लोकसभा चुनावों में एक सीट पर तो दो मतो मिली कांग्रेस को जीत अटेली में नहीं मिलती सिटिंग एमएलए को पुनः टिकट अशोक कुमार कौशिक हरियाणा के लोकसभा चुनाव में आधी सीटें गंवा चुकी बीजेपी अब विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोर-शोर से कर रही है। लेकिन, अंदरूनी घमासान पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। हरियाणा में बीजेपी ने सत्ता में वापसी के लिए मेगा प्लान तैयार किया है। सत्ता विरोधी लहर से मुकाबले के लिए भाजपा ने ‘बाप-बेटा’ के तंज से कांग्रेस पर हमला बोलने और उसे वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा देने वाली पार्टी ठहराने की नीति बनाई है। साथ ही, मुख्यमंत्री नायब सैनी ताबड़तोड़ योजनाओं की घोषणा, शिलान्यास आदि भी कर रहे हैं और खाली पड़े पदों पर भर्ती की प्रक्रिया तेज कर युवाओं को भी साधने की कोशिश में लगे हैं। उधर, भाजपा राज्य भर में अपने पन्ना प्रमुखों को सक्रिय कर रही है। साथ ही, दलित मतदाताओं से संपर्क साधने का खास अभियान चलाने जा रही है। प्रदेश में सरकार गठन का रास्ता दक्षिणी हरियाणा से होकर गुजरता है। यह दावा अहीरवाल क्षत्रप राव इंद्रजीत सिंह का है। जब भी इस क्षेत्र के मतदाताओं ने किसी पार्टी का खुलकर साथ दिया, वही पार्टी प्रदेश की सत्ता पर काबिज होती रही। लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने भले की प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की हो, लेकिन इन चुनावों में पार्टी को एक ही सीट पर महज दो वोटों से जीत हासिल हुई है। लोकसभा चुनावों से पहले भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे ने अहीरवाल क्षेत्र में भाजपा के गढ़ को तोड़ने में पूरी ताकत लगा दी थी। अब विधानसभा चुनावों से पहले दीपेंद्र ने इस क्षेत्र में सक्रियता बढ़ा दी है। 2014 में भाजपा ने जीती थी 10 सीट 2014 के विधानसभा चुनावों में भाजपा मोदी लहर में दक्षिणी हरियाणा की सभी दस सीटों पर काबिज होने में कामयाब रही थी। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की आपसी गुटबाजी के चलते बादशाहपुर और रेवाड़ी सीट पार्टी के हाथ से निकल गई। प्रदेश में सरकार बनाने की स्थिति में रहने वाले प्रमुख दलों की नजरें हमेशा दक्षिणी हरियाणा की अहीर बाहुल्य 10 सीटों पर रहती है। वर्ष 2000 के विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र में ओपी चौटाला को लोगों का खुलकर साथ मिला था। इनेलो को दस में से 6 विधायक मिले थे, जिनके दम पर चौटाला ने सरकार बनाई थी। इससे अगले ही चुनाव में कांग्रेस को इस क्षेत्र में अच्छी सफलता मिली, तो कांग्रेस ने तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष चौ. भजनलाल को दरकिनार करते हुए हुड्डा की सीएम पद पर ताजपोशी कर दी थी। भूपेंद्र हुड्डा ने क्षेत्र के विधायकों को दिए थे अहम पद भूपेंद्र हुड्डा ने क्षेत्र के अधिकांश कांग्रेसी विधायकों की कमान सीधे तौर पर अपने हाथ में लेते हुए उन्हें पदों के तोहफे देने में कमी नहीं छोड़ी थी। अनीता यादव और राव दान सिंह को सीपीएस बनाया गया था। वर्ष 2005 के विधानसभा चुनावों से पहले अहीरवाल की राजनीति में राव इंद्रजीत इंद्रजीत सिंह और कैप्टन अजय सिंह यादव के बीच वर्चस्व की जंग खूब चली थी। राव दानसिंह, राव नरेंद्र सिंह, अनीता यादव व राव धर्मपाल उस समय कैप्टन दरबार में हाजिरी लगाते नजर आते थे। इन चुनावों के बाद अहीरवाल की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ। कैप्टन अजय भजनलाल का खेमा छोड़कर अहीरवाल के विधायकों के साथ हुड्डा खेमे में शामिल हो गए थे। अहीरवाल पर