आस्तित्व की लड़ाई लड़ रही जजपा इनेलो

अशोक कुमार कौशिक 

हरियाणा में चुनावी बिगुल बज चुका है। भारत निर्वाचन आयोग ने तारीखों का ऐलान कर दिया है। 1 अक्‍टूबर को मतदान और 4 अक्‍टूबर को मतदान। मतलब दशहरे से पहले हरियाणा में चुनावी महाभारत होगी। हरियाणा में विधानसभा की 90 सीटें हैं। पूर्ण बहुमत का जादुई आंकड़ा 46 सीटों का है। हरियाणा में भाजपा-कांग्रेस से लेकर जेजेपी व आईएनएलडी तक ने चुनावी बिछात बिछा दी। पार्टियां उम्‍मीदवार फाइनल करने में जुटी हैं।

गौर हो कि हरियाणा में 2019 में विधानसभा चुनाव कराए गए थे और बीजेपी ने सरकार बनाई थी हरियाणा में मतदाताओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है, वहीं पहली बार वोट डालने वालों की तादाद भी बढ़ी है।

बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी

बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी, जिसकी चुनाव में 10 सीटें आई थीं बीजेपी ने पिछला दो विधानसभा चुनाव जीता है हालांकि, लोकसभा चुनाव में उसे झटका लगा, जब कांग्रेस ने पांच सीटें जीत लीं।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में भाजपा

हरियाणा में साल 2014 से भाजपा की सरकार है। 2019 में भाजपा ने जेजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई। मनोहरलाल खट्टर सीएम बने।

भाजपा-जेजेपी का गठबंधन टूटा तो 12 मार्च 2024 को खट्टर की कुर्सी भी गई और उनकी जगह नायाब सिंह सैनी नए मुख्‍यमंत्री बने।

अब साल 2024 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हरियाणा मुख्‍यमंत्री बदलने के फॉर्मूले के सहारे जीत की हैट्रिक की तैयारी में है।

नायाब सिंह सैनी महज 76 दिन तक हरियाणा के मुख्‍यमंत्री रहे। इस दौरान उन्‍होंने आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए लगातार घोषणाएं करके सत्‍ता विरोधी लहर कम करने की कोशिश की।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में भाजपा को केंद्र में सरकार, बूथ मैनेजमेंट, सैनी के नए फेस पर भरोसा है।

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस

साल 2014 से कांग्रेस के हाथ में हरियाणा की सत्‍ता नहीं आ पा रही है। लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस पांच सीटें जीती हैं। इस जीत से उत्‍साहित कांग्रेस ने इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए अलग रणनीति बनाई है।

कांग्रेस एंटी इन्‍कमबेंसी, बेरोजगारी, महंगाई, कानून व्‍यवस्‍था, किसान, परिवार पहचान पत्र, प्रॉपर्टी, पोर्टल, अग्निवीर के मुद्दे लेकर हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 के मैदान में है।

हरियाणा चुनाव में बीजेपी के सामने चुनौती

हरियाणा में जीत की हैट्रिक लगाना भाजपा के लिए आसान नहीं है। किसान आंदोलन सबसे बड़ी चुनौती है।

भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस का खेल भी कई सीटों पर जेजेपी, आप और इनेला-बसपा बिगाड़ सकती हैं।

जेजेपी के सामने चुनौती, हरियाणा की राजनीति और दुष्यंत चौटाला

युवा तुर्क पर हर किसी को भरोसा था और एक बार को तो ये लगा कि अगले मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ही होंगे। उन्होंने साल 2019 में उनका उभार करिश्माई था। 87 विधानसभा सीटों वाले राज्य में उन्होंने 10 सीटों पर जीत हासिल की थी। वे राज्य में वैकल्पिक राजनीति के चेहरे थे लेकिन बीजेपी से गठबंधन के बाद हालात बदल गए। वे तत्काल डिप्टी सीएम तो बन गए लेकिन जनता उनसे खुश नहीं थी। अब तो जीते हुए विधायक भी एक-एक करके दुष्यंत चौटाला अकेले पड़ते जा रहे हैं।

दिसंबर 2023 से पहले दुष्यंत चौटाला ने बीजेपी से अपनी राहें अलग कर लीं। उन्होंने राजस्थान विधासनभा चुनावों में कुल 19 उम्मीदवार उतारे। सारे उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई। चुनाव आयोग ने हरियाणा में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया है। 1 अक्टूबर को चुनाव होंगे, अब सबकी नजरें एक बार फिर दुष्यंत चौटाला पर टिक गई हैं। साल 2019 के किंगमेकर, इस बार क्या बनेंगे, हर कोई जानना चाहता है।

जजपाके दम से भाजपा सरकार बना पाई थी लेकिन राहें अलग हो गईं। लोकसभा चुनावों में राहें अलग हुईं तो उनके सामने नई चुनौतियां पैदा हो गई हैं।

जो साथी थे, अब सियासी दुश्मन हैं

क्या जेजेपी का अब सीधा मुकाबला बीजेपी से होगा? कभी सहयोगी रहे, अब चुनावी अखाड़े में सामने होंगे। कांग्रेस भी इस चुनाव में बहुत मजबूत स्थिति में है। सामने आम आदमी पार्टी  भी है, जिसने साल 2022 में हुए पंजाब विधानसभा चुनावों में झंडे गाड़े थे। दुष्यंत चौटाला के राज्य में लोगों के पास इतने विकल्प हैं कि उन्हें खुद को प्रासंगिक रखने के लिए भी नया दांव चलना होगा।

कैसे घट रहा है जेजेपी का जनाधार?

