गड़बड़ा सकता है भगवा का समीकरण ! संसद पहुंचने को आतुर छह विधायक अशोक कुमार कौशिक हरियाणा में दस साल से सत्ता वापसी की कोशिशों में जुटी कांग्रेस ने इस बार भाजपा के सोशल इंजीनियरिंग दांव से उसे ही मात देने की तैयारी की है। भाजपा ने इस बार दो जाट, दो एससी, दो ब्राह्मण, एक पिछड़ा, एक पंजाबी और एक वैश्य समुदाय से उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। कांग्रेस ने पिछली हार से सबक लेते हुए भाजपा के इसी पैंतरे को अपनाने की कोशिश की है। उधर हरियाणा में इस बार चुनाव में सांसद बनने के लिए छह विधायक चुनाव मैदान में खंभ ठोक रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने भी दो जाट, दो एससी, एक पिछड़ा, एक ब्राह्मण, एक पंजाबी समुदाय को टिकट दी है। कुरुक्षेत्र से इंडिया गठबंधन के तहत आप के उम्मीदवार वैश्य बिरादरी से हैं। प्रदेश में यह पहली बार है जब कांग्रेस ने सात सीटों पर जातिगत कार्ड खेलते हुए भाजपा के ब्राह्मण उम्मीदवार के सामने ब्राह्मण, गुर्जर के सामने गुर्जर उम्मीदवार, पंजाबी के सामने पंजाबी (यानि उसी जाति का) उतारा है। ऐसा करके कांग्रेस ने न केवल भाजपा के क्षेत्रीय व जातीय संतुलन के समीकरणों को गड़बड़ा दिया, बल्कि उनकी पारंपरिक वोट में सेंध लगाने की कोशिश भी की है। कांग्रेस ने पिछली बार चार जाटों को टिकट दी थी मगर भाजपा ने गैर जाट कार्ड खेलकर सभी सीटें अपने पक्ष में कर ली। इसी को ध्यान में रखकर कांग्रेस ने नया प्रयोग किया है। फरीदाबाद : गुर्जर के सामने गुर्जर क्षेत्र में जाट वोटर सबसे ज्यादा भाजपा ने फरीदाबाद से गुर्जर समुदाय के कृष्णपाल गुर्जर को मैदान में उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने कृष्णपाल को कड़ी टक्कर देने के लिए काफी मंथन के बाद गुर्जर बिरादरी के ही महेंद्र प्रताप सिंह पर दांव खेला। फरीदाबाद में जाट वोटर करीब 4.20 लाख हैं, जबकि गुर्जर 3.50 लाख। कांग्रेस मानकर चल रही है कि उसके साथ उसका जाट वोट साथ रहेगा और महेंद्र प्रताप के जरिये उसे गुर्जर वोट मिलेगा। राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि यदि करण दलाल ने महेंद्र प्रताप का साथ दिया तो कृष्णपाल की राह मुश्किल हो सकती है। करण जाट बिरादरी से आते हैं। उनकी जाट वोटों पर अच्छी पकड़ है। सोनीपत : ब्राह्मण के सामने ब्राह्मण जींद को भी दिया प्रतिनिधित्व जाट बहुल्य सोनीपत सीट पर कांग्रेस 2004 से जाट उम्मीदवार को ही मैदान में उतारती आई है, मगर इस बार कांग्रेस ने भाजपा के ब्राह्मण बिरादरी के मोहन लाल बड़ौली के सामने ब्राह्मण समुदाय के ही सतपाल ब्रह्मचारी को उतारा है। वह मूलत: जींद के गांगोली गांव के रहने वाले हैं और हरिद्वार में उनके आश्रम हैं। जींद का प्रतिनिधित्व देकर कांग्रेस ने मामले को रोचक बना दिया है। सोनीपत में कुल वोटों में जाट वोट करीब 37 फीसदी हैं। वहीं, ब्राह्मण 14 फीसदी। सोनीपत में 12 में से नौ बार जाट सांसद ही बने हैं। ऐसे में कांग्रेस को अपनी रणनीति से उम्मीद बंधी है कि वह गैर जाट व जाट कार्ड से भाजपा को मात देने में सफल रहेगी। हिसार : जाट वर्सेज जाट, पारिवारिक वोट बंटने में फायदा देख रही पार्टी