कमलेश भारतीय

यह दुनिया अपने से एकदम उलट के प्रति ही आकर्षित होती है, यही इस दुनिया का दस्तूर है। यह कहना है, ओशो के अनुज स्वामी शैलेंद्र का, जो अपनी पत्नी मा अमृत प्रिया संग पिछले एक सप्ताह से सिरसा रोड पर सत्संग कर रहे थे और इस दौरान साढ़े छह सौ तक श्रद्धालु पहुंचते रहे और पचहत्तर जिज्ञासुओं ने दीक्षा भी ग्रहण की।

सवाल यह किया गया था कि चाहे कबीर रहे और चाहे ओशो, दोनों ने मठ बनाने का जमकर विरोध किया। फिर इनके नाम पर ही मठ या आश्रम कैसे बनते चले गये!

वैसे तो शिष्य यह चाहते हैं कि हम भी अपने गुरु की स्मृति में कुछ करें लेकिन आप देखिए कि दिगम्बर के अनुयायियों में से ज्यादातर लोग कपड़े का व्यवसाय करते हैं कि हमारे दिगम्बर निर्वस्त्र थे तो हम दुनिया को वस्त्र देंगे ! इसलिए यह विपरीत का आकर्षण ही कहा जा सकता है! सिरफिरों के संगठन कहे जा सकते हैं।

-बार बार यह सवाल मन में उथल पुथल मचाये रहता है कि ओशो अमीरों के ही गुरु कैसे बन कर रह गये?

-देखिए ! सबकी अपनी अपनी जरूरतें होती हैं ! ऐसे ही सबकी आवश्यकताएं‌ होती हैं! सबकी जरूरतों में शामिल हैं – रैली, कपड़ा और मकान! ये बुनियादी जरूरते़ं हैं! इसके बाद भावनात्मक जरूरते़ आती हैं इसे पूरा करते हैं – संगीत, कथा कहानी, साहित्य, पेंटिंग यानी हमारी विभिन्न कलायें! इनकी जरूरत जिन्हें होती है, वे उच्च वर्ग से ही होते हैं और उन्हें मानसिक शांति, की जरूरत होती है ।

आप बाकायदा एमबीबीएस डाॅक्टर यानी चिकित्सक थे, फिर मनोचिकित्सक कैसे बन गये?

आजकल मनोचिकित्सक की जरूरत समाज में बहुत बढ़ गयी है! देखिए जो शारीरिक बीमारियां हैं, उनका इलाज तो डाॅक्टर करते हैं लेकिन मन की व्याधियों‌ का उपचार तो सत्संग से ही हो सकता है, आध्यात्म से ही हो सकता है, इसके लिए और बिटामिन या टाॅनिक काम नहीं कर सकते! मन ऐसे उपायों से ठीक नहीं हो सकता! मन केमिकल से नहीं बना, यह तो विचारों से बना है न!

आपकी कितनी पुस्तकें हैं?
अब तक पैंतालिस लेकिन सभी ई बुक्स हैं ताकि पेड़ों को आहुति न देनी पड़े। यह पर्यावरण को बचाये रखने में भी एक आवश्यक कदम है !

आपका प्रिय भजन?
-मेरा रामजी करेंगे बेड़ा पार
उदासी मन काहे को करे!
इस अवसर पर मां सांची, स्वामी संजय, मा अमृता प्रिया भी मौजूद रहे।

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