कमलेश भारतीय

पंद्रहवीं लोकसभा का पहला दिन आपातकाल बनाम संविधान के नाम रहा, यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं । हुआ यह कि जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ लेने आये, तभी विपक्ष ने संविधान की प्रतियां सदन में लहराईं और प्रधानमंत्री नजर तुरंत कहा कि आपातकाल के समय संविधान बुरी तरह कुचला गया ! श्री मोदी ने यह भी कहा कि संसद ड्रामे व स्लोगन से नहीं चलेगी ! उन्होंने कहा कि पच्चीस जून न भूलने वाला दिन है । पचास साल पहले इसी दिन संविधान कुचला गया था ! देश को जेलखाना बना दिया गया था और लोकतंत्र को बुरी तरह कुचला गया था ! इसके जवाब में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि संविधान पर हमला हम स्वीकार नहीं करेंगे ! यह भी कहा गया कि पिछले दस साल से देश में अघोषित आपातकाल है, प्रधानमंत्री अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकते ! विपक्ष ने नीट पर्चा लीक होने‌ के लिए शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के समय नीट नीट, शेम शेम के नारे भी लगाये। विपक्षी नेताओं ने श्रीमती सोनिया गांधी सहित संविधान की प्रतियां लेकर संसद परिसर में प्रदर्शन‌ भी किया !

इस तरह यह तो पहले दिन ही स्पष्ट हो गया कि इस बार विपक्ष हमलावर रहेगा और पहले की तरह सांसदों को मनमर्ज़ी से बाहर नहीं निकाला जा सकेगा !

क्या सच में पचास साल पहले लगाये गये आपातकाल को दोषी ठहराया जाता रहेगा या फिर‌ जैसे कि कांग्रेस कह रही है कि दस साल से अघोषित आपातकाल लगाया गया है, वह ज्यादा खतरनाक है ?

अभी दस साल में मीडिया का चेहरा कितना बदल गया, यह किसी से छिपा नहीं ! अनेक बड़े पत्रकार चैनलों से या तो बाहर कर दिये गये, या खुद्दारी में इस्तीफा दे गये ! सबसे बड़ा उदाहरण एनडीटीवी, जिसके चर्चित एंकर रवीश कुमार को जब झुका नहीं पाये, तब पूरा चैनल ही खरीद लिया ! यह कैसी आज़ादी ? इसीलिए अपनी यात्राओं में राहुल गांधी एक बात कहते आ रहे हैं कि मीडिया के मित्रो लेकिन आप हमारे मित्र नहीं हैं। आप चौबीस घंटे में दो मिनट भी हमारी कवरेज नहीं करते क्योंकि आप मज़बूर हैं ! इतना मज़बूत हो गया मीडिया पिछले दस सालों में ? सोशल मीडिया पर आमजन का भरोसा बढ़ा है और टीवी चैनलों के तो स्विच ही ऑफ कर रखे हैं लोगों ने ! बहसें भी प्रायोजित हो रही हैं ! क्या यह स्थिति बदलेगी? आपातकाल चाहे घोषित हो, चाहे अघोषित, दोनों ही रूपों में स्वीकार्य नहीं, यह लोकतंत्र के लिए श्रेयस्कर नहीं कहा जा सकता ! दुष्यंत कुमार के शब्दों में :

कहां तो तय था चिरागां हरेक घर के लिए
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए !
-पूर्व‌ उपाध्यक्ष, हरियाणा ग्रंथ अकादमी, 9416047075

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