श्री राम की कुलदेवी कौन हैं? ……….. क्या आपको पता है भगवान राम के पूर्वज कौन थे, यहां देखें उनकी 40 पीढ़ियां अशोक कुमार कौशिक अयोध्या में राम मंदिर बनकर तैयार है जहां पर 22 जनवरी 2024 सोमवार को रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है। इसी संदर्भ में जानिए कि इस नगरी को किसने बसाया था और कौन था इसका प्रथम राजा? इसीके साथ जानिए कि कौन हैं वर्तमान में अयोध्या के राजा। भारत की प्राचीन नगरियों में से एक अयोध्या को हिन्दू पौराणिक इतिहास में पवित्र और सबसे प्राचीन सप्त पुरियों में प्रथम माना गया है। किसने बसाया था अयोध्या को? सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर को रामायण अनुसार प्रथम धरतीपुत्र ‘स्वायंभुव मनु’ ने बसाया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार ब्रह्मा से जब मनु ने अपने लिए एक नगर के निर्माण की बात कही तो वे उन्हें विष्णुजी के पास ले गए। विष्णुजी ने उन्हें अवधधाम में एक उपयुक्त स्थान बताया। विष्णुजी ने इस नगरी को बसाने के लिए ब्रह्मा तथा मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा को भेज दिया। कौन था इस नगर का प्रथम राजा : हालांकि इस नगर की रामायण अनुसार विवस्वान (सूर्य) के पुत्र वैवस्वत मनु महाराज द्वारा स्थापना भी किए जाने का उल्लेख मिलता है। माथुरों के इतिहास के अनुसार वैवस्वत मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे। वे यहां के प्रथम राजा थे। चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत की राजधानी अयोध्या : जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ का भी जन्म हुआ था जो कि श्रीराम के कुल के ही थे। ऋषभनाथ ने यहां पर कई वर्षों तक राज किया। ऋषभनाथ के पुत्र भरत ने कई काल तक यहां राज किया। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कंध एवं जैन ग्रंथों में चक्रवर्ती सम्राट राजा भरत के जीवन एवं उनके अन्य जन्मों का वर्णन आता है। महाभारत के अनुसार भरत का साम्राज्य संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप में व्याप्त था। अयोध्या इनकी राजधानी थी। इनके ही कुल में राजा हरिशचंद्र हुए और आगे चलकर श्रीराम हुए। अयोध्या का अंतिम राजा कौन था? इस संबंध में अलग अलग जानकारी मिलती है। यह भी कहा जाता है कि कुश की 44वीं पीढ़ी में बृहद्वल अंतिम राजा थे जिनकी मृत्यु महाभारत के युद्ध में अभिमन्यु के हाथों हुई थी। उनके मरने के बाद अयोध्या उजाड़ हो गई थी। हालांकि माना जाता है कि अयोध्या राजवंश के अंतिम शासक राजा चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में सुमित्रा थे। हालांकि राजा विक्रमादित्य के शासन क्षेत्र में यह नगरी बहुत काल तक रही। इसके बाद गुप्त वंश का यहां शासन रहा। संस्कृत के महान कवि कालिदास जी ने अपने काव्य ग्रंथ रघुवंशन के 19 सर्गों में रघु के कुल में उत्पन्न 20 राजाओं का 21 प्रकार के छन्दों का प्रयोग करते हुए वर्णन किया है। इसमें दिलीप, रघु, दशरथ, राम, कुश और अतिथि का विशेष वर्णन किया गया है। अग्निवर्ण को अंतिम राजा बताया गया है। वर्तमान में कौन है अयोध्या के राजा अयोध्या में राजवंश परिवार के मौजूदा राजा के रूप में विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र का नाम लिया जाता है। विमलेंद्र मिश्र अयोध्या रामायण मेला संरक्षक समिति के सदस्य और समाजसेवी होने के साथ ही राम मंदिर के ट्रस्टी भी हैं। अयोध्या राजवंश के राजा दर्शन सिंह की वंशावली से जुड़ी कड़ी में स्वर्गीय महारानी विमला देवी के दो पुत्र हैं विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र और शैलेन्द्र मोहन प्रताप मिश्र। अयोध्या में स्थित विशाल महल राज सदन इस राजवंश की गौरवगाथा का प्रतीक है। प्रभु श्री राम की कुलदेवी अयोध्या में प्रभु श्री राम की कुलदेवी का छोटा सा मंदिर है। अयोध्या में इसकी आधारशिला रखी गई है। कहते हैं कि भगवान राम की कुलदेवी बड़ी देवकाली है। ऐसी मान्यता है कि बड़ी देवकाली भगवान राम की कुलदेवी थीं और यह तीन देवियों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का संगम है। बड़ी देवकाली के मंदिर को