भाजपा नेताओं को विश्वास: खर्ची-पर्ची से मिलेगी विधानसभा टिकट ?

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। विधानसभा चुनाव का जादू सिर चढक़र बोल रहा है, सारा शहर और गलियां नेताओं के बोर्डों से अटी पड़ी हैं। हालांकि चुनाव अधिकारी निशांत कुमार यादव और आज कमिश्नर बिदान इन्हें हटाने के लिए कह रहे हैं, देखते हैं कितना असर होगा? आज हम गुरुग्राम की ही बात करेंगे। गुरुग्राम में अनेक उम्मीदवार अपनी दावेदारी ठोक रहे हैं। दावेदारी ही नहीं ठोक रहे अपितु साथ में यह दावा भी कर रहे हैं कि टिकट उन्हें ही मिलेगी।

बात करें मुकेश पहलवान की तो उन्होंने अनेक स्थानों पर अपने कार्यालय खोल लिए हैं और दावा कर रहे हैं कि मैं चुनाव अवश्य लडूंगा, जबकि इनके विगत की ओर नजर डालें तो 2014 में भी वह बादशाहपुर सीट से टिकट के दावेदार थे और जब टिकट उन्हें टिकट नहीं मिला तो वह बादशाहपुर से निर्दलीय चुनाव लड़े। परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहा। इस पर उनका गुस्सा इतना फूटा कि उन्होंने तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा पर अनेक आरोप लगा दिए कि मैंने इन्हें बहुत पैसा दिया है लेकिन इन्होंने मुझे टिकट नहीं दिलाई। यह तो जाहिर ही है कि जब निर्दलीय चुनाव लड़े तो पार्टी से तो निष्काशित हो ही गए थे, कहीं अब भी 2014 वाली कहानी न दोहराई जाए।

गुरुग्राम में पंजाबी उम्मीदवारों की भरमार है, जिनमें बोधराज सीकरी, श्रीमती गार्गी कक्कड़, यशपाल बतरा, कपिल दुआ, हरविंदर कोहली आदि-आदि अनेक लोग टिकट मांग रहे हैं। अभी सोशल मीडिया पर एक इंटरव्यू यशपाल बतरा का चल रहा था, जिसमें वह कह रहे थे कि पार्टी के सभी मानदंडों पर केवल मैं ही खरा उतरता हूं, इसलिए टिकट मुझे ही मिलेगी। अब मुझे ध्यान आया कि पहला पार्षद का चुनाव वह मदनलाल ग्रोवर की छत्रछाया में लड़े थे। उसके पश्चात वह धर्मबीर गाबा के साथ हो गए थे और ग्रोवर से दूरियां बन गई थीं। दूसरे कार्यकाल में वह चुनाव धर्मबीर गाबा की छत्रछाया में जीते और उन्होंने राव इंद्रजीत का हाथ थाम लिया तो सीनियर डिप्टी मेयर के पद पर काबिज हुए।

तीसरा चुनाव 2017 में उन्होंने कांग्रेस से और अशोक तंवर के आशीर्वाद से लड़ा। उनके सामने मदनलाल ग्रोवर थे और तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल भी प्रचार कर गए थे लेकिन वह विजयी रहे। उसके पश्चात याद नहीं आ रहा कि कब उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया और आज सोशल मीडिया से कुछ ईशारे मिल रहे कि मोहित मदनलाल ग्रोवर से इनकी दोस्ती बढ़ गई है। क्या होने वाला है, यह तो समय ही बताएगा, क्योंकि सूरज किधर जाता है यह समय के गर्भ में है और सूरजमुखी तो सूरज की तरफ ही जाएगा।

इसी प्रकार जिक्र करें कपिल दुआ का तो उनकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वह अपने पिता के सहारे चुनाव लड़ रहे हैं और उनके पिता कभी भाजपा नेता सीताराम सिंगला के अनुयायी होते थे। फिर कहीं भ्रष्टाचार की बात आई तो सिंगला जी ने उन्हें अपने से दूर कर दिया। फिर उन्होंने धर्मबीर गाबा का हाथ थाम लिया, उसके साथ उन्होंने स्व. गोपीचंद धींगड़ा के परिवार का भी साथ मिल गया। कब गाबा साहब को छोडक़र भाजपा में आए, पता ही नहीं चला।

जब ऐसे-ऐसे लोग अपने आपको टिकट का दावेदार बता रहे हैं तो चर्चा यही चल रही है कि टिकट कहीं खर्ची-पर्ची से तो नहीं मिलगी।

स्थान अभाव के कारण बस इतना ही, बाकी फिर कभी।

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