सूर्यास्त के बाद दिवंगत आत्मा के परिवार के साथ सांत्वना देना शास्त्रों के विरुद्ध।

गुरुग्राम, 2 जून। कल समाचार प्राप्त हुआ की हमारे माननीय मुख्यमंत्री नायब सैनी अपने साथियों के साथ या यूं कहें भाजपा पदाधिकारी के साथ दिवंगत विधायक राकेश दौलताबाद के निवास पर गए उनके परिवार को सांत्वना देने अच्छा लगा की मुख्यमंत्री स्वयं अपने साथियों के साथ अपने दिवंगत विधायक के परिवार की चिंता में संलिप्त है.

साथ ही मन में एक विचार आया की इस प्रकार सांत्वना देना हमारे धर्म शास्त्रों में सूर्यास्त के बाद और शनिवार के दिन जाना तो वर्जित है लेकिन मैं कोई धर्म का ज्ञाता नहीं इसलिए मैंने धर्म मर्मज्ञ डॉ. महेंद्र शर्मा से जानकारी लेनी चाहिए और उनसे प्रार्थना की इस बारे में कुछ बताएं जो कुछ उन्होंने बताया वह उन्हीं के शब्दों में आपके सामने प्रस्तुत है आप ही निर्णय कीजिए की उनका इस समय जाना उचित था या अनुचित – ऋषि प्रकाश कौशिक

व्यवहार रूप में शौचाशौच नियम

यद्यपि हमारी भारतीय संस्कृति के नियम बहुत कठोर हैं जिन पर अक्षरक्ष पालन करना आसान नहीं। जैसा कि धर्म के दस लक्षणों में यह बताया गया …

आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश”

धृति: क्षमा: दमोSस्तेय शौचमिन्द्रीय निग्रह:।
धीर्विद्या सत्यं क्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्।।

जीवन में हम इन धर्म के दस लक्षणों में यदि एक लक्षण को छोड़ कर अन्य सभी लक्षणों का पालन करें तो धर्म धर्म नहीं रहेगा। मान लो हम में सहिष्णुता है, हम ने प्रतिशोध और क्रोध भी त्याग दिया है यदि हम ने उस व्यक्ति को हृदय से क्षमा न किया तो धर्म का अस्तित्व नहीं रहेगा। विषय यह है कि हमारे धर्म मर्यादा कानून और संविधान नियमन इतने क्रम में है और कठोर हैं तो क्या हम इनका पालन कर रहे हैं? आज के समय में यही यक्ष प्रश्न है यदि हम सभी जो स्वयं को सनातन धर्मी हिंदू कहते हैं , सारा दिन इसी पर राजनीति करते और सुनते है क्या हम धर्म को अपने जीवन में क्रियान्वित कर रहे हैं? यदि हां कर रहे हैं तो हमारे जीवन में सहजता सहिष्णुता सरलता कितनी है, क्या हमारे जीवन के आने वाली व्याधियां समाप्त हो गई हैं, क्या हम ने धर्म की दृष्टि “मित्रस्य चक्षुषा समीहसे” सब प्राणियों को समदृष्टि से देखना और व्यवहार करना प्रारम्भ कर दिया है। नित्य प्रति देवस्थानों तीर्थों में जाने से व्रत प्रतिपालन और दान दक्षिणा आदि करने के बाद भी कष्ट और व्याधियां समाप्त तो क्या ? वह तो कम होने का भी नाम नहीं लेती।

रथाचर्पट स्त्रोत में आदि गुरु शंकराचार्य कहते हैं…
कुरुते गंगा सागर गमनं व्रत प्रतिपालन अथवा दानम्।
ज्ञान विहीनं सर्वमतेन् मुक्ति न लभते जन्म शतेन।।

अज्ञानता ही समस्त समस्याओं की जननी हैं। हम गंगा स्नान कर के पूर्व में किए हुए पापों का प्रायश्चित कर के पुनः पापों को करना बंद नहीं करते, अब जब सब को ज्ञात है सत्य ही धर्म है और झूठ पाप है तो फिर झूठ क्यों बोलते हैं।
विषय शौच का है।

शिव अनुशासन में तो हम सब के लिए यह नियम बताया गया है…
नित्योदकी नित्यस्वाध्यायी नित्ययज्ञोपवीती पतितान्नवर्जी।
सत्यं ब्रुवन गुरु कर्म कर्माण ब्रह्मणश्चवते ब्रह्म लोकात्।।

