मौजूदा विधानसभा में इससे पूर्व तीन विधायकों द्वारा दिया गया त्यागपत्र उसी दिन स्वीकार कर किया गया अधिसूचित — एडवोकेट चंडीगढ़ – दस दिनों का अंतराल बीते जाने के बावजूद मौजूदा 14वीं हरियाणा विधानसभा में अक्टूबर, 2019 में सिरसा ज़िले की रानिया विधानसभा सीट से निर्दलीय विधायक के तौर पर निर्वाचित रणजीत सिंह चौटाला, जो गत 24 मार्च की शाम भाजपा में शामिल हो गए थे, का सदन की सदस्यता से दिया गया त्यागपत्र अभी तक विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) ज्ञान चंद गुप्ता द्वारा स्वीकार कर प्रदेश के राजकीय गजट में अधिसूचित नहीं किया गया है. सनद रहे कि भाजपा में शामिल होने के कुछ ही समय बाद रणजीत को हिसार लोकसभा सीट से पार्टी उम्मीदवार भी घोषित कर दिया गया. गत माह 12 मार्च को नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में गठित नई भाजपा सरकार में रणजीत को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया एवं 22 मार्च को उन्हें ऊर्जा (बिजली) विभाग और जेल विभाग आबंटित किये गए हालांकि उन्होंने विधायक के साथ मंत्रीपद से इस्तीफ़ा नहीं दिया है. इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट और कानूनी विश्लेषक हेमंत कुमार ने बताया कि मौजूदा 14वीं विधानसभा में अब तक रणजीत चौटाला से पूर्व तीन विधायकों द्वारा सदन की सदस्यता से त्यागपत्र दिया गया एवं तीनो बार वो त्यागपत्र न केवल उसी दिन स्पीकर द्वारा स्वीकार कर लिया गया बल्कि उसी दिन के प्रदेश के शासकीय गजट में अधिसूचित भी कर दिया गया. 27 जनवरी 2021 को इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला ने ऐलनाबाद विधानसभा सीट से, 3 अगस्त 2022 को आदमपुर विधानसभा सीट से तत्कालीन कांग्रेस विधायक कुलदीप बिश्नोई ने एवं गत माह 13 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने करनाल विधानसभा सीट से त्यागपत्र दिया था. जहाँ तक रिक्त हुई ऐलनाबाद सीट का विषय है, अभय चौटाला उसी सीट से दोबारा निर्वाचित होकर विधायक बन गए, आदमपुर सीट से कुलदीप के सुपुत्र भव्य बिश्नोई उपचुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित हुए जबकि रिक्त करनाल सीट पर आगे माह 25 मई को मतदान निर्धारित है जिसमें मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सैनी भाजपा के उम्मीदवार हैं. बहरहाल, जहाँ तक रणजीत चौटाला के त्यागपत्र के स्वीकार में हो रहे विलंब का विषय है, तो हेमंत ने बताया कि हरियाणा विधानसभा के प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमावली के नियम संख्या 58 विधायकों के सदन की सदस्यता से त्यागपत्र से सम्बंधित है जिसमें त्यागपत्र का प्रारूप भी दिया गया है एवं उसमें यह उल्लेख है कि त्यागपत्र के लिए विधायक को कोई कारण नहीं देना होगा. अगर विधायक व्यक्तिगत तौर पर जाकर स्पीकर को त्यागपत्र देता है और सूचित करता है कि वह स्वैच्छिक और वास्तविक है, तो स्पीकर उसे तत्काल स्वीकार कर सकता है. डाक या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम द्वारा भेजने से, स्पीकर उस त्यागपत्र की स्वैच्छिकता और वास्तविकता को प्रमाणित करने के लिए या तो स्वयं या विधानसभा सचिवालय द्वारा या किसी अन्य एजेंसी द्वारा जांच करा सकता है और अगर ऐसी प्रमाणिकता साबित नहीं होती, तो त्यागपत्र स्वीकार नहीं किया जाता है. यह भी उल्लेख है कि स्वीकार होने से पहले कभी भी सम्बन्धित विधायक अपना दिया गया त्यागपत्र वापिस भी ले सकता है. भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची, जिसमें दल बदल विरोधी प्रावधान हैं, के अनुसार सदन का कोई निर्वाचित सदस्य, जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवार /प्रत्याशी से भिन्न रूप में सदस्य निर्वाचित हुआ है अर्थात उसका सदन में दर्जा निर्दलीय सदस्य का हो, वह उस सदन का सदस्य होने के लिए अयोग्य होगा यदि वह ऐसे निर्वाचन के पश्चात किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है. दूसरे शब्दों में हर निर्दलीय के तौर पर निर्वाचित विधायक उसके कार्यकाल के दौरान कोई राजनीतिक पार्टी नही ज्वाइन कर सकता और अगर वह ऐसा करता है, तो उसे सदन की सदस्यता से हाथ धोना पड़ेगा. हेमंत ने एक रोचक परंतु महत्वपूर्ण कानूनी प्वाइंट उठाते हुए बताया कि अब यह देखने लायक होगा कि क्या मौजूदा 14वीं विधानसभा में निर्दलीय तौर पर निर्वाचित विधायक रणजीत चौटाला ने रविवार शाम भाजपा में शामिल होने से पहले ही उनका रानियां सीट के विधायक पद से त्यागपत्र विधानसभा स्पीकर (अध्यक्ष) को सौंप दिया था अथवा उसके बाद अर्थात भाजपा में शामिल होने के बाद. अगर उन्होंने भाजपा में शामिल होने से पहले अर्थात 24 मार्च की तारीख को ही विधायक पद से उनका त्यागपत्र विधानसभा स्पीकर को सौंप दिया था, फिर तो ठीक है अन्यथा अगर उन्होंने 25 मार्च या 26 मार्च की तारीख में त्यागपत्र दिया है, तो इस्तीफे के बावजूद दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान के अंतर्गत उनके विरूद्ध उन्हें विधानसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की याचिका स्पीकर के समक्ष दायर की जा सकती है. वर्ष 2013 के सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय के बाद न केवल सदन का सदस्य (विधायक) बल्कि सामान्य व्यक्ति भी ऐसी याचिका दायर कर सकता है. हालांकि गत सप्ताह 26 मार्च की शाम को ही मीडिया में खबरें आईं कि रणजीत द्वारा विधायक पद से दिया गया इस्तीफ़ा विधानसभा स्पीकर के पास पहुंच गया है जिसे स्वीकार किया जाना लंबित है. अब उस त्यागपत्र पर किस तारीख का उल्लेख है, यह फिलहाल आधिकारिक तौर पर स्पष्ट नहीं किया गया है. बहरहाल, हेमंत ने बताया कि बेशक विधानसभा स्पीकर रणजीत चौटाला का विधानसभा सदस्यता से त्यागपत्र स्वीकार करने में कितना भी और समय ले लें परन्तु अगर उन्हें दल-बदल विरोधी कानून के अंतर्गत सदन की अयोग्यता से बचाना है, तो वह त्यागपत्र गत 24 मार्च की पिछली तिथि से ही स्वीकार करना होगा अर्थात वह उसी पिछली तारीख से ही प्रभावी होना चाहिए. Post navigation अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के विरोध में आप कार्यकर्ता सात अप्रैल को कुरुक्षेत्र में रखेंगे उपवास : अनुराग ढांडा कार्यकर्ता और जनता का सम्मान मेरे लिए सर्वोपरि : नायब सैनी