भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम। आज सारा दिन हरियाणा में योग दिवस की धूम रही। सरकारी स्तर पर योग दिवस मनाया गया और हर जगह विशेष अतिथि योग दिवस पर पहुंचे। योग से अधिक अथितियों पर लोगों का ध्यान केंद्रित रहा। मजेदारी यह कि कई स्थानों पर तो मुख्य अतिथि जब योग करते दिखाई दिए तो दर्शक या अन्य वहां योग करने आए लोग उनकी योग से अनभिज्ञता देखकर मुस्कुराते नजर आए।

योग हमारे देश की अत्यंत प्राचीन परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति लगभग 26 हजार वर्ष पूर्व हुई थी और योग के जनक या पितृ पुरूष पतंजलि ऋषि को कहा जाता है। योग विद्या में भगवान शिव को आदियोगी माना गया है। भगवान शिव के बाद वैदिक ऋषि-मुनियों से योग का चलन माना जाता है। बाद में भगवान कृष्ण, अवतार महावीर और अवतार बुद्ध ने इन्हें अपनी तरह से विस्तार दिया और इनके बाद पतंजलि ऋषि ने योग को सुव्यवस्थित रूप दिया। योग प्रमाण सिंधू घाटी की सभ्यता से भी प्राप्त हुए थे, जिनमें शारीरिक मुद्राएं और आसन उस काल में भी योग के अस्तित्व के प्रमाण है।

चलिए अब बात करते हैं मेरी दृष्टि से योग क्या है:
सर्वप्रथम तो मैं यह कहना चाहूंगा कि हमारे ग्रंथों में लिखा है कि योग और भोग एकांत में होने चाहिए लेकिन यह कलयुग है सतयुग की परंपराओं में अंतर तो आएगा ही लेकिन कलयुग में भी योग का सर्वप्रथम लक्ष्य अंतकर्ण को भगवान की अनुभूति से जोडऩा है, जिससे अपने अंदर के सारे विकार समाप्त हो जाएं। इनमें सर्वप्रथम तो प्रश्न यह आता है कि मैं कौन हूं? और मेरा समाज में क्या दायित्व है? उसके पश्चात ईश्वरीय अनुभूति प्राप्त होने से मनुष्य में काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि का नाश हो यही योग का परम लक्ष्य है परंतु आज के कार्यक्रम लोभ, मोह, अहंकार से अछूते नजर नहीं आए।

लोगों में होड़ लगी थी कि कौन मुख्य अतिथि बने। इस कार्यक्रम में उपस्थिति अधिक हो और इस कार्यक्रम में कौन मुख्य अथितियों से अपने संबंध बना सके। कुल मिलाकर समझ यह आया कि यह कार्यक्रम योग की मूल भावना से विपरीत नजर आए।

मुझे याद आता है अपना स्कूल का समय। जब मैं स्कूल जाता था तो उस समय मेरे स्कूल में ही नहीं अपितु हर स्कूल में एक पीरियड पीटी का होता था, जिसमें खेल और साथ-साथ योग के आसन भी कराए जाते थे परंतु जानें कब आधुनिकता की दौड़ में वह सब समाप्त हो गए और आज स्कूलों में केवल उन चंद विद्यार्थियों को व्यायाम और योग तथा उस खेल का अभ्यास कराया जाता है, जिनसे स्कूल वालों को मैडल लाने की आवश्यकता हो।

जहां तक मैं समझता हूं, योग और योगा दोनों भिन्न-भिन्न हैं। योग आत्मा को परमात्मा के निकट लाता है, मनुष्य सात्विक गुणों की ओर प्रेरित करता है, जबकि योगा का मुख्य लक्ष्य शरीर को शारीरिक रूप से सुदृढ़ करना है, जिससे वह स्वस्थ रहे, निरोग रहे और बीमारी के नजदीक न आए। वैसे देखा जाए तो योग और योगा दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं, क्योंकि यदि मन स्थित नहीं होगा तो योगा नहीं कर सकते और शरीर स्वस्थ नहीं होगा तो मनुष्य को योग करने में परेशानी होगी।

योग के मुख्य लक्ष्य काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से मुक्ति पाना है लेकिन आज के कार्यक्रम इन सबसे दूर दिखाई दिए। जिसने शायद अपने जीवन में कभी योग नहीं किया था, वह मुख्य अतिथि बनकर योग करता नजर आया। दूसरों को यह संदेश तो दे रहा है कि आप नित-प्रतिदिन योग करो परंतु क्या उसने स्वयं से यह प्रतिज्ञा की कि वह नित्य योग करेगा? क्या उसने काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार त्यागने का निर्णय अपने मन में लिया? कुल मिलाकर यह दिखाई दिया कि योग के सिद्धांतों के विरूद्ध राजनैतिक रूप से शायद राजनैतिक लाभ के लिए इतने धूमधाम से योग दिवस मनाया गया।

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