अगर  गैर-विधायक बनने बावजूद  6 महीने तक मंत्री  बने रहने का रणजीत का तर्क सही, तो कल अगर मुख्यमंत्री नायब सैनी करनाल उपचुनाव नहीं जीते, तो इसके बावजूद  वह भी  गैर-विधायक तौर  पर 12 सितम्बर तक बने  रह सकते है  मुख्यमंत्री — एडवोकेट

अगर अदालत किसी मंत्री का विधायक या सांसद के तौर पर कर देती है निर्वाचन रद्द, तो‌ उसे मंत्रीपद से भी देना पड़ता है त्यागपत्र, वो  यह नहीं कह सकता कि 6 महीने तक बना रह  सकता हूँ मंत्री — हेमंत कुमार  

चंडीगढ़ –  एक माह और  एक सप्ताह  का लंबा समय बीते जाने के बाद अंततः मंगलवार 30 अप्रैल को हरियाणा विधानसभाध्यक्ष (स्पीकर) ज्ञान चंद गुप्ता द्वारा सिरसा ज़िले की रानिया विधानसभा सीट से अक्तूबर, 2019 में निर्दलीय  विधायक  के तौर पर निर्वाचित रणजीत चौटाला, जो  बीती 24 मार्च  की शाम  भाजपा में शामिल हो गए थे जिसके साथ ही  पार्टी द्वारा उन्हें   हिसार लोकसभा सीट से  उम्मीदवार  भी घोषित कर दिया गया था, का विधायक पद से त्यागपत्र  स्वीकार कर लिया  गया है. रणजीत 2 मई को हिसार लो.स. सीट से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर  नामांकन दाखिल करेंगे.

गत  माह 12 मार्च को नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित नई भाजपा  सरकार में  रणजीत को   कैबिनेट मंत्री  बनाया गया‌ था एवं 22 मार्च को उन्हें ऊर्जा (बिजली) विभाग और जेल विभाग आबंटित किये गए. हालांकि रणजीत ने साफ कर दिया  है  कि विधायक पद छोड़ने बावजूद वह प्रदेश सरकार के  मंत्रीपद से फिलहाल  इस्तीफ़ा नहीं‌ देंगे.

इसी बीच‌ पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और कानूनी विश्लेषक हेमंत कुमार (9416887788) ने बताया कि बेशक विधानसभा स्पीकर   द्वारा रणजीत चौटाला का विधानसभा सदस्यता से  त्यागपत्र स्वीकार करने में एक महीने एक सप्ताह का
लंबा समय  लग गया है जो कि प्रदेश के इतिहास में अभूतपूर्व है ‌हालांकि चूंकि स्पीकर ने उनका विधायक पद त्यागपत्र गत  24  मार्च की पिछली तिथि से ही स्वीकार किया है, जिस दिन वह निर्दलीय विधायक होने बावजूद भाजपा‌ में शामिल हुए थे, जो‌ हालांकि  दल-बदल  विरोधी कानून में प्रतिबंधित  है, इसलिए उसी दिन से इस्तीफा स्वीकार होने फलस्वरूप  रणजीत‌ सदन की अयोग्यता से  बच गए हैं

बहरहाल  क्या  विधायक पद से त्यागपत्र स्वीकार होने के बाद गैर-विधायक बने   रणजीत  मौजूदा नायब सैनी सरकार में बे-रोकटोक    मंत्री  बने रह सकते हैं या फिर उस पद पर बने रहने के लिए उन्हें ताजा तौर पर शपथ लेनी होगी, इस पर  हेमंत ने बताया कि चूँकि बीती 12 मार्च को मंत्रीपद की शपथ लेते समय रणजीत विधायक थे और अब चूँकि  गत 24 मार्च से वह विधायक नहीं रहे (जो त्यागपत्र हालांकि 30 अप्रैल को‌  तकनीकी कारणों से मंजूर किया गया), इस कारण देखा जाए तो वास्तव में  24 मार्च से वह गैर-विधायक मंत्री के तौर पर कैबिनेट मंत्रीपद की शक्तियों  का प्रयोग और कार्यों का  निर्वहन कर रहे हैं.

बेशक भारत के संविधान के प्रावधानों  अनुसार विधायक न होते हुए भी कोई व्यक्ति अधिकतम 6 महीने तक  प्रदेश का मुख्यमंत्री या मंत्री नियुक्त हो  सकता है एवं उस पद पर आगे  बने रहने के लिए   नियुक्ति के 6 महीने के भीतर उसे  विधानसभा का सदस्य अर्थात विधायक निर्वाचित होना होता है  जैसे वर्तमान मुख्यमंत्री नायब सैनी भी मौजूदा 14 वीं  हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं है  हालांकि वह 25 मई को‌ निर्धारित करनाल विधानसभा सीट उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार हैं.  

 हेमंत ने बताया कि अगर रणजीत चौटाला के इस  तर्क को सही माना जाए कि वह  गैर-विधायक बनने  बावजूद 6

महीने तक मंत्री बने रह सकते हैं अर्थात  24 सितम्बर 2024 तक  क्योंकि 24 मार्च 2024 से उनका विधायक के तौर पर त्यागपत्र स्वीकार हुआ है,  अगर ऐसा ही है, तो फ़र्ज़ करो कि कल अगर आगामी 25 मई का करनाल विधानसभा सीट उपचुनाव मुख्यमंत्री नायब सैनी नहीं जीत पाते, तो कल को  कहा जा सकता है कि चूँकि उनकी गैर-विधायक होते  हुए मुख्यमंत्री के तौर पर नियुक्ति 12 मार्च 2024 को हुई है, तो वह उपचुनाव हारने बावजूद 12 सितम्बर 2024 तक अर्थात 6 महीने तक गैर-विधायक के तौर पर मुख्यमंत्री रह सकते है. हालांकि हेमंत का कहना है कि ऐसा नहीं होता है एवं  उपचुनाव हारने की स्थिति में उस मुख्यमंत्री को पद से त्यागपत्र देना पड़ता है बेशक उसके गैर-विधायक के तौर पर  अधिकतम 6 महीने की समयावधि में से कुछ माह की अवधि शेष बची हो. सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के फलस्वरूप एक  विधानसभा में कार्यकाल दौरान  किसी गैर-विधायक व्यक्ति को एक बार ही मुख्यमंत्री या मंत्री की शपथ दिलाई जा सकती  है, उससे अधिक नहीं.  

हेमंत ने एक और उदाहरण देते हुए बताया कि अगर कल को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट किसी प्रदेश  मौजूदा मंत्री का विधायक  के तौर पर निर्वाचन रद्द कर देती है, तो उस  परिस्थिति में यह व्यक्ति यह कहकर मंत्रीपद नहीं बना रह सकता है कि भारत के संविधान अनुसार वह  गैर -विधायक  के तौर पर वह अधिकतम 6 महीने तक मंत्री बना रह सकता है. तब विधायक के तौर पर निर्वाचन रद्द होने के कारण उसे  तत्काल मंत्रीपद से भी त्यागपत्र देना पड़ेगा. हालांकि अगर प्रदेश के मुख्यमंत्री  चाहें तो उस व्यक्ति तो  ताज़ा तौर पर राज्यपाल  शपथ दिलाकर एक बार  गैर-विधायक या गैर-सासं के तौर पर अधिकतम 6 महीने के लिए दोबारा मंत्री बना सकते हैं. 

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