साधना ही जीवन को सुखमय एवं खुशहाल बनाने का एकमात्र उपाय- श्रीमती शकुन्तला दून

हिसार – वानप्रस्थ सीनियर सिटीज़न क्लब हिसार में पाँच दिवसीय साधना शिविर ( 30.04.2024 – 04.05.2024) का आयोजन किया गया।

डा: सुदेश गांधी ने मंच संचालन करते हुए सब साधकों का स्वागत एवं अभिनंदन किया। उन्होंने साधना के महत्व एवं अनुभवों को साझा किया । उन्होने कहा अनापानसती साधना विधि सांस लेने की सचेतनता” या सांस ध्यान बौद्ध धर्म का एक प्रमुख चिंतनशील अभ्यास है।उन्होंने जानी- मानी प्रख्यात साधना विशेषज्ञ श्रीमती शकुंतला दून का परिचय साधकों से करवाया और उनसे आग्रह किया वह इन पाँच दिनों में साधकों को अनापानसती – साधना के महत्व को समझाएँ और अभ्यास करवाएँ है। श्वॉस आरहा है , जा रहा है – इस साधना में आते जाते शवासों पर ध्यान देना है। स्व को स्व से मिलाना ही साधना है । दृष्टा बन कर देखना ही साधना है।उन्होंने कहा कि साधना मन को शांत करने के लिए भी सचेत सॉस का उपयोग करता है ताकि स्वयं को देखने के लिए एवं स्वतंत्रता में जीने के लिए सही मार्ग है।

साधना भय , चिंता , तनाव , घबराहट दूर करने के लिए अत्यंत प्रभावी है । यह एकाग्रता , स्मरण – शक्ति , आत्मविश्वास को बढ़ाती है एवं मनुष्य को स्वस्थ एवं निरोगी बनाती है।इन पाँच

दिनों में साधकों को सरल भाषा में समझाते हुए उन्होंने कहा कि आप सब सुख आसान में बैठ जाएँ । दोनों हथेलियों को आपस में गूँद ( क्रॉस) कर लें । आँखें कोमलता से बंद और कमर- गर्दन सीधी कर लें ।उन्होंने कहा कि साँस भीतर जा रहा हैं, बाहर आ रहा है- उसका निरीक्षण करें। श्वासों के पूरी सजगता से उसके साथ यात्रा करें। श्वास और सजगता को एक हो जाने दें।श्वास – प्रश्वास के प्रति सजग रहें। अपनी जागरूकता को अपनी नासिका पर लाएँ।मन में सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार आएँगे – आने दे , जाने दे।धीरे- धीरे आप निर्विचार और निष्क्रिय होते जाएँगे – केवल सांस का आना जाना ही एक मात्र बोध रह जाएगा । साधक साधना में विलीन होते गए और श्री मती दून की साधना – व्याख्या को ध्यान से अनुसरण करते रहे। प्रतिदिन 60-मिण्ट चले इस साधना – शिविर में साधकों ने अपने अनुभव संझा किए ।

अधिकतर साधकों ने कहा कि वह अपने आप को शांत महसूस कर रहे हैं और उनके अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो रहा है।

श्री मती दून ने साधकों की जिज्ञासॉयों का भी निवारण किया। उन्होंने कहा कि आप इस पाँच दिन के अभ्यास को व्यर्थ ना जाने दें । आप प्रतिदिन इसका अभ्यास करें – आपकी सब दु:ख – चिंताएँ , तनाव, अवसाद दूर हो जाएँगे । आप का जीवन सुखमय एवं आनंदपूर्ण हो जाएगा- आप अभ्यास करके तो देखें। उन्होंने अपना संबोधन “शुकराना” गीत की पंक्तियों के साथ समाप्त किया-

“ शुकराना, शुकराना- माँ तेरा शुकराना।
शुकराना, शुकराना – ईश्वर तेरा शुकराना-
आज भी तेरा शुकराना, कल भी तेरा शुकराना
हर पल तेरा शुकराना”

साधना- शिविर समापन समारोह के अवसर पर साधकों ने अपने अनुभव साँझा किए ।

श्रीमती संतोष ने कहा कि सेवानिवृति के बाद वह असमंजस एवं दुविधा में थी कि वह अपने बच्चों पास जा कर रहें या यहीं पर अकेली रहें । बच्चों के पास जाने के लिए उन्होंने अपना अधिकतर सामान भी बेच दिया था । इसी दौरान उनकी मुलाक़ात श्रीमती दून से हो गई तो वह प्रतिदिन योग – साधना में जाने लगी ।

धीरे – धीरे उनका मन ख़ुश एवं संतुष्ट रहने लगा और बच्चों के पास जाने का निर्णय ही बदल दिया। श्रीमती कृष्णा जी ने कहा कि घर में कुछ ऐसी दुःखद घटनाएँ घटी कि वह अवसाद में चली गई । कुछ साथियों ने उन्हें योग – साधना में आने के लिए प्रेरित किया । वह कहती है कि सतत साधना से उनका जीवन ही बदल गया । अब उन्होने विद्यमान् में जीना सीख लिया है और वह सात्विक जीवन जी रही हैं। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के युवा वैज्ञानिक डा: वीरेंद्र हुडा ने अपने पाँच दिनों के सकारात्मक अनुभव एक सुंदर स्वरचित कविता द्वारा प्रस्तुत किए। मंच संचालक डा: सुदेश गांधी ने बताया कि जब से वह साधना से जुड़ी है , वह अवसाद मुक्त हो गई हैं और नई उमंग के साथ सकारात्मक जीवन जी रही हैं ।

वानप्रस्थ सीनियर सिटीजन क्लब के महासचिव डा: जे. के . डाँग ने श्रीमती शंकुन्तला दून एवं डा: सुदेश गांधी का अपना व्यस्त समय से समय निकाल कर साधकों को साधना -अभ्यास करवाने के लिए क्लब एवं नगर के विभिन्न भागों से आए साधकों की ओर से आभार व्यक्त किया और तहे- दिल से धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि साधक ब्रह्माण्ड से प्राप्त हुई सकारात्मक ऊर्जा से ओतप्रोत है और प्रफुलित हैं। उन्होंने श्रीमती दून से आग्रह किया कि वह समय – समय पर हमें साधना का अभ्यास करवाते रहें जिसे उन्होने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

इस पाँच दिवसीय शिविर में 50–से अधिक साधकों ने भाग लिया।

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