कुरुक्षेत्र के तीर्थों की प्रतिष्ठा एवं पौराणिक महत्व के अनुसार विकास के लिए संतों को भी राजनीति में आना चाहिए : महामंडलेश्वर डा. शाश्वतानंद गिरि महाराज। अगर राजनीति संत करेंगे तो समाज में मंगल एवं कल्याण होगा। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक कुरुक्षेत्र, 22 फरवरी : धर्म एवं राजनीति अलग नहीं है। भारतवर्ष का इतिहास इस बात का गवाह है। जब जब विपत्ति आई है तथा समाज पथभ्रष्ट हुआ है तो देश के संत महापुरुषों ने ही मार्गदर्शन किया है। धर्मनगरी कुरुक्षेत्र स्थित शाश्वतानंद धाम श्री अखंड गीता पीठ के महामंडलेश्वर डा. शाश्वतानंद गिरि महाराज ने लोकसभा चुनाव 2024 के लिए कुरुक्षेत्र सीट से भाजपा की टिकट के लिए दावेदारी पेश की है। उन्होंने पत्रकारों से बातचीत के दौरान संतों के राजनीति में आने की बात कह कर अपनी चुनाव लड़ने की इच्छा स्पष्ट कर दी है। उन्होंने कुरुक्षेत्र से भाजपा की टिकट का आवेदन भी कर दिया हैं। डा. शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कहा कि संतों के राजनीति में आने के बारे स्पष्ट कर दिया कि अगर वास्तव कुरुक्षेत्र के तीर्थों का देश के अन्य तीर्थों की भांति विकास तथा सम्मान चाहिए तो संत महापुरुषों को राजनीति में आगे आना होगा। इस तरह से उन्होंने लोकसभा चुनाव 2024 में विशेषकर कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट पर संतों की भूमिका और स्वयं के राजनीति में आने बारे भी स्थिति बिलकुल स्पष्ट कर दी है। उन्होंने पत्रकारों से चर्चा करते हुए कहा कि कुरुक्षेत्र भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से उत्पन्न गीता की जन्मस्थली है तथा गीता मानव जीवन का मार्गदर्शन करती है। मनुष्य के सफल जीवन का जीवन दर्शन गीता में है। उन्होंने संत सन्यासियों की बारे में बताया कि तीन तरह के सन्यासी होते हैं। कुछ केवल वेश धारण सन्यासी हैं, कुछ आत्मजीवी हैं जो केवल अपने में मस्त रहते हैं तथा ईश्वर की भक्ति में मस्त रहते हैं। उन्होंने बताया कि तीसरे प्रकार के सन्यासी हैं जो लोकजीवी सन्यासी हैं। डा. शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि वे लोकजीवी सन्यास को पसंद करते हैं। वह खुद लोकजीवी सन्यासी हैं। उन्होंने कहा कि लोकजीवी सन्यासी द्वारा ब्रह्म दर्शन करने के उपरांत पूरा विश्व ही परमात्मा का स्वरूप है। ऐसी स्थिति में लोकजीवी सन्यासी के लिए अपने पराय का कोई भेद नहीं है। ऐसा सन्यासी सभी के लिए जीवन जीता है। उसकी योग्यता, अनुभव एवं शरीर सब कुछ सर्वहित के लिए समर्पित है। डा. शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गीता में सर्वकल्याण की बात कही है। राजनीति भी लोकमंगल एवं सर्व कल्याण की दिशा में सशक्त माध्यम है जिसके माध्यम से हम समाज की सेवा एवं हित कर सकते हैं। उन्होंने कुरुक्षेत्र के लोगों की सेवा पर कहा कि धर्मनगरी कुरुक्षेत्र युग तीर्थ है तथा इसकी ऐसी स्थिति नहीं है जैसी होनी चाहिए। आज देश के अन्य तीर्थों का कितना विकास हो रहा है लेकिन गीता की जन्मस्थली कुरुक्षेत्र के तीर्थों की ऐसी स्थिति नहीं है। डा. शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कहा कि इसी लिए उनका ध्यान राजनीति की तरफ गया कि जब वह स्वयं कुरुक्षेत्र के तीर्थों के विकास के दर्द को महसूस करते हैं तो खुद ही पुरुषार्थ एवं प्रयास करें। अगर राजनीतिक शक्ति एवं राजनीतिक सहयोग भी प्राप्त होता है। पूरे संसाधनों से कुरुक्षेत्र के उत्थान का कार्य कर सकें। कुरुक्षेत्र की जैसी प्रतिष्ठा पौराणिक रूप से है। वैसी प्रतिष्ठा प्राप्त हो। अगर कुरुक्षेत्र के तीर्थों को उचित विकास होगा तो व्यवसायिक दृष्टि से भी विकास के साथ लक्ष्य की प्राप्ति होगी। इससे कुरुक्षेत्र की खुशहाली भी बढ़ेगी। उन्होंने बताया कि इसी भावना के साथ राजनीति में आने का भाव उनके मन में आया है। राजनीति एवं धर्म अलग नहीं हैं। राजनीति कोई अछूत वस्तु नहीं है। अगर राजनीति संत करेंगे तो समाज में मंगल एवं कल्याण होगा। कुरुक्षेत्र के तीर्थों की प्रतिष्ठा एवं पौराणिक महत्व के अनुसार विकास के लिए संतों को भी राजनीति में आना चाहिए Post navigation शिक्षा मंत्रालय द्वारा डॉ. सत्यपाल सिंह को कुलाधिपति नियुक्त करना अवैध एवं नियम विरुद्ध : राधाकृष्ण आर्य उत्तर प्रदेश की राज्यपाल पहुंची गुरुकुल, प्राकृतिक खेती का किया अवलोकन