लेकर इस इलाके में काफी श्रद्धा है। बड़ी देवकाली भगवान राम की कुलदेवी हैं। अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा से पहले होगी श्रीराम की कुलदेवियों की पूजा बड़ी देवकाली की महत्ता को बताते हुए कहा, भगवान राम के जन्म के बाद उनकी माता कौशल्या पूरे परिवार के साथ मंदिर आई थीं। उसके बाद ऐसी परंपरा बन गई है कि जब किसी के घर में बच्चे का जन्म होता है, तो उस परिवार के सदस्य पहले मंदिर आकर देवी के दर्शन करते हैं। बहुत से लोग कोई नया काम शुरू करने से पहले भी मंदिर में देवी के दर्शन करने आते हैं। भगवान राम के पूर्वज राजा रघु को सपने में देवी के दर्शन हुए थे। देवी ने उन्हें यज्ञ करवाने का निर्देश देते हुए कहा था कि युद्ध में उनकी विजय होगी। राजा रघु ने देवी के आदेश का पालन करते हुए यज्ञ करवाया और वे युद्ध में विजयी हुए, जिसके बाद उन्होंने यहां बड़ी देवकाली की मूर्ति स्थापित कराई। श्रद्धालु बहुत दूरदराज के इलाकों से अपनी समस्याएं एवं मन्नतें लेकर देवी के मंदिर में आते हैं और जब उनकी समस्याएं दूर हो जाती हैं एवं मन्नतें पूरी हो जाती हैं, तो वे देवी को धन्यवाद कहने आते हैं। कार्तिक पूर्णिमा, बसंत, शारदीय नवरात्र और रामनवमी पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं। देवकाली मंदिर के महंत को उम्मीद है कि राम मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को बड़ी देवकाली मंदिर की महत्ता की भी जानकारी मिलेगी। अयोध्या में श्रीराम मंदिर की आधारशिला रखे जाने के बाद भगवान राम की कुलदेवी बड़ी देवकाली के यहां स्थित मंदिर में भी श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने की उम्मीद है। महंत ने कहा कि मैं एक अयोध्यावासी होने के नाते बहुत प्रसन्न हूं कि भगवान राम को उनका जन्म स्थान मिल गया। भगवान राम भारत की आत्मा हैं। मेरा मानना है कि जब राम मंदिर के दर्शन करने श्रद्धालु अयोध्या आएंगे, तो वे बड़ी देवकाली मंदिर के दर्शन करने भी जरूर आएंगे। उन्होंने कहा, मुझे पूरा विश्वास है कि श्रद्धालुओं को जब इस मंदिर का भगवान राम के परिवार के संबंध होने के बारे में जानकारी मिलेगी, तो वे बड़ी संख्या में यहां भी आएंगे। श्रीराम की वंशावली श्री राम के पूर्वजों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं। आइए हम आपको बताते हैं भगवान राम के पिता दशरथ ही नहीं उनकी 40 पीढ़ियों के बारे में विस्तार से। भगवान राम की चालीस पीढ़ियां : भगवान राम के पिता का नाम दशरथ था। दशरथ के पिता का नाम अज था। अज के पिता का नाम नाभाग था।नाभाग के पिता का नाम ययाति था। ययाति के पिता का नाम नहुष था। नहुष के पिता का नाम अम्बरीष था।अम्बरीष के पिता का नाम प्रशुश्रक था। प्रशुश्रुक के पिता का नाम मरु था। मरु के पिता का नाम शीघ्रग था।शीघ्रग के पिता का नाम अग्निवर्ण था। अग्निवर्ण के पिता का नाम सुदर्शन था। सुदर्शन के पिता का नाम शंखण था।शंखण के पिता का नाम प्रवृद्ध था। प्रवृद्ध के पिता का नाम रघु था। रघु के पिता का नाम ककुत्स्थ था।ककुत्स्थ के पिता का नाम भागीरथ था। भागीरथ के पिता का नाम दिलीप था। दिलीप के पिता का नाम अंशुमान था।अंशुमान के पिता का नाम असमंज था। असमंज के पिता सगर थे। सगर के पिता का नाम असित था।असित के पिता का नाम भरत था। भरत के पिता का नाम ध्रवसन्धि था। ध्रुवसन्धि के पिता का नाम सुसन्धि था।सुसन्धि के पिता का नाम मान्धाता था। मान्धाता के पिता का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पिता का नाम धु्न्धुमार था।धुन्धुमार के पिता का नाम त्रिशंकु था। त्रिशंकु के पिता का नाम पृथु था। पृथु के पिता का नाम अनरण्य था।अनरण्य के पिता का नाम बाण था। बाण के पिता का नाम विकुक्षि था। विकुक्षि के पिता का नाम कुक्षि था।कुक्षि के पिता का नाम इक्ष्वाकु था। इच्छवाकु के पिता वैवस्वतमनु था। वैवस्वतमनु के पिता विस्वान थे।विस्वान के पिता कश्यम थे। कश्यप के पिता मरीचि थे। मरीचि के पिता ब्रह्मा थे। Post navigation श्रीरामचरित मानस से …….. कौन हैं महाराज निमि, क्यों करते हैं सभी की पलकों में निवास? 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