करनाल वि.स. उपचुनाव के विषय पर झारखंड की एक सीट पर घोषित उपचुनाव का भी पड़ सकता है असर बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय के बाद चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र की अकोला सीट पर उपचुनाव रोका हालांकि झारखंड की गांडेय वि.स. सीट पर नहीं अकोला और करनाल की तरह गांडेय वि.स. सीट पर भी नव-निर्वाचित विधायक का कार्यकाल एक वर्ष से कम – एडवोकेट हेमंत कुमार चंडीगढ़ – बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा गत माह 26 मार्च को दिए एक निर्णय को आधार बनाकर हरियाणा में गत माह 13 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के त्यागपत्र से रिक्त हुई करनाल विधानसभा सीट, जहाँ आगामी 25 मई को मतदान घोषित किया गया है, को रोकने के लिए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई है जिसकी अगली सुनवाई 3 अप्रैल को निर्धारित है. सनद रहे कि 26 मार्च को बॉम्बे हाईकोर्ट के नागपुर बेंच की एक खंडपीठ द्वारा महाराष्ट्र की रिक्त अकोला (पश्चिम) विधानसभा सीट पर उपचुनाव न कराने का आदेश दिया गया चूँकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम (आर.पी. एक्ट), 1951 के अनुसार उक्त सीट पर उपचुनाव में निर्वाचित होने वाले विधायक का कार्यकाल एक वर्ष से कम होगा. अदालत के निर्णय के अगले ही दिन 27 मार्च को चुनाव आयोग द्वारा रिक्त अकोला वि.स. सीट पर उपचुनाव की चुनावी प्रक्रिया रोक दी गयी. बहरहाल, इस सबके बीच हरियाणा में रिक्त करनाल वि.स. सीट पर निर्धारित उपचुनाव पर भी प्रश्नचिन्ह उठने लगे है क्योंकि इस सीट का भी शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम है. करनाल वि.स. सीट पर उपचुनाव हेतू भाजपा ने हरियाणा के मौजूदा मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पार्टी उम्मीदवार घोषित किया है जो फिलहाल मौजूदा हरियाणा विधानसभा के सदस्य नहीं है. इस विषय पर पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और चुनावी मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने बताया कि इसमें कोई संदेह नहीं कि रिक्त करनाल वि.स. सीट का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम है इसलिए लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 151 ए के दृष्टिगत सामान्य परिस्थितियों में इस सीट पर उपचुनाव नहीं बनता. चूंकि वर्तमान हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 तक है, इसलिए पूर्व विधायक और पूर्व सीएम मनोहर लाल का करनाल से विधायक के रूप में शेष कार्यकाल करीब आठ महीने ही शेष था. बहरहाल, अब प्रश्न यह उठता कि क्या बॉम्बे हाईकोर्ट के 26 मार्च के निर्णय के आधार पर क्या रिक्त करनाल वि.स. सीट पर भी उपचुनाव की प्रक्रिया रोकी जा सकती है. इस विषय पर हेमंत का कहना है कि न केवल हरियाणा में करनाल वि.स. सीट बल्कि झारखंड राज्य की एक रिक्त गांडेय वि.स. सीट पर कमोबेश अकोला सीट जैसी ही स्थिति है क्योंकि उस सीट पर भी नव-निर्वाचित विधायक का कार्यकाल केवल 7 महीने अर्थात एक वर्ष से कम होगा क्योंकि मौजूदा झारखंड विधानसभा का कार्यकाल भी अगले वर्ष 5 जनवरी 2025 तक है. हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय के बाद चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र की अकोला (पश्चिम) . सीट पर तो उपचुनाव की प्रक्रिया रोक दी परन्तु झारखण्ड की उक्त सीट में ऐसा नहीं किया गया एवं आगामी 20 मई को इस सीट पर मतदान निर्धारित है. आज तक किसी पक्ष ने उक्त सीट पर घोषित उपचुनाव के विरूद्ध झारखंड हाई कोर्ट में रिट याचिका नहीं दायर की है. जहाँ तक करनाल सीट पर उपचुनाव का प्रश्न है तो चूंकि इस सीट पर प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, जिन्हे गत माह 12 मार्च को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई एवं जो मौजूदा तौर पर विधायक नहीं है एवं उन्हें उक्त उपचुनाव के लिए भाजपा द्वारा पार्टी उम्मीदवार बनाया गया है, इसलिए करनाल वि.स. सीट का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम होने के बावजूद इस सीट पर उपचुनाव कराया जा सकता है क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 164 (4 ) के अंतर्गत गैर-विधायक रहते हुए कोई भी मुख्यमंत्री या मंत्री केवल नियुक्ति के अधिकतम 6 महीने तक ही उस पद पर रह सकता है उससे अधिक नहीं. इसलिए अगर मुख्यमंत्री नायब सैनी अगर उनकी नियुक्ति के 6 माह के भीतर अर्थात 11 सितम्बर 2024 तक मौजूदा हरियाणा विधानसभा के सदस्य निर्वाचित नहीं होते, तो उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ेगा जिसका अर्थ है कि हरियाणा की मौजूदा पूरी मंत्रिपरिषद को हटना पड़ेगा. इसलिए उक्त तारीख से पूर्व मुख्यमंत्री नायब सिंह को विधायक निर्वाचित होने का एक अवसर प्रदान करना आवश्यक है जिसके लिए अल्प-अवधि अर्थात एक वर्ष से कम अवधि के लिए भी रिक्त करनाल वि.स. सीट पर उपचुनाव कराया जा सकता है. हेमंत का कहना है कि चूँकि भारतीय चुनाव आयोग भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत एक संवैधानिक संस्था है, इसलिए उसे संवैधानिक शक्तियां प्राप्त है, अत: लोक प्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 151 ए में एक वर्ष से कम अवधि के लिए उपचुनाव न करने का स्पष्ट उल्लेख होने बावजूद आयोग रिक्त करनाल वि.स. सीट पर उपचुनाव कराने के लिए सक्षम है. हालांकि अगर करनाल वि.स. सीट पर मुख्यमंत्री नायब सैनी उपचुनाव में उम्मीदवार नहीं होते, तो इस रिक्त सीट पर भी उपचुनाव रोका जा सकता था. इसी प्रकार प्रदेश के बिजली एवं जेल मंत्री रणजीत चौटाला के रानिया वि.स. सीट के विधायक पद से दिए गये इस्तीफे के स्वीकार होने के बावजूद उस सीट पर उपचुनाव नहीं होगा. हेमंत ने बताया कि करीब 38 वर्ष नवंबर, 1986 में भी ऐसा हुआ था जब हरियाणा में तत्कालीन मुख्यमंत्री भजन लाल को बदल कर लोकसभा सांसद बंसी लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया था एवं तत्कालीन हरियाणा विधानसभा की एक वर्ष से कम अवधि शेष होने बावजूद भिवानी जिले की तोशाम विधानसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया था जिसमें बंसी लाल रिकॉर्ड मार्जिन से निर्वाचित होकर विधायक बने थे. उस उपचुनाव के विरुद्ध हालांकि पहले दिल्ली हाई कोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गयी परन्तु दोनों शीर्ष अदालतों ने उसमें हस्तक्षेप नहीं किया था. इसी प्रकार वर्ष 1999 में ओडिशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री और लोकसभा सांसद गिरिधर गमांग के लिए भी एक वर्ष से कम अवधि के लिए विधानसभा उपचुनाव कराया गया था जिसे जीतकर वह विधायक बने थे. 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