अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान तक राम का जन्मस्थान बताते रहे हैं इतिहासकार

क्या बाबर ने मस्जिद तोड़कर मंदिर बनवाई थी?

भाजपा ने लिखा 1556 में बाबर ने मंदिर तोड़ मस्जिद बनाई 

इतिहासकार ने बताया कि वह 1530 में ही मर गया था बाबर

अशोक कुमार कौशिक 

राम को राजा और हिंदुओं के आराध्य विष्णु का सातवां अवतार, दोनों माना जाता है। हिंदुत्ववादी संगठनों ने 90 के दशक में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए जो आंदोलन चलाया, उसका नाम ‘राम जन्मभूमि आंदोलन’ था। 

यह नाम इसलिए रखा गया था क्योंकि ऐतिहासिक रूप से हिंदुओं के बड़े वर्ग का यह दावा रहा है कि राम का जन्मस्थान वही है जहां कभी ‘बाबरी मस्जिद’ हुआ करती थी। दावे के मुताबिक, मुगल शासक ने राम जन्मभूमि पर स्थित मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवाई थी।

हालांकि ऐसा कोई ऐतिहासिक दस्तावेज़ या पुरातात्विक साक्ष्य नहीं है जो यह निर्णायक रूप से साबित कर सके कि राजा राम की अयोध्या वैसी ही थी जैसी आज उत्तर प्रदेश के एक जिले में पहचानी जाती है।

अलग-अलग इतिहासकारों ने राम के जन्मस्थान को अफगानिस्तान, ईरान, हरियाणा, आदि जगहों पर बताया है। उत्तर प्रदेश का अयोध्या राम की जन्मस्थली नहीं है, इस बात को सबसे गंभीर रूप से 1990 के दशक में उठाया गया।

अफगानिस्तान में हुआ था राम का जन्म?

1992 में इतिहासकार श्याम नारायण पांडे की लिखी किताब ‘Ancient Geography of Ayodhya’ प्रकाशित हुई। इस किताब में पांडे ने तर्क दिया कि राम का जन्म वर्तमान अफगानिस्तान के शहर हेरात में हुआ था। इस किताब में पांडे अलग-अलग देशों में ‘अयोध्या’ होने की बात भी लिखते हैं। किताब के इंडेक्स में तीन टाइटल मिलते हैं- अयोध्या इन वेस्ट बंगाल, अयोध्या इन नेपाल, अयोध्या इन थाईलैंड एंड लाओस

साल 1997 में पांडे ने बेंगलुरु में आयोजित 58वें इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में अपनी एक थ्योरी ‘Historical Rama distinguished from God Rama’ (ऐतिहासिक राम भगवान राम से अलग थे) पेश की थी। पांडे ने इस पेपर में वैदिक ग्रंथों का हवाला देकर और उन्हें क्षेत्र के पुरातात्विक खोजों से जोड़कर अपनी बात को साबित करने की कोशिश की थी।

2000 में राजेश कोचर ने भी अपनी किताब ‘द वैदिक पीपल: देयर हिस्ट्री एंड जियोग्राफी’ में राम के जन्मस्थान को अफगानिस्तान में बताया था। उनके अनुसार अफगानिस्तान की Hari-Rud नदी ही मूल ‘सरयू’ है और अयोध्या इसी के तट पर स्थित थी।

कोचर ने तर्क दिया कि अयोध्या की खोज Hari-Rud के किनारे की जानी चाहिए, न कि आधुनिक सरयू के किनारे, जिसका नाम बाद की पीढ़ियों के अप्रवासियों ने अपनी मातृभूमि की याद में रखा था। राम की वंशावली के अध्ययन के आधार पर कोचर ने यह भी दावा किया कि राम के पूर्वज पश्चिमी अफगानिस्तान-पूर्वी ईरान क्षेत्र में रहते थे।

हरियाणा में पैदा हुए थे राम?

1998 में पुरातत्वविद् कृष्ण राव ने बनावली को राम का जन्मस्थान बताया था। बनावली, हरियाणा में स्थित एक हड़प्पाकालीन स्थल है। राव ने राम की पहचान सुमेरियन राजा रिम-सिन प्रथम से और उनके प्रतिद्वंद्वी रावण की पहचान बेबीलोन के राजा हम्मुराबी से की थी। उन्होंने सिंधु मुहरों को समझने का दावा किया और कहा कि उन मुहरों पर ‘राम सेना’ (रिम-सिन) और ‘रवानी दामा’ शब्द पाए गए थे।

पाकिस्तान में पैदा हुए थे राम?

