ईश्वर तो ब्राह्मण और संतों के संरक्षक हैं। इन की उपेक्षा करना किसी को भारी पड़ सकता है क्योंकि यह ईश्वर के मुख हैं। इन की वाणी से निकला हुआ आशीर्वाद सदैव फलित होता है और क्रुद्ध अवस्था में दिए श्राप का परिहार तो ब्रह्मा जी के पास भी नहीं है।

आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश” देवभूमे पानीपत

मैं तो शंकराचार्य जी का अनुयायी हूं, शैव मत में आस्था रखता हूं। सत्य पालन कहने लिखने सुनने से नहीं डरता…

बिप्र एक बैदिक सिव पूजा
करइ सदा तेहि काजु न दूजा
परम साधु परमारथ बिंदक
संभु उपासक नहिं हरि निंदक

यदि कोई व्यक्ति या राजा या धर्मरक्षक हृदय में विश्व कल्याण की मनोधारणा को सदैव प्राथमिकता देने सन्त महापुरुष धर्मगुरु दूसरों को विपदा हरने वाले विप्र ब्राह्मण और पृथिवी का अपमान करेगा , वैदिक नियमन का उल्लंघन करेगा तो प्रकृति अपना संतुलन स्थापित करना जानती है। हमारी भारतीय संस्कृति सनातन धर्म समस्त प्रकार के सुकृत्यों को सम्पादित करने के नियम भी पंचांगों में दिए गए हैं कि आप के द्वारा किए गए कार्य सफल हों, आप की ख्याति यश मान में वृद्धि हो, साधु संत महापुरुष ब्राह्मण और जनमानस आप को समृद्धि का आशीर्वाद प्रदान करे।

हम भारतीयों और सनातन धर्मियों के लिए श्री राम मन्दिर एक महान उपलब्धि हो सकता था यदि इस का भूमि पूजन, शिलान्यास, श्रीविग्रह की प्राण प्रतिष्ठा और लोकार्पण शुभ मुहूर्तों में ब्रह्माज्ञानुसार किया जाता। जब शिलान्यास हुआ था तब दक्षिणायन थी, रिक्त तिथि थी, तब बुधवार को अभिजीत नक्षत्र का आश्रय लिया गया था लेकिन बुधवार को यह अभिजीत नक्षत्र होता ही नहीं है। इस वर्ष 22 जनवरी 2024 को किसी भी पंचांग में प्राण प्रतिष्ठा का कोई शुभ मुहूर्त नहीं था, सभी ब्राह्मणों के पास पंचांग हैं वह अवलोकन करें कि क्या मुहूर्त था, क्या यह ब्राह्मण विप्र पंचांग नियमन, श्री सनातन धर्म की सर्वोच्च शंकराचार्य पीठों का अपमान किया गया। शिखरविहीन अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ तो यही हुआ की किरीटविहीन मुकुट बिना राज्याभिषेक ( अतीत काल में राजा जहां कहीं भी कूच करते थे सब से उस राज्य के ध्वजवाहक सैनिक लश्कर की अगुवाही करते थे) और हमारा वास्तविक मंतव्य मंदिर नहीं अपितु राजनैतिक था … श्री राम लला के सहारे चुनावी वैतरणी पार करना।

हर व्यक्ति अपने स्वभिमान के लिए लड़े तो ईश्वर भी कवच बन कर हमारी रक्षा करते हैं। यह गारंटी भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भागवतगीता के नवम अध्याय के 22 वें श्लोक में दी है … अन्यान्यश्चचिन्तयते माम ये जन: पर्यापुसते ।आप ईश्वर को समर्पित होकर कोई कार्य करें तो सही … सोते उठते, खाते पीते, रोते हंसते, चलते फिरते अर्थात जीवन की हर परिस्थिति में … आप का चिन्तन ईश्वर के प्रति समर्पित वह चिंतन ऐसा नहीं था, यदि चिन्तन सात्विक होता तो धर्म गुरु शंकराचार्य, विप्र ब्राह्मण पृथिवी जिस का बिना मुहूर्त खनन किया गया और पंचांग की उपेक्षा न होती। राष्ट्र देवोभाव के मनोभाव होंगे तभी हमारा धर्म सुरक्षित होगा। यदि हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म हमारी रक्षा करेगा, वेदाज्ञा है धर्मो रक्षति रक्षिता।

