गुडग़ांव, 4 मई (अशोक): बिजली चोरी के मामले को अदालत द्वारा गलत करार देने और जुर्माना राशि का भुगतान 12 प्रतिशत ब्याज दर से उपभोक्ता को करने के आदेश का पालन बिजली निगम ने नहीं किया तो उपभोक्ता ने अदालत में एग्जिक्यूशन पिटीशन दायर कर दी। बिजली निगम के अधिकारियों को लगा कि कहीं अदालत बिजली निगम के बैंक अकाउंट को अटैच न कर दे और बिजली निगम के उच्चाधिकारी बिजली चोरी के गलत मामले में संलिप्त अधिकारी व कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरु न कर दे, इस सबको देखते हुए मजबूरन 12 प्रतिशत ब्याज दर से जुर्माना राशि के भुगतान का चैक अदालत में उपभोक्ता को देना पड़ गया।

जवाहर नगर के उपभोक्ता विरेंद्र कुमार मित्तल के अधिवक्ता क्षितिज मेहता से प्राप्त जानकारी के अनुसार 17 नवम्बर 2020 को उपभोक्ता को बिजली निगम के खिलाफ अदालत में एक केस फाइल करना पड़ा। क्योंकि बिजली निगम द्वारा उन्हें कहा गया था कि उनके यहां लगाया गया बिजली का मीटर 7 दिसम्बर 2017 को उतारा गया है और करीब 3 साल बाद यानि कि 8 अक्तूबर 2020 को उपभोक्ता को निगम की लैबोरेट्री में बुलाया गया और उस पर आरोप लगाया गया कि उसने बिजली के मीटर में टैंपरिंग कर बिजली की चोरी की है और उस पर एक लाख 3 हजार 454 रुपए का जुर्माना लगा दिया था।

अधिवक्ता का कहना है कि तत्कालीन सिविल जज अनिल कुमार की अदालत ने गत वर्ष जनवरी 2023 में उपभोक्ता को बिजली चोरी के आरोपों से मुक्त करते हुए  बिजली निगम को आदेश दिए थे कि 12 प्रतिशत ब्याज दर से जमा कराई गई जुर्माना राशि का भुगतान किया जाए। बिजली निगम ने निचली अदालत के आदेश को गत वर्ष 15 मार्च को उच्च अदालत में अपील की थी। तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश सूर्य प्रताप सिंह की अदालत ने 6 मार्च 2024 को निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए बिजली निगम की अपील को खारिज कर दिया था, लेकिन इस सबके बावजूद भी बिजली निगम ने उपभोक्ता को जमा कराई गई जुर्माना राशि का भुगतान नहीं किया। जिस पर उपभोक्ता ने 27 मार्च 2024 को अदालत में एग्जिक्यूशन पिटीशन दायर कर दी और अदालत से गुहार लगाई कि बिजली निगम का बैंक अकाउंट अटैच कर उसकी धनराशि दिलाई जाए।

अधिवक्ता का कहना है कि बिजली निगम के अधिकारियों ने निर्णय लिया कि यदि उपभोक्ता को भुगतान नहीं किया गया तो जहां अदालत बिजली निगम का अकाउंट अटैच करने के आदेश दे सकती है तो वहीं बिजली निगम के उच्चाधिकारी इस मामले में संलिप्त अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ विभागीय कार्यवाही भी शुरु कर सकते हैं। इसलिए अधिकारियों ने उपभोक्ता को जुर्माना राशि का भुगतान 12 प्रतिशत से कर दिया। यानि कि उपभोक्ता को एक लाख 45 हजार 935 रुपए का चैक देकर अपना पीछा छुड़ाया।

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