2015 में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अब्दुल रहीम कुरैशी ने एक पेपर ‘फैक्ट्स ऑफ अयोध्या एपिसोड’ प्रकाशित किया और तर्क दिया कि राम का जन्म पाकिस्तान के रहमान ढेरी में हुआ था। उन्होंने अपने पाकिस्तान के रहमान ढेरी में हुआ था। उन्होंने अपने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अधिकारी जस्सू राम के लेखन का हवाला दिया। उन्होंने तर्क दिया कि 11वीं शताब्दी में प्राचीन शहर साकेत का नाम बदलकर अयोध्या कर दिया गया था।

किसी प्राचीन ग्रंथ में जन्मस्थान का जिक्र नहीं- इतिहासकार

साल 2009 में फ्रंटलाइन को दिए इंटरव्यू में इतिहासकार डीएन झा ने कहा था, ‘जन्म स्थान शब्द भी किसी भी ग्रंथ में मौजूद नहीं है। स्कंद पुराण एक अनाकार ग्रंथ है और इसकी रचना 14वीं शताब्दी से लेकर 18वीं शताब्दी तक चली है। केवल अंतिम चरण में [18वीं शताब्दी के आसपास] जन्म स्थान का उल्लेख किया गया है। तो, जन्म स्थान का पूरा विचार 19वीं सदी में ही महत्वपूर्ण हो जाता है। बेशक, संघर्ष थे, लेकिन उनका समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं है। यह देखना महत्वपूर्ण है कि पहले के काल में हमें अयोध्या से कोई मूर्ति नहीं मिलती है। उत्तर प्रदेश के संग्रहालयों में दो या तीन कैटलॉग हैं। एक लखनऊ में, एक इलाहाबाद में और एक फैजाबाद यानी अयोध्या में। किसी भी कैटलॉग में राम का उल्लेख नहीं है।’

क्या बाबर ने मस्जिद तोड़कर मंदिर बनवाई थी?

भाजपा ने लिखा 1556 में बाबर ने मंदिर तोड़ मस्जिद बनाई  ………… इतिहासकार ने बताया कि वह 1530 में ही मर गया था

बुधवार (10 जनवरी) की सुबह भाजपा ने अपने आधिकारिक एक्स (पहले ट्विटर) हैंडल से एक वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, ‘1556 ईसवी में बाबर ने श्रीराम जन्मभूमि पर बने मंदिर को ध्वस्त कर मस्जिद बनवाई थी। रामराज्य – संघर्ष से परिणाम तक के अध्याय 1 अमावस्या में देखिए, कैसे 20वीं सदी में मंदिर निर्माण के लिए बजी संघर्ष की अंतिम रणभेरी…’

थोड़ी ही देर में यह वीडियो सोशल मीडिया पर छा गया। कई इतिहासकारों ने भाजपा के पोस्ट पर कमेंट कर बताया क‍ि इसमें तथ्यात्मक गलती है। इतिहासकार रुचिका शर्मा ने सवाल उठाया कि बाबर की मौत 1530 में ही हो गई थी, फिर उसने 1556 में मंदिर कैसे ध्वस्त किया?

रूचिका शर्मा का कमेंट का समर्थन करते हुए एक अन्य इतिहासकार साकिब सलीम ने तंजिया लहजे में लिखा, ‘इस देश में इतिहास का गंभीरता से अध्ययन करने वाले लोगों को छोड़कर हर कोई इतिहासकार है।’ इस तरह की प्रतिक्रिया के बाद भाजपा ने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया।

बाबर ने अयोध्या में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई थी या नहीं, इसे लेकर पहले भी विवाद हो चुका है। हिंदुत्ववादियों के दावों को पहली गंभीर चुनौती 1990 में चार भारतीय इतिहासकारों ने दी थी।

मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाए जाने पर चार इतिहासकारों ने उठाए सवाल

साल 1990 में प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने हिंदू और मुस्लिम पक्षों से सबूतों का आदान-प्रदान करने के लिए कहा ताकि दोनों पक्ष समझौते पर आगे बढ़ने के लिए एक-दूसरे की स्थिति को समझ सकें।

यह पहली बार था कि बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का प्रतिनिधित्व करने वाले राम शरण शर्मा, द्विजेंद्र नारायण झा, एम. अख्तर अली और सूरज भान जैसे इतिहासकारों ने एक स्वर में यह कहा कि अयोध्या में मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद नहीं बनाई गई थी।

इन चारों इतिहासकारों ने सरकार को ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद: ए हिस्टॉरियन्स रिपोर्ट टू द नेशन’ नामक एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें इस मान्यता को ख़ारिज किया गया था कि बाबरी मस्जिद के नीचे एक हिंदू मंदिर था यानी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी।

