-घोषियान चौक क्षेत्र निवासी रवि ने मांगी थी नगर परिषद से आरटीआई में जानकारी

भिवानी, 17 अगस्त। राज्य सूचना आयुक्त ने भिवानी नगर परिषद पर जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत मांगी गई सूचना नहीं देने पर 25 हजार रूपये जुर्माना किया है। सूचना आयुक्त ने आरटीआई कार्यकर्ता को भी दो हजार रूपये हर्जाना देने के निर्देश दिए हैं।

घोषियान चौक क्षेत्र निवासी रवि ने स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार से संपर्क साधा। बृजपाल सिंह परमार के माध्यम से रवि ने नगर परिषद भिवानी से आरटीआई में कुछ बिंदुओं पर जानकारी मांगी। बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि नगर परिषद ने 3 नवंबर 2023 को एक दुकान का छज्जा तोडने का नोटिस जारी किया था। लेकिन इस नोटिस के बाद नगर परिषद ने छज्जा नहीं तोडा। इस पर रवि ने जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत 8 दिसंबर 2022 को नगर परिषद भिवानी से सूचना मांगी। नगर परिषद ने निर्धारित अवधि में कोई जवाब नहीं दिया। इसके बाद रवि ने 17 जनवरी 2023 को नगर आयुक्त के समक्ष प्रथम अपील लगाई। इस पर भी नोटिस की अनुपालना को लेकर नगर परिषद ने कोई जवाब नहीं दिया। इसके उपरांत रवि ने 27 फरवरी 2023 को राज्य सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। राज्य सूचना आयुक्त डॉ जगबीर सिंह ने 21 मार्च 2024 को सुनवाई करते हुए नगर परिषद को सूचना देने के निर्देश दिए। सूचना आयुक्त के निर्देश पर भी आरटीआई कार्यकर्ता को कोई सूचना नहीं दी। इसके उपरांत 18 जुलाई को फिर राज्य सूचना आयुक्त ने इस मामले में सुनवाई की, लेकिन नगर परिषद की तरफ से कोई सुनवाई में कोई पेश नहीं हुआ। इस पर राज्य सूचना आयुक्त डॉ जगबीर सिंह ने नगर परिषद भिवानी के तत्तकालीन लेखाकार रमेश कुमार पर 25 हजार रूपये जुर्माना किया है। सूचना आयुक्त ने आरटीआई कार्यकर्ता रवि को भी 2 हजार रूपये हर्जाना देने के निर्देश दिए हैं।

दो सप्ताह में नहीं दी सूचना तो न्यायालय के माध्यम से कराएंगे एफआईआरः बृजपाल परमार

स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने बताया कि सूचना आयुक्त के आदेश में यह भी हवाला दिया है कि दो सप्ताह में आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना मुहैया करानी होगी। अगर इस अवधि में सूचना नहीं दी तो नगर परिषद के एसपीआईओ के खिलाफ न्यायालय के माध्यम से एफआईआर दर्ज कराई जाएगी। बृजपाल सिंह ने बताया कि सूचना आयुक्त ने यह भी टिप्पणी की है कि एसपीआईओ का आचरण आरटीआई अधिनियम 2005 के प्रावधानों का घोर उल्लंघन है। आयोग की आदेश की बार-बार अवहेलना करना उसके अहंकार, लापरवाही व मनमानी को दर्शाता है। यह रवैया सरकारी अधिकारी के लिए अनुचित है। इस तरह से किसी अधिकारी को गैर गंभीरता की अनुमति नहीं दी जा सकती।

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