जोर लगाने का मिला इनाम वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में कोसली हलके में मिली बड़ी हार ने दीपेंद्र हुड्डा की संभावित जीत को हार में बदलने का काम किया था। दीपेंद्र ने इसके बाद से ही कोसली और अहीरवाल क्षेत्र पर फोकस करना शुरू कर दिया था। लोकसभा चुनावों से पहले उन्होंने अनिल पाल्हावास और जगदीश यादव को कांग्रेस ज्वाइन कराई थी। उसका इनाम उन्हें कोसली हलके में एक दशक बाद 2 मतों की जीत से मिला। इस सीट पर जीत हासिल करना ही दीपेंद्र के लिए बहुत बड़ी चुनौती माना जा रहा था। उधर भाजपा मेगा प्लान के बीच भाजपा के अंदर ही घमासान मचा हुआ है। हरियाणा सरकार के पूर्व मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के पूर्व ओएसडी के बीच बादशाहपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने की होड़ लगी हुई है। राव नरबीर सिंह बोले- लड़ूंगा विधानसभा चुनाव हरियाणा के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले दक्षिणी हरियाणा यानी अहीरवाल क्षेत्र के नेता राव नरबीर सिंह के ऐलान से बीजेपी की चिंता बढ़ गई है। राव नरबीर सिंह ने ऐलान किया है कि वह बादशाहपुर विधानसभा सीट से चुनाव जरूर लड़ेंगे। इस क्षेत्र के बड़े अहीर नेताओं में शुमार राव नरबीर सिंह ने कहा है कि या तो बीजेपी के टिकट पर या बिना बीजेपी के टिकट पर वह चुनाव मैदान में उतरेंगे। साथ ही, जवाहर यादव भी यहां से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। जवाहर, मनोहर लाल खट्टर के पूर्व ओएसडी हैं। बताया जाता है कि इनमें से कोई भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। राव नरबीर सिंह बादशाहपुर सीट से विधायक रहे हैं और खट्टर सरकार में कैबिनेट मंत्री भी। 2019 के विधानसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद भी राव नरबीर सिंह चुप रहे थे लेकिन इस बार वह आर-पार की लड़ाई लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। 2019 के विधानसभा चुनाव में बादशाहपुर की सीट से निर्दलीय राकेश दौलताबाद चुनाव जीते थे लेकिन कुछ महीने पहले राकेश दौलताबाद का निधन हो चुका है। राव नरबीर सिंह ने कहा है कि 2019 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी के आदेश को माना था और विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था लेकिन इस बार वह ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने कहा कि उन्हें टिकट देना या ना देना यह पार्टी के हाथ में है। क्या है अहीरवाल? अहीरवाल के इलाके में रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ और गुड़गांव की विधानसभा सीटें आती हैं। इस क्षेत्र में यादव मतदाताओं की अच्छी संख्या है और इस वजह से ही इस क्षेत्र को अहीरवाल कहा जाता है। अहीरवाल की राजनीति में मुख्य रूप से दो धड़े हैं। एक धड़ा राव इंद्रजीत सिंह का है जबकि दूसरा धड़ा बाकी नेताओं का है। दूसरे धड़े में पूर्व कैबिनेट मंत्री राव नरबीर सिंह के अलावा पूर्व विधायक रणधीर सिंह कापड़ीवास, पूर्व डिप्टी स्पीकर संतोष यादव, भाजपा संसदीय बोर्ड की सदस्य सुधा यादव, सिंचाई मंत्री डॉ. अभय सिंह यादव, पर्यटन निगम के अध्यक्ष डॉक्टर अरविंद यादव आदि शामिल हैं। अहीरवाल में आती हैं ये सीटें अहीरवाल में गुरुग्राम, बादशाहपुर, सोहना, महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, पटौदी, नारनौल, नांगल चौधरी, बावल, कोसली और अटेली विधानसभा सीटें आती हैं। राव इंद्रजीत सिंह से है 36 का आंकड़ा राव नरबीर सिंह का अहीरवाल के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले और भारत सरकार में मंत्री राव इंद्रजीत सिंह से 36 का आंकड़ा है। 