सतपाल ब्रह्मचारी ने हुड्डा की महिमा मंडित कर अपने राह में बिछा लिये कांटे ?

भारत सारथी/ ऋषिप्रकाश कौशिक

लोकसभा चुनाव में जातिय समीकरणों को साध कर अपने चहेतों को टिकट दिलवाने में में भले ही भूपेंद्र सिंह कामयाब हुुए हुड्डा हो लेकिन उनकी सोनीपत सीट पर सतपाल ब्रह््मचारी को टिकट दिलवाना भारी पड़ गया। सतपाल ब्रह्मचारी भी टिकट मिलने की खुशी में इतने उत्साहित हो गये कि उन्होंनें हुड्डा को ही टिकट का श्रेय देकर उनको माई-बाप मान लिया। बता दे कि सोनीपत लोकसभा सीट पर पिछली दो बार के चुनावों के परिणामों से सीख लेते हुए कांग्रेस ने जींद जिले के रहने वाले किसी ब्राह्मण नेता को टिकट देने की रणनीति पर काम किया था जिसके चलते उन्होंनें सतपाल ब्रह्मचारी को टिकट देने का काम किया है। टिकट मिलते ही जाट वोटरों को रूझान कांग्रेस की अपेक्षा इनेलो व जजपा की ओर थोड़ा सा बढ़ा है और सतपाल ब्रह़मचारी का शुरूआती दौर में माना जा रहा था कि वो भाजपा प्रत्याशी मोहल लाल बड़ौली को टक्कर देने का काम करेगें लेकिन जिस प्रकार उन्होनेंं जनसभा व प्रचार के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गुणगान कर कांग्रेस के अन्य गुटों से दुरी बनाई है उससे उनका चुनावी ग्राफ नीचे चला गया है। शुरूआती रूझान में कांग्रेस से सतपाल ब्रह्मचारी और भाजपा के राई के विधायक मोहन लाल बडौली के बीच आमने-सामने की टक्कर मानी जा रही थी लेकिन इनेलो व जजपा से मजबूत जाट प्रत्याशी आने से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है।

सोनीपत लोकसभा क्षेत्र में सोनीपत जिले के गोहाना, गन्नौर, बरोदा, राई, सोनीपत, खरखौदा और जींद जिले के सफीदों, जींद, जुलाना विधानसभा क्षेत्र आते हैं। परिसीमन के बाद 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में जींद को पहली बार सोनीपत संसदीय क्षेत्र में शामिल किया गया। इससे पहले यह हिसार लोकसभा क्षेत्र में शामिल था। सोनीपत संसदीय क्षेत्र में कुल 9 विधानसभा क्षेत्र हैं, जिनमें से 6 सोनीपत जिले के हैं। इस कारण सोनीपत का दबदबा होने से सभी पार्टियां सोनीपत जिले से ही अपना प्रत्याशी चुनती हैं। जाति की बात करे तो रोहतक के बाद सोनीपत ही ऐसा लोकसभा क्षेत्र है जहां जाट बाहुल्य क्षेत्र है। जाट लैंड होने के बावजूद भी यहां से दोनों प्रमुख पार्टियों ने अपने प्रत्याशी ब्राह़ण उतारे है।

ताऊ देवीलाल ने सोनीपत से चुनाव लड़ा था और वे चुनाव जीत चुके है। इनेलो ने पूर्व आईपीएस अनुप दहिया और जेजेपी ने भूपेंद्र सिंह मलिक पर अपना दांव खेला है। बता दे कि इस सीट पर 1996, 2014 व 2019 में ही ब्राह्मण प्रत्याशी जीत दर्ज कर सके। अब बात लोकसभा चुनाव के हार जीत के आंकलन की करे तो यहां पर6 लाख जाट वोटर है लेकिन फैसला 2 लाख ब्राह्मणों के हाथों में होने के कारण बाजी मोहन लाल बड़ौली के पक्ष में स्पष्ट तौर पर जाती दिख रही है क्योंकि यदि जाट वोटरों के मतों की बात करे तो यदि जाट वोटरों से चुनाव जीता जाता तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा जाट चेहरा थे लेकिन वो पिछले चुनाव में लगभग पौने दो लाख वोटों से चुनाव हार गये थे। अब चुनाव में इनेलो व जजपा के दोनों चेहरे मजबूत और स्थाई होने के कारण कांग्रेस को भारी नुक्सान कर रहे है। वहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा का टैग लगने से सतपाल ब्रह्मचारी को ब्राह्मण वर्ग ने यह कहते हुए सिरे से नकारने का काम कर दिया है कि यह तो हुड्डा का झौला उठाने वाला है इसको जिताना तो हुड्डा को जिताना है। स्पष्ट तौर पर कहे तो हुड्डा की ब्रह्माणों से नाराजगी ही सतपाल ब्रह्मचारी को वापिस हरिद्वार भेज रही है और मोहन की बंसी यमुना किनारे बजने के प्रबल आसार है।

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