-कमलेश भारतीय

सन् 1947 में देश को स्वतंत्रता तो मिली लेकिन विभाजन का दंश व दुखांत भी झेलना पड़ा । भाई भाई न रहा, हिंदू मुस्लिम हो गया और न जाने सीमा पार करते समय कितने लोग दंगों व मारकाट की भेंट चढ़ गये । इस तरह स्वतंत्रता के पहले दिन ही भारत के दो टुकड़े हो गये और एक के दो देश बन गये । ‌यह बहुत बड़ा दुखांत था । स्वतंत्रता की लड़ाई तो मिलकर लड़ी लेकिन स्वतंत्रता के बाद अलग आलग देश बन गये । सन् 1971 में मुक्ति वाहिनी ने बांगलादेश को जन्म दिया, जो सन् 1947 के बाद भारत से ही नहीं, पाकिस्तान से भी टूट कर तीसरे देश के रूप में अस्तित्व में आया । शेख मुजीबुर्रहमान वैसे ही श्रद्धा से देखे गये, जैसे भारत में महात्मा गांधी, पाकिस्तान में जिन्ना और बंगला देश में मुजीबुर्रहमान ! सबकी प्रतिमायें इन देशों में लगी़ं । गांधी के भक्त या शिष्य

जवाहरलाल नेहरू को सत्ता मिली तो पाकिस्तान में कभी सेना तो कभी लोकतंत्र की सरकारें राज करती रहीं । सबसे ताज़ा घटनाक्रम में क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान की सरकार को चलता किया गया । बंगलादेश में मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना को सत्ता मिली । अब बंगला देश में आमजन ने विद्रोह कर शेख हसीना का तख्तापलट दिया है और मुजीबुर्रहमान की प्रतिमाओं का अपमान किया जा रहा है । यानी उनके प्रति अवाम में गुस्सा देखने को मिल रहा है । क्या वे नायक नहीं रहे?
सेना के विमान से शेख हसीना को इस मुश्किल घड़ी में बचा कर निकाला गया । वे पहले भारत आईं और फिर ब्रिटेन में शरण मांगी । कहा जाता है कि सन् 1971 के योद्धाओं और उनके परिवारों को दिये जा रहे कोटे के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे । बंगलादेश के सुप्रीम कोर्ट ने अधिकांश कोटे को खत्म कर दिया था, फिर भी विरोध प्रदर्शन जारी रखे गये ।

इससे भारत में रह रहे अवैध बांग्ला देशी प्रवासीयों‌ का क्या होगा, जैसा सवाल उठ खड़ा हुआ है। क्या अवैध बांग्लादेशी प्रवासियों को वापस भेजने की शुरुआत हो सकती है ? यह बहुत बड़ा सवाल है और यह मुद्दा पश्चिमी बंगाल के चुनाव में उठता रहता है । भारत के पड़ोसी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान और अब बंगलादेश में तख्तापलट हुए हैं और भारत ही लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता है। हालांकि आपातकाल और मंडल कमीशन ऐसे अवसर बने जब लोकतंत्र को खतरा हो गया लेकिन लोकतंत्र की जय हुई । फिर भी पड़ोस के घटनाक्रम पर चिंतित होना स्वाभाविक है । भारत इस पर नज़र रखे हुए है । हम तो इतना ही कह सकते हैं, शायर की ओर से :

ज़मीं पे चल न सका, आसमान से भी गया
कटा के पर, परिंदा उड़ान से भी गया!!
-पूर्व उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी। 9416047075

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