख्या में ऐसे नेता हैं, जो अब टिकट के लिए दीपेंद्र से नजदीकी बढ़ा रहे हैं। ऐसे नेता दीपेंद्र में अपने लिए ‘भविष्य’ तलाश रहे हैं। टिकट आवंटन के समय दीपेंद्र हुड्डा अपने कितने समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहते हैं, यह देखना रोचक रहेगा।

शैलजा-सुरजेवाला से उम्मीदें

एंटी हुड्डा खेमे के नेताओं – कुमारी शैलजा व रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ जुड़े उनके समर्थक भी टिकट के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। उन्हें अपने नेताओं पर ‘विश्वास’ है कि वे टिकट के लिए उनकी पूरी मदद करेंगे। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस के टिकट आवंटन में कोटा सिस्टम चला था। उस समय प्रदेशाध्यक्ष रहे अशोक तंवर के समर्थकों को टिकट नहीं मिलने के चलते तंवर ने पार्टी छोड़ दी थी। हालांकि शैलजा व रणदीप अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने में सफल रहे थे। हालांकि इस बार कोटा सिस्टम की बजाय मैरिट पर टिकट देने की बात नेतृत्व की ओर से की जा रही है।

लोकसभा चुनाव में हुड्डा का रहा पलड़ा भारी

बीते लोकसभा चुनावों में टिकट आवंटन में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा का पलड़ा भारी था। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा की सिरसा सीट को छोड़कर बाकी संसदीय सीटों पर हुड्डा की पसंद से ही टिकट मिली थी। रोहतक से दीपेंद्र हुड्डा की टिकट तय थी। वहीं फरीदाबाद में महेंद्र प्रताप सिंह, गुरुग्राम में राज बब्बर, भिवानी-महेंद्रगढ़ में राव दान सिंह, हिसार में जयप्रकाश ‘जेपी’, सोनीपत में सतपाल ब्रह्मचारी, करनाल में दिव्यांशु बुद्धिराजा और अंबाला में वरुण चौधरी को टिकट दिलवाने में हुड्डा कामयाब रहे थे।

वैसे कहा जा रहा है कि हरियाणा के विधानसभा चुनावों को लेकर कांग्रेस नेतृत्व काफी गंभीर है। हरियाणा इकाई भी इस कोशिश में है कि मजबूत और जिताऊ उम्मीदवारों को ही टिकट दिया जाए। दिल्ली से जुड़े सूत्रों का कहना है कि पार्टी नेतृत्व द्वारा टिकट आवंटन के लिए फार्मूला तय किया जा रहा है।

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