साल 2009 में फ्रंटलाइन को दिए एक इंटरव्यू में प्रख्यात इतिहासकार डीएन झा ने अपनी रिपोर्ट पर बात की थी, ‘बाबरी मस्जिद का निर्माण मुगल शासक बाबर के राज्य के एक सैन्य अधिकारी मीर बाकी ने 1528-29 में कराया था। संघ परिवार का मुख्य तर्क यह है कि मस्जिद राम मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी और यह राम का जन्म स्थान था। लेकिन सच यह है कि 1948-49 में गोविंद बल्लभ पंत के मुख्यमंत्रित्व काल (संयुक्त प्रांत) और नेहरू के प्रधानमंत्रित्व काल में मूर्तियों को मस्जिद में रखकर, चमत्कारिक घटना बताया गया था। तब से लेकर 1970 के दशक के मध्य तक, किसी ने इस विवाद के बारे में कुछ नहीं सुना। विश्व हिंदू परिषद के अस्तित्व में आने के बाद काशी, मथुरा और अयोध्या को तीर्थ स्थल बताना शुरू किया गया।’

डीएन झा ऐतिहासिक ग्रंथों और साक्ष्यों के आधार पर दावा करते हैं कि पहले राम जन्मभूमि का बहुत महत्व नहीं था। वह कहते हैं, ‘स्कंद पुराण एक बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रंथ। इस ग्रंथ में घग्गर नदी और सरयू नदी के संगम पर स्वर्गद्वार नामक स्थान से राम के स्वर्गारोहण के बारे में 100 छंद में लिखा गया है। लेकिन ग्रंथ में राम के जन्म के बारे में केवल 10 श्लोक ही हैं। इससे पता चलता है कि उनका जन्मस्थान महत्वपूर्ण नहीं था बल्कि महत्वपूर्ण वह स्थान था जहां से वे स्वर्ग गए थे। केवल स्वर्गद्वार ही तीर्थ था।’

झा आगे कहते हैं, ‘भट्ट लक्ष्मी धर द्वारा लिखित 11वीं शताब्दी के ग्रंथ कृत्यकल्पतरु में विस्तृत से तीर्थस्थलों की सूची दी गई है। यह बहुत लंबी सूची है। लेखक गढ़वाल साम्राज्य में मंत्री थे, जिसका उस समय अयोध्या पर भी शासन था। उन्होंने तीर्थ विवेचन कांड [किताब में तीर्थस्थलों को समर्पित एक खंड] में तीर्थयात्रा के केंद्र के रूप में अयोध्या का उल्लेख नहीं किया गया है।’

तुलसीदास ने नहीं किया मंदिर तोड़ने का जिक्र

डीएन झा तुलसीदास रचित रामचरितमानस का उदाहरण देते हुए बताते हैं, ‘वह राम और अयोध्या के बारे में लिखते हैं लेकिन यह कभी नहीं कहते कि राम मंदिर तोड़ा गया। अन्य प्रकार के पुरातात्विक साक्ष्यों से यह भी पता चलता है कि पूरे उत्तर भारत में 17वीं सदी के अंत से 18वीं सदी की शुरुआत तक विशेष रूप से राम को समर्पित कोई मंदिर नहीं था। दक्षिण भारत में आप इन्हें चोल काल (10वीं-12वीं शताब्दी) से पाते हैं, लेकिन उत्तर भारत में नहीं। 12वीं शताब्दी के राम के दो या तीन मंदिर मध्य प्रदेश में पाए जाते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में नहीं, बिहार में नहीं, उड़ीसा में भी नहीं। 17वीं शताब्दी में उत्तर भारत में राम मंदिरों का प्रचलन आम हुआ।’ 

अयोध्या जैन और बौद्ध धर्मों के लिए महत्वपूर्ण थी- इतिहासकार

अयोध्या को बौद्ध और जैन धर्म के लिए प्रमुख स्थल बताते हुए प्रोफेसर झा कहते हैं, ‘वास्तव में अयोध्या जैन और बौद्ध धर्म जैसे अन्य धर्मों के लिए भी महत्वपूर्ण थी। चीनी तीर्थयात्री जुआन झांग (जिन्होंने 630 ई. के आसपास गुप्त काल के दौरान उपमहाद्वीप का दौरा किया था) ने दर्ज किया है कि वहां लगभग 100 बौद्ध मठ थे और देवों (ब्राह्मण देवताओं) के केवल 10 स्थान थे। विष्णु स्मृति में भी तीसरी-चौथी शताब्दी के आरंभ में 52 तीर्थस्थलों की सूची दी गई है, लेकिन इसमें अयोध्या का नाम नहीं है। मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूं, भले ही तर्क के लिए, वह यह है कि यदि अयोध्या में कोई मंदिर इतना महत्वपूर्ण था, तो 1528 में मस्जिद बनाए जाने से पहले के साहित्यिक और पुरातात्विक साक्ष्य में मौजूद होना चाहिए था। कम से कम इसका अस्तित्व 11वीं-12वीं शताब्दी में होना चाहिए था।’

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