चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया है. राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. भारतीय चुनाव आयोग में पहले से ही एक पद खाली था और अब केवल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के पास ही पद बचेगा.

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले एक चौंकाने वाले कदम में चुनाव आयुक्त अरुण गोयल ने इस्तीफा दे दिया है. राष्ट्रपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया है. भारतीय चुनाव आयोग में पहले से ही एक पद खाली था और अब केवल मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार के पास ही पद बचेगा. सूत्रों के मुताबिक लोकसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा अगले हफ्ते होने की संभावना है. यह देखना है कि गोयल के इस्तीफे से क्या इसकी समय सीमा पर कोई असर होगा या नहीं.

अरुण गोयल की विदाई तब हुई जब उनका कार्यकाल तीन साल बचा था. चुनाव आयुक्त के लिए एक पद पहले से ही खाली था. इससे पहले चुनाव आयुक्त अनूप पांडे इसी साल फरवरी में रिटायर हो गए थे. गोयल ने 21 नवंबर, 2022 को भारत के चुनाव आयुक्त (ईसी) के रूप में कार्यभार संभाला था. 1985 बैच के पंजाब कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी, गोयल 37 वर्षों से अधिक समय के बाद भारत सरकार के भारी उद्योग मंत्रालय के सचिव के रूप में सेवा से रिटायर हुए थे.

गोयल की नियुक्ति को दी गई थी चुनौती 

गोयल की निर्वाचन आयोग में नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की ओर से दखिल जनहित याचिका में कहा गया था कि अरुण गोयल की नियुक्ति कानून के मुताबिक सही नहीं है. साथ ही यह निर्वाचन आयोग की सांस्थानिक स्वायत्तता का भी उल्लंघन है. इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 14 और 324(2) के साथ साथ निर्वाचन आयोग (आयुक्तों की कार्यप्रणाली और कार्यकारी शक्तियां) एक्ट 1991 का भी उल्लंघन है.

बाद में खारिज कर दी गई थी याचिका 

जनहित याचिका से पहले एडीआर ने निर्वाचन आयुक्तों की मौजूदा नियुक्ति प्रक्रिया की संवैधानिक वैधता को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका के अनुसार, भारत सरकार ने गोयल की नियुक्ति की पुष्टि करते हुए कहा था कि चूंकि वह तैयार किए गए पैनल में चार व्यक्तियों में सबसे कम उम्र के थे, इसलिए चुनाव आयोग में उनका कार्यकाल सबसे लंबा होगा. याचिका में तर्क दिया गया है कि उम्र के आधार पर गोयल की नियुक्ति को सही ठहराने के लिए जानबूझकर एक दोषपूर्ण पैनल बनाया गया था. 

हालांकि याचिका को बाद में पिछले साल दो न्यायाधीशों की पीठ ने खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि एक संविधान पीठ ने इस मुद्दे की जांच की थी, लेकिन गोयल की नियुक्ति रद्द करने से इनकार कर दिया था. 

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