हम नित्य प्रति प्रभात में उठें , स्वाध्याय करे कि ईश्वर ने उसे संसार में किस कार्य के सृजन के लिए भेजा है, यज्ञ करें अर्थात त्याग करें, वह व्यक्ति पतितों की न तो संगत करें और न ही उनके साथ बैठ कर भोजन करें ताकि उसका आचरण सात्विक रहे वह दूषित न हो, वह मनुष्य सदा सत्य बोले और गुरु की आज्ञा पालन करें। ऐसे सुकृत्य करने वाला मनुष्य ब्रह्म लोक में ख्याति प्राप्त करता है। शौचाशौच के नियमन इस में मुख्य भूमिका का निर्वहन करते हैं। इन नियमों की व्याख्या के प्रमुख स्त्रोत निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु, गरुड़ पुराण , पंचांग और हमारी कुल परंपराएं हैं। व्यक्ति को चाहिए कि जीवन में पवित्रता बनाए रखने के लिए जिनके घर में सूतक या पातक हुआ है वहां सूतक काल चौदह दिन (Quarantine) तक भोजन जल पान आदि न करें। वास्तव में इस सूतक में शौच काल एक पक्ष (Quarantine) का अर्थ विज्ञान किन आरोग्यता के सिद्धांत “जीवेम शरद शतम” से जुड़ा हुआ है .. मृत्यु उपरांत मृतक की बीमारी के कीटाणु, जीवाणु या विषाणु उस घर आंगन के वायुमंडल या वातावरण में व्याप्त रह सकते हैं जिन की आयु एक पक्ष तक हो सकती है। कोई अन्य नवांगतुक इस गृह से किसी प्रकार का रोग क्यों प्राप्त करे, सूर्य काल खंड में सूर्य के तेज से उन विषाणुओं का नाश होता रहता है लेकिन सूर्यास्त के बाद वह विषाणु उग्र हो जाते है। इसलिए सूर्यास्त के पश्चात ऐसे घरों में जहां किसी की मृत्यु हुई होती हैं उसमें दूसरे लोगों का प्रवेश वर्जित किया गया है।हमारे यहां तो मृतक का दाह संस्कार भी सूर्यास्त से पूर्व करने का वैदिक नियम है। हमारे यहां सूर्यास्त के पश्चात किसी के यहां सांत्वना व्यक्त करने की भी वर्जना है।

अशौच 2 प्रकार का होता है … जनना शौच और मरणाशौच।

गर्भस्त्रावादि आशौच व्यवस्था जननाशौच व्यवस्था मृत्योत्प्ति में शौच विचार, मृताशौच व्यवस्था नियमन , सगाई हो जाने पर यदि कन्या का निधन हो जाए, नानके घर में या दौहित्र या जमाता का देहांत हो जाए , बंधूत्रय ( बुआ मौसी और मामी) के पुत्रों का निधन हो जाए तो शौच व्यवस्था, घर में किसी 1 व्यक्ति की मृत्यु के बाद 5 या 10 दिन में किसी और की मृत्यु हो जाए तो ग्रंथों का अनुशीलन करना चाहिए। यद्यपि मृत्यु भोज की समाज वर्जना करता है लेकिन धर्म ग्रंथों में धर्म शान्ति वार्षिकी श्राद्ध शय्यादान और तर्पण में ब्राह्मण भोज अत्यावश्यक कृत्य है। यह वर्जना सर्वत्र है की सूर्यास्त के पश्चात हमारे समाज में पारंपरिक नियमन है कि दरियां उठा ली जाती हैं। यहां तक कि महाभारत युद्ध से पूर्व तो सूर्यास्त के पश्चात युद्ध नहीं लड़े जाते थे। इन युद्ध परमराओं का पालन न करना भी कलियुग के प्रवेश से ही आरंभ हुआ जो आज विकराल रूप ले चुका है। यदि किसी का निधन हुआ ही सूर्यास्त के पश्चात है तो उस शोक काल की व्यवस्था के नियम अलग हैं क्योंकि देह अभी घर में ही रखी है उसका अंतिम संस्कार नहीं हुआ है। जनन और मरण शौच के पश्चात दैनिक क्रियाएं सामान्य ढंग से की जाती हैं , जब तक घर में यज्ञहवन से पवित्रता नहीं होती तब तक उस घर का जल भी ग्रहण नहीं करना चाहिए और सूर्यास्त के पश्चात किसी सूतकी के यहां नहीं नहीं जाना चाहिए।

आज की स्थिति तो यह है …
यस्य मतं तस्य मतं , मतं यस्य न वेद स:।
अविज्ञातं विजानतां, विज्ञातम विजानताम्।।

जो यह मानता है कि वह ब्रह्म को नहीं जानता, वही उस ब्रह्म को जानता है। जो यह मानता हो कि वह ब्रह्म को जानता है वही उस ब्रह्म को नहीं जानता। जानने वाले उसे नहीं जानते और न जानने वाले उस ब्रह्म को जानते हैं। वास्तविक स्थिति यह है जो जानते हैं वह कहते हैं उसको नहीं पाया जा सकता। जो ऐसा कहते हैं वास्तव में वही ब्रह्म को समझ सकें हैं।

लेकिन आज कलियुग की महिमा निराली है जिन को श्रोता होना चाहिए था वही वक्ता बन कर हम को धर्म नियम कानून आज की स्थिति संविधान बता रहे हैं।

क्या करें … जिन के नख और जटा बिसाला।
सोई तापस प्रसिद्ध कालिकाला।।

श्री गुरु शंकराचार्य पदाश्रित, आचार्य डॉ महेन्द्र शर्मा “महेश”
शास्त्री वैदिक ज्योतिष संस्थान,बाबा गंगापुरी रोड. पानीपत

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