कांग्रेस ने भाजपा से आए बृजेंद्र सिंह के बजाय तीसरी बार हिसार से जीत हासिल कर चुके जयप्रकाश को लाकर सबको चौंका दिया है। चर्चा है कि अनुभवी नेता को टिकट देने के पीछे कांग्रेस की सोची समझी रणनीति है। उनके सामने पूर्व उपप्रधानमंत्री देवीलाल के परिवार के तीन सदस्य हैं। चारों ही जाट समुदाय से हैं। इस सीट पर 18 में से 12 बार जाट बिरादरी के सांसद बने हैं। ऐसे में इस बार जाट और पारिवारिक वोटों के बीच बिखराव की संभावना को देखते हुए रोचक मुकाबले के आसार हैं। हालांकि इस लड़ाई में इस बार भजनलाल का परिवार बाहर है। कुलदीप बिश्नोई ने खुलकर प्रचार शुरू नहीं किया। करनाल : पंजाबी बनाम पंजाबी वोट बैंक पर सेंधमारी की तैयारी दो लाख से ज्यादा पंजाबी वोटर वाली इस सीट पर पिछले दो बार से पंजाबी समुदाय के सांसद चुने जा रहे हैं। इस बार भी भाजपा ने इसी बिरादरी के पूर्व सीएम मनोहर लाल को उतारा है। वहीं, कांग्रेस ने भी पंजाबी समुदाय से आने वाले दिव्यांशु बुद्धिराजा को उतार भाजपा के पारंपरिक वोट बैंक पर सेंध लगाने की कोशिश की है। इस सीट पर जाट वोटों की संख्या भी करीब दो लाख है। वहीं, ब्राह्मण डेढ़ लाख और रोड बिरादरी के भी करीब एक लाख 20 हजार मतदाता हैं। हालांकि गैर जाट वोट जिस ओर गया, वह मुकाबले को पार कर जाएगा। दिव्यांशु भले ही युवा हो, मगर वह युवा कांग्रेस का अध्यक्ष चुनाव जीतकर ही बने थे। रोहतक : पुराने प्रतिद्वंद्वी फिर से आमने-सामने इस बार रोहतक में पिछली बार के प्रतिद्वंद्वी ही आमने-सामने होंगे। यहां जाट-गैर जाट मुकाबला देखने को मिलेगा। कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा को रोहतक से मैदान में उतारा है। उनके टिकट की घोषणा होते रातभर कांग्रेसियों ने जश्न मनाया। इस बार उनके सामने फिर से भाजपा के अरविंद शर्मा हैं। दीपेंद्र अपने जाट वोटों के सहारे हैं तो शर्मा गैर जाट वोट हासिल करने के लिए एड़ी चोटी का जोर दिखा रहे हैं। रोहतक में 18 लाख से ज्यादा वोटर हैं। इनमें से दस लाख गैर जाट वोटर हैं। सिरसा : सैलजा पर राजनीतिक विरासत वापस लेने का दबाव एससी सुरक्षित सीट पर कुमारी सैलजा ने 26 साल के बाद वापसी की है। हालांकि यह सीट उनकी पारंपारिक सीट रही है। उनके पिता दलबीर सिंह चार बार सांसद रह चुके हैं। सैलजा 1991 और 1996 में सांसद चुनी गई थी। मगर 1998 में सुशील इंदौरा से हार जाने के बाद उन्होंने अंबाला का रुख किया। वह सिरसा से ही सीट मांग रही थी। उन पर राजनीतिक विरासत की जमीन वापस लेने का दबाव है। वहीं, भाजपा ने अशोक तंवर को मैदान में उतारा है। तंवर पुराने कांग्रेस रहे हैं। इसी साल वह आम आदमी पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। वह कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और सैलजा भी कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष रही हैं। भिवानी-महेंद्रगढ़ : पहली बार अहीर बिरादरी को टिकट कांग्रेस ने इस सीट से पहली बार पहली बार अहीर बिरादरी के महेंद्रगढ़ विधानसभा के विधायक राव दान सिंह पर विश्वास जताया है। कांग्रेस की यह सीट बंसीलाल घराने की रही है। बंसीलाल के परिवार ने 11 चुनावों में से छह बार