साल 2019 में जेजेपी के पास कुल 14.9 फीसदी वोट शेयर थे, उन्होंने 10 सीटें जीत ली थीं। 87 विधानसभाओं वाले राज्य में यह बड़ी छलांग थी, जिसने सीधे उन्हें किंग मेकर की भूमिका में खड़ा कर दिया। इसका इनाम ये रहा कि पहले ही प्रयास में सीधे मजबूत डिप्टी सीएम बन गए, जिनकी राज्य में मजबूत भूमिका थी। साल 2024 के लोकसभा चुनाव में पूरी सियासत बदल गई। उन्होंने 10 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे लेकिन उन्हें 0.87 प्रतिशत से भी कम वोट हासिल हुए। एक भी उम्मीदवार जीत नहीं पाया।

हरियाणा डिरेल, राजस्थान में आजमाया दांव

दिसंबर 2023 में दुष्यंत चौटाला ने पार्टी के विस्तार पर जोर दिया। वे राजस्थान में 19 उम्मीदवार उतार बैठे। सारे के सारे उम्मीदवार अपनी सीट तक नहीं बचा पाए। जेजेपी का वोट प्रतिशत 0.14 प्रतिशत रहा, नोटा भी उनसे ज्यादा वोट 0.96 प्रतिशत पाया।

अपने ही दुष्यंत चौटाला का साथ छोड़ रहे

जेजेपी का आलम ये है कि 5 विधायक भारतीय जनता पार्टी से जा मिले हैं। पार्टी ने विधानसभा स्पीकर ज्ञान चंद गुप्त से विधायकी रद्द करने की मांग की है। बरवाला से विधायक जोगी राम सिहाग और नरवाना से विधायक राम निवास के अयोग्ता की मांग जोर-शोर से उठाई गई है। चुनाव आयोग ने इससे बहुत पहले ही चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। जेजपी के तीन अन्य विधायक राजकुमार गौतम, देवेंद्र सिंह बबली और ईश्वर सिंह भी बगावती तेवर दिखा चुके हैं।

देखिए कब-कब दुष्यंत को लगे झटके

अप्रैल में दुष्यंत चौटाला को एक और झटका लगा। जेजेपी के राज्य अध्यक्ष निशान सिंह ने ही पार्टी छोड़ दी, कांग्रेस में शामिल हो गए। शुक्रवार को जेजेपी विधायक अनूप धनक ने पार्टी छोड़ दी। अब वे बीजेपी के दुलारे हो रहे हैं। शनिवार को जेजेपी के 4 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया। ईश्वर सिंह और देवेंद्र सिंह बबली ने राहें जुदा कर लीं। देवेंद्र सिंह, दुष्यंत चौटाला के करीबी सहयोगी रहे हैं और मनोहर लाल खट्टर सरकार में मंत्री रह चुके हैं। रविवार को एक ओर विधायक ने इस्तीफा दे दिया। अब तक इस्तीफा देने वालों में अनूप धानक, देवेंद्र बबली, रामकरण काला, ईश्वर सिंह व जोगीराम सिहाग शामिल हैं। साल 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान वे अपनी पार्टी के रुख पर सवाल खड़े कर चुके हैं। दुष्यंत चौटाला के अपने ही दगा दे रहे हैं।

क्या नए सिरे से बन रही पार्टी?

लोकसभा चुनाव 2024 के बाद जेजेपी ने अपने सभी राज्य इकाइयों को भंग कर दिया था। दुष्यंत चौटाला, उनते पिता अजय चौटाला और दूसरे नेता पार्टी के पुनर्गठन पर काम करने लगे। शुक्रवार को चुनाव आयोग ने ऐलान किया तो जेजेपी ने 50 पद धारकों के नाम का ऐलान किया।

बीजेपी से अलग होना आएगा काम?

इंडियन नेशनल लोक दल के विकल्प में तैयार हुई ये पार्टी चौटाला परिवार में बगवात से पैदा हुई, अब बगावत की ही भेंट चढ़ रही है। दुष्ंयत चौटाला अब बीजेपी के धुर आलोचक हो गए हैं। साल 2021-22 के दौरान ही किसान तबका उनसे नाराज था और बीजेपी के साथ होने पर सवाल खड़े कर रहा था। वे बीजेपी से अलग अलग हुए लेकिन तब, जब उनका समय अनुकूल नहीं रहा।

क्या फिर बन पाएंगे किंग मेकर?

दुष्यंत चौटाला ने चुनाव के फैसले के बाद यह ऐलान किया है कि राज्य की सभी 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। वे अगले 45 दिनों तक के लिए 24 घंटे काम करेंगे। उनका कहना है कि लोग भूपेंद्र हुड्डा के 10 साल के जनता विरोधी सरकार को नहीं भूले हैं। अब देखने वाली बात ये होगी कि उन्हें अपने मिशन में कामयाबी मिल पाती है या नहीं।

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