पर्णकुटी पटौदी में जारी है महामंडलेश्वर धर्मदेव की कल्पवास साधना 13 फरवरी को हो जाएगा इस 17वीं साधना का समापन फतह सिंह उजाला पटौदी 8 फरवरी । आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय परिसर में ही पर्णकुटी में संस्था के अधिष्ठाता वेद पुराणों के मर्मज्ञ महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव के द्वारा 17वीं कल्पवा साधना की जा रही है। इस दौरान वह संस्था परिसर से बाहर नहीं आने के लिए संकल्प किए हुए हैं । ऐसे में संस्था के प्रति समर्पित श्रद्धालुओं और भक्तों के लिए महामंडलेश्वर धर्मदेव के द्वारा दिन भर में सुबह और शाम के समय मिलना निश्चित किया हुआ है। इसी कड़ी में रात्रि के समय प्रतिदिन सत्संग सुनाया जा रहा है। महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव अपनी तपोस्थली से जब श्रद्धालुओं के बीच बाहर पहुंचे तो उनका आशीष लेने के लिए श्रद्धालुओं में उत्सुकता बन गई। इसी बीच में वहां मौजूद नन्ही बच्ची के द्वारा भजन जिसके बोल, मैं वारी-वारी जावा मैं वारी-वारी जावा, सेवा कर दी कदे भी ना थका कदे भी ना अखा, सोने सोने लेख लिख दे, मैं वारी वारी जावा, सोने सोने लेख लिख दे। सत्संग कर दी कभी भी ना थका, गुरुजी का नाम जप दे कभी ना थका, क्या गर्व माया का माया तो तेरी रह जाएगी, नाम जप ले गुरु दा नाम जप ले … जब बेहद मासूमियत के साथ सुनाया तो स्वामी धर्मदेव भी मंत्र मुग्ध हो गए। इसी मौके पर वहां उपस्थित श्रद्धालुओं के द्वारा नन्ही बच्चे का प्रोत्साहन बढ़ाया गया। नन्ही बच्ची को महामंडलेश्वर धर्मदेव ने अपने हाथों से दुपट्टा भेंट कर एक सुंदर माला पहनाकर प्रोत्साहित करते हुए अपना आशीर्वाद प्रदान किया। इस मौके पर महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने कहा बच्चों की सोच उनके स्वाद और संस्कार में जो बदलाव देखा जा रहा है , वह परिवार समाज और राष्ट्र के लिए हितकारी ही रहेगा। जिस प्रकार से तनमयता के साथ नन्ही बच्ची ने भजन गाकर प्रस्तुत किया, इस प्रकार के संस्कार आने वाली पीढ़ी में प्रफुल्लित होना सनातन के अमरत्व की निशानी है। अन्यथा यह देखा जाता है कि छोटे बच्चों में अंग्रेजी पोयम या फिर आधुनिक गीत संगीत के प्रति अधिक रुचि दिखाई देती है। इसी प्रकार से बच्चों में खानपान को लेकर भी सकारात्मक बदलाव देखने के लिए मिलता है । उन्होंने कहा बच्चे अब मीठा खाने से परहेज करने लगे हैं । बच्चों के अलावा बड़े लोगों में भी मीठा के प्रति तेजी से बदलाव आ रहा है, इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं । महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने अभिभावकों का आह्वान करते हुए कहा बच्चों को बेशक से अंग्रेजी माध्यम और कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़ने के लिए भेजें। लेकिन भारतीय सनातन और संस्कृति के विषय में अवश्य जानकारी देकर उनमें सनातन संस्कार बनाएं। समाज परिवार और राष्ट्र की एकता अखंडता के लिए भारतीय संस्कृति और सनातन संस्कार गारंटी के साथ-साथ अनिवार्य भी हैं । बच्चों में सेवा भाव होना बहुत जरूरी है । परिवार में बच्चे अपने से बड़ों का आदर सत्कार सहित बुजुर्गों की सेवा भी करें । परिवार में बुजुर्गों से बच्चों को कम से कम तीन पीढ़ी के संस्कार मिलते हैं । वहीं बुजुर्गों के द्वारा जीवन के खट्टे मीठे अनुभव बताते हुए बच्चों का भविष्य उज्जवल बनाया जाता है । इसलिए यह बहुत जरूरी है कि बच्चों को सनातन संस्कार उपलब्ध होते रहे। Post navigation जी पहचानो, यह अयोध्या है या आश्रम हरी मंदिर संस्कृत महाविद्यालय पटौदी ! राजपूत महासभा जमीन अधिग्रहण मुद्दे को उठाऊंगा विधानसभा मे : विधायक जरावता