आप किसी नियम का पालन ही न करें, वृद्धों का अपमान करें और पंचांग नियम को भी माने और फिर अन्य समय में आकाश में आंख उठा कर प्रतीक्षा करें कि कब आयेगा … विमान। विमान तो तभी आयेगा जब आप पूर्ण समर्पण और निष्काम भाव से उसे याद करेंगे तभी तो वह दया करेगा। हम सभी रोना रो रहे हैं अयोध्या वालों को नाहक कोस रहे हैं कि उन्होंने इनको पराजित कर दिया तो यह तो भगवान ने आईना दिखाया है … गोस्वामी तुलसीदास जी ने तो श्री चरित मानस में हमें पहले से ही परिणामों के लिए सचेत किया था, लेकिन हम श्री राम चरित पढ़ते ही नहीं, हम ने भगवान श्री कृष्ण की शुभ मुख वाणी श्रीमद्भागवतगीता को भी घर में लाल कपड़े में लिपेट कर रखा हुआ, अभी पढ़ना ही शुरू नहीं किया। कभी अवसर मिले तो श्री गीता जी के माध्यम से भगवान के प्रकट होने के कारण इस ग्रंथ से ग्रहण करना।

श्री राम चरित मानस के अरण्य काण्ड की चौपाई तो आज के राजनैतिक परिपेक्ष अक्षरक्ष सत्य सिद्ध हो रही है , जिस ने हमें नियमन न पालन करने पर ऐसा परिणाम बता दिया है कि … हमारे अपने मनोभाव शुद्ध और सात्विक होंगे तो स्रूपनखा की तरह नाक नहीं कटेगा।

राजनीति बिनु धर्म बिनु धर्मा
हरि समर्पित बिनु सद्कर्मा
विद्या बिनु वेद उपजाए
श्रम फल पढ़े किए बिनु पाए

गोस्वामी जी ने तो रामायण में कहीं नहीं लिखा कि वह किसी राजा या शासक विशेष के लिए अवतरित होंगे … भगवान तो
विप्र धेनु सुर संत हित लीन मनुज अवतार।

एक भारतीय फिल्म में उस फिल्म के नायक को अजायब घर से हीरा चुराना था, भारतीय फिल्म नियमन के अनुसार वह नायक सब जगह अपनी हेकड़ी दिखा रहा था, विलेन को मार रहा था, हिरोइन संग नाच गा रहा था, चालबाज था येन केन उस हीरे को उठा भी लेता है और जब गुफा के मार्ग जिससे वह वहां हीरे तक पहुंचा था हीरा उठा कर वह जब गुफा से बाहर निकलने लगता है तो वहां स्वयं अस्त्र शस्त्र लिए भगवान खड़े होते हैं और उससे हीरा खींच लेते हैं … श्री राम चरित मानस में नारद जी भी काम मोहित होकर शादी करवाने गए थे और दक्ष प्रजापति भी अधिक कानून झाड़ते थे शिव का अपमान कर बैठे उनका भी यही हाल हुआ था।विषय यह है ईश्वर की माया वहां से शुरू होती है जहां हमारी बुद्धि की सोच समाप्त हो जाती है कि हम सर्वश्रेष्ठ हैं। यही घटित हुआ है कि भगवान ही सब कुछ करने कराने वाले हैं, हम तो छद्म नायक बने फिरते हैं , ईश्वर से बड़ा और कोई भी नहीं हो सकता। सारांश सत्य यह है कि यदि हम अपने मन में परमार्थ के भावों को अन्यथा मंतव्य रखे बिना धर्म पर चलेंगे तो धर्म ही हमारी रक्षा करेगा। यदि श्रेय लेना चाहेंगे तो हीरा भगवान खींच कर ले जायेंगे। हम बस दुनियां में अभिनय ही करते रह जायेंगे।

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