2019 के विधानसभा चुनाव में जब राव नरबीर सिंह का टिकट कटा था तो इसके पीछे वजह राव इंद्रजीत सिंह को ही माना गया था। राव इंद्रजीत सिंह जब इस बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तो बादशाहपुर में राव नरबीर सिंह ने उनके लिए प्रचार नहीं किया था। राव इंद्रजीत की बेटी भी हैं दावेदार राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी को इस बार किसी भी सूरत में विधानसभा का चुनाव लड़ाना चाहते हैं। राव इंद्रजीत सिंह अपनी बेटी आरती राव के लिए 2014 और 2019 में रेवाड़ी विधानसभा सीट से बीजेपी का टिकट मांग चुके हैं। लेकिन दोनों ही बार आरती को टिकट नहीं मिला था। इस बार आरती राव की तैयारी बादशाहपुर, अटेली, कोसली और रेवाड़ी की सीट पर भी है। अटेली में है सिटिंग एमएलए की टिकट काटने का रिवाज अटेली सीट को लेकर भाजपा का यह ट्रेंड रहा है कि वह सिटिंग एमएलए को दोबारा रिपीट नहीं करती। 2014 में संतोष यादव को टिकट दिया वह विजय रही उसके बाद 2019 में उनका टिकट काट दिया गया और सीताराम यादव को टिकट दिया गया और वह जीत गए। इस बार राव इंद्रजीत सिंह ने उनके समक्ष ही उनकी काबिलियत पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। वैसे भी जनता में सीताराम को लेकर नाराजगी बहुत ज्यादा है। भाजपा एन्टी इनकमबेंसी को लेकर सचेत हैं। हरियाणा में कांग्रेस की भर्ती को देखते हुए वह जिताऊ उम्मीदवार पर दांव खेल सकती है। इसमें आरती राव व कुलदीप यादव का चयन हो सकता है। कुछ लोग संगठन से जुड़े एडवोकेट नरेश यादव को टिकट का दावेदार व स्थानीय बतला रहे हैं, जबकि चंद्रपुरा में उनकी ननिहाल है और उनका गांव भिंडावास है। वह कभी क्षेत्र में सक्रिय दिखाई नहीं दिए। ये भी चाहते हैं टिकट बादशाहपुर विधानसभा सीट से राव नरबीर सिंह के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के पूर्व ओएसडी जवाहर यादव का नाम भी चर्चा में है। राकेश दौलताबाद की पत्नी भी बादशाहपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं। राकेश दौलताबाद ने निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद बीजेपी को समर्थन दिया था। भाजपा के लिए गुटबाजी सबसे बड़ी बाधा कांग्रेस ने अहीरवाल में भाजपा के गढ़ को तोड़ने के लिए पूरी ताकत लगा दी है, वहीं भाजपा के सामने आंतरिक गुटबाजी इस बार उसे बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है। राव इंद्रजीत सिंह ने दिखाई थी नाराजगी राव इंद्रजीत सिंह कुछ दिन पहले इस बात पर खुलकर नाराजगी जता चुके हैं कि उन्हें मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया गया। उन्होंने कहा था कि वह भारत के इतिहास में अकेले ऐसे नेता हैं जो पांच बार राज्य मंत्री बन चुके हैं। राव इंद्रजीत सिंह ने बीते दिनों जिस तरह अहीरवाल से बाहर निकलकर अपनी सक्रियता बढ़ाई है और नाराजगी भी दिखाई है, उससे अहीरवाल के इलाके में टिकट बंटवारे में उनकी पसंद को नजरअंदाज कर पाना बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा। भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती इस क्षेत्र के सबसे ताकतवर नेता माने जाने वाले राव इंद्रजीत सिंह को खुश करने की है। राव लोकसभा चुनावों के बाद से ही पार्टी से नाराज नजर आ रहे हैं। उनकी नाराजगी भाजपा के लिए कई सीटों पर नुकसान कारण बन सकती है। नाराजगी को दूर करने के लिए पार्टी को सार्थक प्रयास करने होंगे। Post navigation बच्चों को पढ़ाना पैरेंट्स की चॉइस होती है न की स्कूल वालों की चॉइस: सीमा त्रिखा प्रदर्शनकारी किसानों को हरियाणा विधानसभा चुनाव से आस