हुड्डा व खट्टर दोनों ही अपने अहम के चलते नही बन पाये सुपर हीरो

रोहतक व सोनीपत सीट जैसी रणनीति अन्य सीटों पर क्यों नही की हुड्डा ने

भारत सारथी/ऋषिप्रकाश कौशिक

सूबे की दस लोकसभा सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों की स्थिती बराबर रही यानि की प्रदेश की जनता ने दोनों पार्टियों को बराबर मान देते हुए पांच पांच सीट दे दी। दोनों ही पार्टियों को बराबर का हिस्सा मिलने से भले ही दोनों ही पार्टियों के नेताओं के साथ कार्यकर्ताओं के पांव जमीन पर नही टिकते हो लेकिन आगामी विधान सभा के लिए दोनों ही पार्टी के नेताओं को इस पर विचार करना चाहिए कि क्या वो प्रदेश में विधानसभा में आने वाले समय में अपनी सरकार बना पायेगें या नही।

लोकसभा के परिणामों के आधार पर अपनी सीट जितने की भूल ही विधान सभा में उनको सत्ता से दूर कर सकती है। अब बात यदि लोकसभा के परिणामों पर हारने वाली सीटों की जाये तो मनोहर लाल खट्टर और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जीती हुई सीटों पर तो अपना श्रेय ले रहे है लेकिन हारी हुई सीटों की जिम्मेदारी लेने से बच रहे है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा को तो पांच सीट जीतने पर आगामी विधान सभा में अपनी सरकार बनाने का दावा करने से फुर्सत नही है तो मनोहर लाल खट्टर सिर्फ सरकारी अधिकारियों के माथे हार का ठीकरा फोड़ कर जिम्मेदारी से भाग रहे है।

यदि हम कांग्रेस व भाजपा की पांच सीटों पर हार की बात करे तो मनोहर लाल खट्टर व हुड्डा ने अपने अपने अहम के चलते अपनी पार्टियों को इन सीटों का नुक्सान कर दिया क्योंकि यदि ये दोनों नेता अपने अपने अहम को त्याग देते तो यह आंकड़ा बदला जा सकता था। अब कांग्रेस व भाजपा की छोटी हार वाली सीट भिवानी व सोनीपत की बात करे तो यदि ये दोनों नेता अपनी रणनीति को सही करते तो यहां परिणाम बदले जा सकते थे। भिवानी में यदि हुड्डा किरण चौधरी की टिकट कटवाने के बाद भी किरण चौधरी को सही तरह से साध लेते तो भिवानी में धर्मबीर सिंह को हराया जा सकता था लेकिन हुड्डा को तो किरण चौधरी को रसातल में पहुंचाने का जो काम करना था। वही सोनीपत से मनोहर लाल भी सही नेतृत्व करते और अपने नेताओं को सीधी लाईन में चलने का आदेश देते तो वो सोनीपत सीट आसानी से जीत सकते थे क्योंकि सोनीपत शहर से नेता अपनी लोकसभा की अपेक्षा दूसरी लोकसभा में प्रचार करते रहे जहां उनका जनाधार कुछ नही था। गोहाना में मनोहर लाल यदि नायाब सैनी के दौरा करवा देते तो सोनीपत सीट आसानी से जीत रहे थे। अब यदि गुरूग्राम और हिसार सीट की बात करे तो हुड्डा ने अजय यादव को नकार कर गुरूग्राम सीट को राव साहब की झोली में ड़ाल दिया तो मनोहर लाल खट्टर ने कुलदीप बिश्रोई और कैप्टन अभिमन्यू को खूड्डे लाईन लगाकर हिसार से जेपी को जितवा दिया। अब बात फरीदाबाद और अंबाला की करे तो यहां भी हुड्डा और मनोहर लाल अपने अपने अहम को बढ़ाते हुए खेला कर दिया। फरीदाबाद में हुड्डा के रिश्तेदार करण दलाल ने हुड्डा को और अंबाला में कद्दावर नेता अनिल विज ने मनोहर लाल ने अपनी अपनी हैसियत दिखाने का काम कर दिया।

वहीं बात सिरसा की जाये तो इस सीट पर खुद कांग्रेस का एक गुट यह सीट हारना चाहता था लेकिन मनोहर लाल ने इस सीट को कांग्रेस को गिफ्ट करने का काम कर दिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है पूर्व सांसद दुग्गल का टिकट काटकर अशोक तंवर को टिकट देना किसी भी दृष्टि से ठीक नही था। उनका कहना था कि यदि अशोक तंवर को इस चुनाव में पूरे प्रदेश में प्रचार की जिम्मेदारी देकर उनको विधान सभा के लिए रिजर्व रखा जाता तो पूरे प्रदेश में उनका जातिगत वोट भी प्राप्त होता और सिरसा में मुकाबला कड़ा होता।

सार यही है कि हुड्डा और मनोहर के अहम के कारण पांच सीटों पर परिणाम एक दूसरे के पक्ष में चला गया जिसका खामियाजा आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा को पडऩा तय माना जा रहा है क्योंकि यदि कांग्रेस या भाजपा आठ सीट जितने में कामयाब हो जाती तो प्रदेश में उनकी सरकार बनने में कोई रोड़ा नही अटकता लेकिन अब आधे आधे सांसदों के दम पर सरकार बनानी आसान नही है।