भाजपा को नही स्वीकार रहे जाट इसलिए लाई सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला

लोकसभा चुनाव के बाद जाट मतदाताओं से तौबा करती भाजपा 

दो बार बनाया पार्टी ने जाटों को बनाया प्रदेशाध्यक्ष

अशोक कुमार कौशिक 

लोकसभा चुनाव में हरियाणा की दस में से पांच सीट हारने के बाद भाजपा पुराने ‘सोशल इंजीनियरिंग’ के फॉर्मूले पर लौट आई है। पार्टी ने जब लोकसभा चुनाव में मिले वोटों का विश्लेषण किया, तो सामने आया कि उसे जाट समुदाय के वोट नहीं मिले हैं। अब तीन महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा ने हरियाणा में दोबारा से गैर जाट मतदाता, जो कुल आबादी का लगभग 75 फीसदी हैं, पर ही फोकस करेगी। 

रविवार को रोहतक स्थित पार्टी के राज्य कार्यालय में आयोजित एक समारोह में नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष एवं राई से विधायक मोहनलाल बड़ौली ने अपनी जिम्मेदारी संभाल ली है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा, जाट वोटरों से तौबा करती हुई नजर आ रही है। मौजूदा समय में प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सैनी, पिछड़े वर्ग से आते हैं तो वहीं अब पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मोहनलाल बड़ौली, ब्राह्मण समुदाय से हैं। 

2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में अपने दम पर सरकार बनाई थी। पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री बनाया गया। इससे पहले कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा लगातार दस साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे। उस वक्त रामबिलास शर्मा, भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष थे। चुनाव में जीत के बाद पार्टी ने रणनीति बदली और जाट समुदाय से आने वाले सुभाष बराला को प्रदेशाध्यक्ष बना दिया गया। उस वक्त पार्टी, जाटों को नाराज नहीं करना चाहती थी। ये अलग बात है कि हरियाणा की सत्ता में आने से पहले भाजपा को लेकर यही कहा जाता था कि यह गैर जाट वर्ग की पार्टी है। उस वक्त प्रदेश का जाट वोटर, ज्यादातर भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पक्ष में शिफ्ट हो चुका था। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा से पहले यह वोट बैंक, खासतौर पर चौटाला परिवार के पक्ष में माना जाता था। 

हरियाणा की राजनीति को करीब से जानने वाले बताते हैं, प्रदेश की सियासत दो ही वर्गों में विभाजित रही है। भले ही प्रदेश में सत्ता किसी की भी रही हो, लेकिन जाट और गैर जाट, राजनीति के केंद्र में रहे हैं। भाजपा को तो शुरु से ही गैर जाटों की पार्टी माना जाता रहा है। हरियाणा में यह कहावत आम रही है कि भाजपा, शहर वालों की पार्टी है। इसी के चलते 1980 से लेकर अब तक, भाजपा के अधिकांश प्रदेशाध्यक्ष, गैर जाट ही रहे हैं। सबसे पहले डॉ. कमला वर्मा को प्रदेशाध्यक्ष पद की कमान सौंपी गई। उसके बाद 1984 में डॉ. सूरजभान एक वर्ष के लिए इस पद पर आसीन हुए।

डॉ. मंगलसेन ने 1986 में यह पद संभाला। वे करीब चार वर्ष तक प्रदेशाध्यक्ष रहे। 1990 में रामबिलास शर्मा को तीन साल के लिए अध्यक्ष बनाया गया। उनके बाद रमेश जोशी ने यह पद संभाला। 1998 में ओमप्रकाश ग्रोवर और 2000 में रतनलाल कटारिया, प्रदेशाध्यक्ष बनाए गए। 2003 में गणेशीलाल को इस पद पर नियुक्त किया गया। उक्त नेता, गैर जाट समुदाय से ताल्लुख रखते थे। 

साल 2006 में जाट समुदाय के ओमप्रकाश धनखड़ को भाजपा का प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया था। उसके बाद 2009 में गैर जाट कृष्णपाल गुर्जर को इस पद की कमान सौंपी गई। 2013 में रामबिलास शर्मा को पार्टी अध्यक्ष बनाया गया। वे करीब दो वर्ष तक इस पद पर रहे थे। सरकार में शिक्षा मंत्री बनने के बाद उन्होंने यह पद छोड़ दिया। जाट समुदाय से आने वाले सुभाष बराला को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई। वे पांच वर्ष से कुछ ज्यादा समय तक इस पद पर रहे। 2020 में दोबारा से ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेशाध्यक्ष बनाया गया। गत वर्ष नायब सैनी को प्रदेशाध्यक्ष की कमान सौंपी गई। 1980 से लेकर अब तक के इतिहास पर नजर डालें तो सुभाष बराला व ओमप्रकाश धनखड़, ये दो जाट नेता ही भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष पद पर रहे हैं। 

