हिसार, 5 जुलाई। दुनिया में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के उपरांत मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में 40 प्रतिशत से अधिक वृद्धि हो चुकी है। सामान्य स्तर पर आने के उपरांत वायुमंडल के इतिहास में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में इतनी वृद्धि कभी नहीं हुई।

यह जानकारी आज यहां वानप्रस्थ संस्था, हिसार द्वारा भूमंडलीय जलवायु पर आयोजित एक संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम के पूर्व चीफ कोम्यूनिकेशनज आफिसर धर्मपाल ढुल ने दी।

उन्होंने बताया कि पृथ्वी पर जीवन सूर्य से आने वाली ऊर्जा पर निर्भर करता है। पृथ्वी के वायुमंडल में पहुंचने पर 65 प्रतिशत प्रकाश ऊर्जा वायुमंडल की विभिन्न सतहों में हवा और बादलों से होकर पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है और अवशोषित होती है। फिर यहां से अवरक्त ऊष्मा का विकिरण होता है। इस ऊष्मा का बड़ा भाग ग्रीनहाउस गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है और अंतरिक्ष में धीमा विकिरण किया जाता है जिससे पृथ्वी पर जीवन और वनस्पति के अनुकूल तापमान बना रहता है। यदि ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा सामान्य से अधिक होती है तो जलवायु का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है और गैसों की मात्रा कम होने पर तापमान कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि औद्योगिक काल शुरू होने से लेकर अब तक तापमान में 1.37 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है जिसके कारण प्राकृतिक पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव आने का खतरा बनने लगा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि तापमान में दो डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि होती है तो वैश्विक पर्यावरण में खतरनाक और विनाशकारी परिवर्तन होने की सम्भावना बन सकती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने बढ़े तापमान को डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।

इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण की गतिविधियों मे प्रयासरत श्रीमती सुनीता महतानी ने मंच संचालन करते हुए कहा कि कार्बन डाइऑक्साइड ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है इसलिए सभी मानवीय गतिविधियों में इसके उत्सर्जन में कमी करने की जरूरत है। कार्बन डाइऑक्साइड की वृद्धि को रोक कर ग्लोबल वार्मिंग को पूरी तरह से रोकने के लिए दुनिया भर में मानव गतिविधियों में ऊर्जा दक्षता लानी होगी। इसके अलावा मिथेन जैसी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करने से ग्लोबल वार्मिंग को धीमा किया जा सकता है।

क्लब के महासचिव डा: जे. के. डाँग ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग एक गंभीर समस्या है । प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से ग्रीन हाउस गैसेज़ से तापमान में वृद्धि होती है।इसको कम करने के लिए हमें खनन एवं अंधाधुंध वनोन्मूलन
पर रोक लगानी होगी । उन्होंने कहा कि सरकार और नागरिकों का दायित्व बनता है कि अधिक से अधिक वृक्ष लगाएं ताकि ग्लोबल वॉर्मिंग की गति को कम किया जा सके।

दूरदर्शन के पूर्व समाचार निदेशक अजीत सिंह ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि विश्व भर में वनों की कटाई के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण काफी कम हुआ है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर जलवायु को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। जब उन्हें काट दिया जाता है तो वह लाभकारी प्रभाव ख़त्म हो जाता है और वृक्षों में संग्रहीत कार्बन डाइऑक्साइड भी वायुमंडल में छोड़ दी जाती है जिससे ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ जाता है । उन्होंने विश्व भर में वन क्षेत्र को और अधिक बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।

हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत प्रोफेसर स्वराज कुमारी ने बताया कि औद्योगिक व अन्य मानवीय गतिविधियों में पिछली लगभग दो सदियों के दौरान जीवाश्म ईंधन “कोयला और तेल” की जलने की प्रक्रिया बहुत अधिक रही है जिसके कारण वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में बढ़ोतरी हुई है। इस समय बिजली उत्पादन में भी कोयला और तेल का अधिकतम उपयोग हो रहा है। सौर ऊर्जा, जलविद्युत परियोजनाओं और पवन ऊर्जा को बढ़ावा दे कर व वर्तमान थर्मल प्लांटों में ईंधन व उत्पादन दक्षता ला कर कार्बन-डाई-ऑक्साइड की वृद्धि को रोका जा सकता है।

इस संगोष्ठी में हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्राध्यापकों एवं सरकार के सेवानिवृत उच्च अधिकारियों सहित लगभग 35-सदस्यों ने भाग लिया।

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