मोदी – भाजपा के विरोधी नहीं 

पीएम मोदी हार गए तो, दूसरी पार्टी राम मंदिर का प्रतिष्ठा का कार्य रोक देगी…’

पहले भी राजनीति से वास्ता रहा है शंकराचार्य का

अशोक कुमार कौशिक 

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 22 जनवरी को होने वाले राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने अब फिर से प्रतिक्रिया दी है। शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने अब कहा है कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अथवा भारतीय जनता पार्टी के विरोधी नहीं है

राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा को अशास्त्रीय बताने वाले शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा है कि,’हमारी आलोचना करने वालों द्वारा हमें कांग्रेसी कहना एक कमजोरी की निशानी है। पीएम मोदी का विरोधी वो हैं, जो उन्हें गलत कामों को करने से नहीं रोकते हैं…क्योंकि गलत काम से ही पतन होता है।’

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि, ‘हम तो पीएम मोदी से खुश हैं, हम चाहते हैं कि वे लंबे समय तक प्रधानमंत्री बने रहें…क्योंकि वो एक साहसी आदमी हैं, जब से वो सत्ता में आए हैं, उन्होंने हमेशा हिंदूओं का मनोबल बढ़ाया है। हम पीएम मोदी का विरोध क्यों करेंगे।’

‘पीएम मोदी हार गए तो, दूसरी पार्टी राम मंदिर का प्रतिष्ठा का कार्य रोक देगी…’

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि, ‘मैंने जो भी कहा, उसके बाद बहुत सारे लोगों ने कई सारी बातें कही हैं। इसमें से कई प्रमुखों ने कहा जो हो रहा है और जैसे हो रहा है, उसे होने दीजिए, अभी भी विपत्ति की स्थिति है…लोगों ने कहा कि, अगर लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी फिर से नहीं जीत पाए तो…कभी भी राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो पाएगी। अगर दूसरी पार्टी सत्ता में आ जाएगी तो फिर वो प्रतिष्ठा का कार्य रोक देगी।’

प्राण प्रतिष्ठा से पहले भगवान रामलला को भेंट की गई नई पोशाक, चांदी का शंख और बांसुरी भी

‘अगर मोदी सत्ता से चले जाते हैं तो हिंदू मनोबल गिर जाएगा…’

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि, ‘हम बस इतना चाहते हैं कि हमारे शासनकर्ता सबके प्रति राजधर्म का पालन करते रहे। लेकिन एक सनातनी होने की वजह जब हिंदुओं का मनोबल बढ़ता है, तो हमें खुशी होती है। अगर मोदी जी सत्ता से चले जाएंगे…तो हिंदू का मनोबल फिर से गिर जाएगा…इसलिए हम पीएम मोदी का विरोध क्यों करेंगे। पीएम मोदी को ना ही हमने कभी देखा है और ना ही हमारा उनसे कोई व्यक्तिगत संबंध है।’

शंकराचार्य और राजनीति

मठ मध्यकाल से ही राजनीतिक शक्ति और संरक्षण का केंद्र रहे हैं। उदाहरण के लिए श्रृंगेरी मठ एक समय विजयनगर के शासकों के साथ घनिष्ठता से जुड़ा था। आधुनिक समय में राजनेता अक्सर शंकराचार्यों के पास जाते रहे हैं और उनसे परामर्श करते रहे हैं। विशेष रूप से कांची मठ के चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती हर युग में प्रभावशाली व्यक्ति थे, उन्होंने महात्मा गांधी से लेकर इंदिरा और राजीव गांधी तक कई नेताओं से मुलाकात की थी।

एक अन्य उदाहरण स्वरूपानंद सरस्वती हैं, जिन्होंने 2022 में अपनी मृत्यु तक दशकों तक द्वारका और ज्योतिष पीठम दोनों के प्रमुख के रूप में कार्य किया। उन्होंने अक्सर अपनी विवादास्पद राय सार्वजनिक रूप से व्यक्त की और कांग्रेस नेताओं, विशेष रूप से नेहरू-गांधी परिवार के करीबी थे।

