गत 25 जून को मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा लिया है ऐसा निर्णय

केन्द्र सरकार में प्रधानमंत्री और केन्द्रीय मंत्रीपरिषद  के सदस्य अपनी जेब से ही भरते हैं आयकर 

2022 में  हिमाचल प्रदेश एवं 2019 में  उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों द्वारा भी लागू की गई  ऐसी व्यवस्था 

चंडीगढ़ – हाल  ही में 25 जून को मध्य प्रदेश में  सत्तारूढ़ डा. मोहन यादव  के नेतृत्व वाली भाजपा‌ सरकार द्वारा निर्णय लिया गया है कि  आगे से प्रदेश के मुख्यमंत्री‌ और मंत्रियों आदि को  प्राप्त होने वाले  वेतन – भत्तों आदि पर इनकम टैक्स ( आयकर) का भुगतान सरकारी कोष ( खजाने) से नहीं बल्कि उनके द्वारा स्वयं अपनी जेब से किया जाएगा. मध्य प्रदेश कैबिनेट ने फैसला लिया है कि राज्य विधानसभा के अगले सत्र में इस संबंध में मध्य प्रदेश मंत्रीगण ( वेतन -भत्ते) कानून, 1972 में आवश्यक संशोधन कर दिया जाएगा.

इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने बताया कि दोर वर्ष पूर्व 2022 में  हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन  सत्तासीन जयराम ठाकुर के नेतृत्व वाली   भाजपा सरकार द्वारा भी निर्णय लिया गया  कि  मुख्यमंत्री, मंत्रियों, विधानसभा अध्यक्ष  और विधायकों के वेतन-भत्तों पर इन्कम  टैक्स का भुगतान, जो पहले  सरकारी कोष से किया जाता  था, वह सम्बंधित पदाधिकारयों को उनकी जेब से ही अदा करना होगा. 

ज्ञात रहे कि करीब 5 वर्ष पूर्व  सितम्बर, 2019 में उत्तर प्रदेश में  योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में  भाजपा सरकार ने अपने पहले  कार्यकाल में  भी ऐसा निर्णय लेकर तत्काल प्रभाव से लागू  कर दिया गया था. यही नहीं मार्च, 2018 में पंजाब की तत्कालीन अमरेन्द्र सरकार द्वारा भी प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, नेता प्रतिपक्ष के सम्बन्ध में ऐसा कानूनी प्रावधान कर दिया गया था. 

 ज्ञात रहे कि देश के प्रधानमंत्री एवं केंद्रीय मंत्रीपरिषद के समस्त सदस्यों, लोकसभा अध्यक्ष/ उपाध्यक्ष एवं लोकसभा/ राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष  द्वारा भी वेतन-भत्तो  पर आयकर का  भुगतान उनकी  जेब से ही किया जाता है.  हेमंत ने 2 वर्ष पूर्व हरियाणा  के  तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल,  उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, संसदीय कार्य मंत्री कंवर पाल को लिखकर  हरियाणा  सरकार  से भी   हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पंजाब सरकार के उपरोक्त  फैसलों का अनुसरण करने की अपील की गई थी हालांकि आज तक इस कोई कार्रवाई‌ नहीं की गई है.

बहरहाल, हेमंत ने आगे बताया कि   मौजूदा तौर पर हरियाणा में लागू  तीन कानूनों अर्थात हरियाणा के मंत्रियों का वेतन और भत्ते कानून, 1970 की धारा 6 के अंतर्गत  मुख्यमंत्री और  मंत्रियों के वेतन-भत्तों पर, हरियाणा  विधानसभा के स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का वेतन और भत्ते कानून, 1975 की धारा 6 में विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) और उपाध्यक्ष के वेतन-भत्तों पर एवं हरियाणा विधानसभा (सदस्यों का वेतन, भत्ते और पेंशन) कानून, 1975 की धारा 4(4) में सदन में नेता प्रतिपक्ष  के वेतन भत्तों पर आयकर का भुगतान प्रदेश सरकार द्वारा अर्थात सरकारी खजाने से करने‌‌ का कानूनी प्रावधान है. हालांकि इसी 1975 कानून की धारा में विधायकों के केवल भत्तों पर भी सरकार द्वारा आयकर का भुगतान करने का उल्लेख  है.

रोचक बात रह है कि करीब 7 वर्षों तक अर्थात वर्ष 2011 से 2018 तक  प्रदेश  सरकार द्वारा विधायकों को मिलने वाले  मासिक वेतन पर भी आयकर का भुगतान किया जाता रहा था. जब हेमंत ने 6  वर्ष पूर्व  फरवरी,2018  में  हरियाणा  विधानसभा सचिवालय में एक  आर.टी.आई. दायर कर जब इस सम्बन्ध में  सूचना मांगी  तो उसके  जवाब में  संबंधित शाखा  द्वारा  यह स्वीकार  किया गया था  कि गलती/ भूल- चूक  से  विधायको के  वेतन पर भी आयकर का भुगतान राज्य सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2010-11 से लेकर 2017-18 तक किया गया.

ज्ञात रहे  कि हरियाणा में विधायको को मासिक वेतन देने संबंधी  प्रावधान अप्रैल, 2011 में तत्कालीन हुड्डा सरकार द्वारा उपरोक्त 1975 कानून में विधानसभा द्वारा संशोधन कर डाला गया था. हालाकि उक्त प्रावधान को पिछली तारिख अर्थात   7 सितम्बर, 2010 से लागू किया गया था. उस समय संसदीय कार्य मंत्री रणदीप सुरजेवाला  थे.  आरम्भ में विधायको का मासिक केवल  10,000 रुपये  था जो  बढ़ते-बढ़ते मौजूदा तौर पर  40,000 रुपये प्रतिमाह है. आरटीआई के जवाब में   विधानसभा सचिवालय द्वारा राज्य सरकार द्वारा विधायकों के वेतन पर आयकर के भुगतान के तौर पर कुल 48 लाख 14 हज़ार रुपये  की धनराशि   का उल्लेख किया गया था.

हालांकि हेमंत को उपरोक्त आंकड़े से संतुष्टि नहीं हुई अत: उन्होंने  प्रथम अपील दायर की  थी  जिसकी निजी सुनवाई में  उन्होंने  उक्त धनराशि की दोबारा से गणना  करवाने की मांग की थी. इसके बाद संशोधित जवाब में विधानसभा ने  हेमंत को जवाब दिया  कि यह राशि लगभग हालांकि  2.87 करोड़ रुपये बनती है. इसके बाद जब विधानसभा ने यह राशि तत्कालीन  विधायको के वसूल करने की कवायद प्रारम्भ करनी चाही  तो केवल सत्तारूढ़ भाजपा के ही नहीं अपितु कांग्रेस, इनेलो आदि सभी पार्टियों के तत्कालीन विधायको के इस पर आपत्ति की  गई थी परन्तु  तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इस धनराशि की वसूली के फैसले पर अडिग रहे और वह  आरम्भ हो गयी थी. हर विधायक के मासिक वेतन-भत्तों से और पूर्व विधायकों की पेंशन से हर माह 20 हज़ार रुपये की मासिक किश्त लगाकार उक्त धनराशि  वसूल की गयी थी.

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