बतौर रविंद्र कुमार, लोकसभा चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि हरियाणा में भाजपा को जाट समुदाय का समर्थन नहीं मिलेगा। इसी के चलते आज पार्टी, बैकफुट पर आ गई है। पार्टी को अपनी पहले वाली सोशल इंजीनियरिंग पर लौटना पड़ा है। जिस वर्ग यानी गैर जाटों को भाजपा भाजपा अपना बताने का दावा करती है, उसकी संख्या करीब 75 फीसदी है। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने पूरी तरह से जाट समुदाय का समर्थन हासिल किया है। जाट वोटों पर अपना हक जताने वाली इनेलो और जजपा, को नकार दिया गया है। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मौजूदा समय में एक मात्र जाट नेता के तौर पर स्थापित हुए हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल जाट समुदाय का ही नहीं, बल्कि गैर जाट वोटरों का भी समर्थन हासिल था। विशेषकर एससी समुदाय के लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया है। दूसरे समुदाय के लोग भी कांग्रेस के पक्ष में खड़े हुए नजर आए। भाजपा ने जाट समुदाय के वोट हासिल करने के लिए तमाम प्रयास किए, मगर उसे समर्थन नहीं मिल सका। 

लोकसभा चुनाव के बाद जिस तरह से भाजपा ने पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर को केंद्र में कैबिनेट मंत्री बनाया, उससे पहले नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाना और अब मोहनलाल बड़ौली को प्रदेशाध्यक्ष के पद पर बैठाना, ये सब बातें इशारा करती हैं कि भाजपा 2014 से पहले वाली मूल सोशल इंजीनियरिंग के सहारे विधानसभा चुनाव में उतरेगी। खट्टर के जरिए पंजाबी समुदाय को साधा गया है तो नायब सैनी के जरिए पिछड़े एवं एससी मतदाताओं को संदेश दिया गया है। मोहन लाल बड़ौली को अध्यक्ष बनाकर पार्टी ने यह बताने का प्रयास किया है कि विधानसभा चुनाव में उसका फोकस गैर जाट समुदाय के वोटरों पर है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में राव इंद्रजीत सिंह और किशनपाल गुर्जर को जगह देकर अपनी रणनीति साफ कर दी है। 

2014 में विधानसभा चुनाव में अमित शाह ने हरियाणा में गैर जाट वोटरों पर फोकस किया था। अब वे दोबारा से उसी राह पर सक्रिय हैं। 16 जुलाई को अमित शाह, अहीरवाल में पहुंच रहे हैं। वे अप्रत्यक्ष तौर पर महेंद्रगढ़ से चुनावी बिगुल फूंकेंगे। शाह, प्रदेश स्तरीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सम्मेलन के कार्यकर्ताओं में छाई मायूसी को दूर करने का प्रयास करेंगे। रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ में विधानसभा की सात सीटों में से पांच भाजपा के पास हैं। 

विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी वर्ग का यह सम्मेलन, भाजपा की गैर जाट रणनीति पर मुहर लगाता है। इससे पहले ओबीसी क्रीमी लेयर की आय सीमा को 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये किया गया है। इस वर्ग के मतदाताओं को लुभाने के मकसद से ओबीसी वर्ग में आरक्षण को 15 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने की घोषणा की गई थी। अहीरवाल के वोटरों ने 2014 और 2019 में भाजपा की सरकार बनवाने में अपना खास योगदान दिया है। अब भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने तीसरी बार इस क्षेत्र पर फोकस किया है। पूर्व मंत्री रामबिलास शर्मा का कहना है कि 2014 के विधानसभा चुनाव का बिगुल, अमित शाह ने महेंद्रगढ़ में रैली कर फूंका था। अब वे 2024 में भी महेंद्रगढ़ से चुनावी तैयारी का आगाज करेंगे। 

You May Have Missed

error: Content is protected !!