स्वरूपानंद के एक करीबी का कहना है कि, “कांग्रेस, भाजपा और सभी राजनीतिक दलों के लोग स्वामीजी (स्वरूपानंद) से मिलने आते थे। उन्होंने राजनीति में कभी भी खुलकर किसी का समर्थन नहीं किया, लेकिन राजीव गांधी के समय में वह उनके बहुत करीब थे और उनसे बहुत स्नेह करते थे।”

1980 में संजय गांधी की मृत्यु के बाद, स्वरूपानंद ने कथित तौर पर इंदिरा गांधी से मुलाकात की और उनसे कहा कि राजीव को पायलट बनना बंद कर देना चाहिए। जब उन्होंने पूछा कि उन्हें इसके बजाय क्या करना चाहिए, तो शंकराचार्य ने कहा कि उन्हें खुद को देश की सेवा के लिए समर्पित करना चाहिए।

स्वरूपानंद के निधन के बाद उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए एक संदेश में प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि उन्होंने 1990 में उनके परिवार के लिए गृह प्रवेश पूजा करवाई थी। 

जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी

यह वही साल था जब चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बने और उन्होंने टी.एन. शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) के पद पर नियुक्त करने का फैसला लिया। सीईसी के रूप में शेषन का कार्यकाल अभूतपूर्व रहा, उनकी आत्मकथा के अनुसार, वह पहले इस बात को लेकर असमंजस में थे कि क्या पद को स्वीकार किया जाए या नहीं और उन्होंने कांची शंकराचार्य से परामर्श करने के बाद ही ऐसा किया।

कुछ साल बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए श्रृंगेरी मठ के प्रमुख भारती तीर्थ के नेतृत्व में एक ट्रस्ट स्थापित करने की अपनी योजना में सभी शंकराचार्यों को शामिल करने का प्रयास किया। हालांकि, स्वरूपानंद कथित तौर पर यह मांग करते हुए पीछे हट गए कि सरकार अपनी भागीदारी बंद कर दे और शंकराचार्यों को मंदिर निर्माण में पूर्ण स्वतंत्रता दे। पुरी के निश्चलानंद ने भी ऐसा ही किया और राव की योजना धरी की धरी रह गई।

स्वरूपानंद कई मुद्दों पर संघ परिवार के भी कट्टर आलोचक थे, जिसमें राम मंदिर परियोजना का “राजनीतिकरण” भी शामिल था – एक परियोजना जिसके साथ वह खुद लंबे समय से जुड़े हुए थे और जब नरेंद्र मोदी 2014 में वाराणसी लोकसभा सीट के लिए प्रचार कर रहे थे, तो शंकराचार्य ने कथित तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत से “हर हर मोदी” नारे के बारे में शिकायत की और इसे “भगवान शिव का अपमान” और व्यक्ति पूजा कहा।

स्वरूपानंद और निश्चलानंद ने 2021 में मोदी सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों की आलोचना करते हुए कहा कि कानून बनाने से पहले किसानों को भरोसे में लिया जाना चाहिए था।

हालांकि, उससे एक साल पहले, निश्चलानंद ने मोदी सरकार के एक कदम – नागरिकता (संशोधन) अधिनियम – के पक्ष में भी बात की थी। उन्होंने कहा कि भारत, नेपाल और भूटान को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए। हालांकि, उन्होंने कहा था कि अगर पहले उचित विचार- विमर्श किया गया होता तो कानून के खिलाफ विरोध प्रदर्शन से बचा जा सकता था।

प्राण प्रतिष्ठा

2021 में स्वरूपानंद – जिन्होंने पहले कहा था कि 2020 में राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए तय किया गया समय अशुभ था – ने मंदिर के निर्माण को पूरा करने के लिए गठित ट्रस्ट पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “इसमें एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो प्राण प्रतिष्ठा कर सके।”

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