सीट जीती है। इस सीट पर करीब चार लाख जाट वोट, अहीर तीन लाख और ब्राह्मण वोट करीब डेढ़ लाख हैं। कांग्रेस ने इस बार भाजपा का गैर जाट कार्ड खेला है। कांग्रेस को अहीर के साथ जाट वोट मिला तो भाजपा की मुश्किलें हो सकती हैं। भाजपा ने यहां से जाट बिरादरी से आने वाले दो बार के सांसद चौधरी धर्मबीर को मैदान में उतारा है। अंबाला : वरुण के पास पिता की हार का बदला लेने का मौका कांग्रेस ने मुलाना से विधायक वरुण चौधरी पर विश्वास जताया है। वरुण युवा चेहरे और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष फूलचंद मुलाना के बेटे हैं। उनके पास अपनी पिता की हार का बदला लेने का मौका भी है। फूलचंद मुलाना ने 1999 में लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उनके सामने रतनलाल कटारिया थे। रतनलाल ने मुलाना को एक लाख 24 हजार 478 वोटों से हराया था। भाजपा ने अंबाला लोकसभा सीट से स्व. सांसद रतन लाल कटारिया की पत्नी बंतो कटारिया को मैदान में उतारा है। सांसद रहते पिछले साल रतन लाल कटारिया का देहांत हो गया था। बंतो भी 80 के दशक से भाजपा से जुड़ी हैं। हरियाणा में 6 विधायक खंभ ठोक रहे हैं लोकसभा चुनावों में हरियाणा से इस बार छह विधायक भी संसद पहुंचने के लिए चुनावी रण में उतरे हैं। मुकाबला दिलचस्प हो गया है। वहीं, दूसरी ओर मौजूदा और पूर्व सीएम भी इस बार एक साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं। करनाल लोकसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल चुनाव लड़ रहे हैं। करनाल हलके के विधायक से इस्तीफा देकर वे चुनावी रण में उतरे हैं। वहीं कुरुक्षेत्र के सांसद होते हुए मुख्यमंत्री बने नायब सिंह सैनी करनाल हलके पर होने वाले उपचुनाव में प्रत्याशी हैं। यानी छह विधायक जहां सांसद बनने की इच्छा रखते हैं, वहीं सांसद होते हुए नायब सिंह सैनी विधानसभा पहुंचना चाहते हैं। कांग्रेस ने मुलाना से विधायक वरुण चौधरी को अंबाला लोकसभा सीट से टिकट दिया है। वहीं महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह भिवानी-महेंद्रगढ़ लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार हैं। कुरुक्षेत्र में ऐलनाबाद से इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं भाजपा ने राई से विधायक मोहन लाल बड़ौली को सोनीपत से चुनावी मैदान में उतारा है। हिसार में बाढड़ा से जजपा विधायक नैना सिंह चौटाला चुनाव लड़ रही हैं। यहां से भाजपा टिकट पर रानियां के निर्दलीय विधायक चौ. रणजीत सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि रणजीत सिंह विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे चुके हैं, लेकिन तकनीकी कारणों के चलते विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता ने अभी तक उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है। रणजीत सिंह को हस्ताक्षर वेरिफिकेशन के लिए 30 अप्रैल को विधानसभा सचिवालय में बुलाया गया है। Post navigation कांग्रेस को अपने 60 साल के शासन में गरीबी हटाने की याद नहीं आई: मनोहर लाल भाजपा खुद के पार्टी कार्यकर्ताओं का विश्वास जीत नही पाई, वह जनता का क्या विश्वास जीतेगी ? विद्रोही