श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के नारे जिसने इतिहास रचा

अशोक कुमार कौशिक

अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण अपने अंतिम चरण में है। 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर का उद्घाटन होगा और राम लला का प्राण प्रतिष्ठा किया जाएगा। अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनने तक की यात्रा कतई आसान नहीं थी। रामजन्मभूमि पर मस्जिद के निर्माण से लेकर वापस राम लला के भव्य मंदिर बनने तक लगभग पांच सदियां बीत गईं. अयोध्या सालों तक विवाद का केंद्र रही है।

वाद-विवाद से शुरू हुई कहानी कई वर्षों तक कोर्ट की फाइलों में घूमती रही, हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस विवादित जमीन का निपटारा किया, जिसके बाद राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो गया। अब मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं बाबर से लेकर सुप्रीम कोर्ट और फिर राम मंदिर बनने में साल दर साल कब क्या हुआ।

1528 : अयोध्या में एक ऐसी जगह पर मस्जिद बनाई गई। जिसे हिन्दू समुदाय के लोग मानते हैं कि वहां भगवान राम का जन्म हुआ था। कहा जाता है कि मुगल सम्राट बाबर ने यह मस्जिद बनवाई थी जिसे बाबरी मस्जिद कहा जाता है।

1853 : इस मुद्दे पर पहली बार दो समुदायों के बीच विवाद हुआ। दस्तावेजों के अनुसार पहली बार हिंदुओं ने आरोप लगाया कि भगवान राम की जन्मभूमि में मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद का निर्माण हुआ है। इस मुद्दे पर पहली बार हिंदुओं और मुसलमानों के बीच हिंसा हुई।

 1885: अंग्रेजों के शासन में मामला पहली बार कोर्ट पहुंचा। महंत रघुबर दास ने अदालत से मांग की कि चबूतरे पर मंदिर बनाने की इजाजत दी जाए। यह मांग खारिज हो गई। इसके बाद इस संबंध में ज्यादा कुछ नहीं हुआ और 6 दशक से ज्यादा समय तक मामले में एक तरह से धूल पड़ती रही।

1946 : बाबरी मस्जिद को लेकर शियाओं और सुन्नियों में विवाद. बाबर सुन्नी था इसलिए फैसला शियाओं के खिलाफ गया।

1949: जुलाई में राज्य सरकार ने मस्जिद के बाहर राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की कवायद शुरू की। लेकिन यह भी नाकाम रही.

1949 : देश आजाद हो चुका था। 22-23 दिसंबर को मस्जिद में राम सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां रखी गईं और मुस्लिमों ने यहां नमाज पढ़ना बंद कर दिया। बाद में सरकार ने यहां ताला लगा दिया।

1949 : 29 दिसंबर को मंदिर की संपत्ति कुर्क कर ली और वहां रिसीवर बिठा दिया गया।

1950 : इस जमीन के लिए अदालती लड़ाई का एक नया दौर शुरू होता है। इस तारीखी मुकदमे में जमीन के सारे दावेदार 1950 के बाद के थे।

1950 : 16 जनवरी को गोपाल दास विशारद कोर्ट ने कहा कि मूर्तियां वहां से न हटाई जाएं और बिना रुकावट के पूजा जारी रखी जाए। कोर्ट ने कहा- मूर्तियां नहीं हटेंगी, लेकिन ताला बंद रहेगा और पूजा सिर्फ पुजारी करेगा। जनता बाहर से दर्शन करेगी।

1959: निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में पहुंच कर दावा पेश किया।

1961: 18 दिसंबर को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित स्थल के मालिकाना हक के लिए मुकदमा दर्ज कराया।

1984: विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल का ताला खोलने की मांग करते हुए एक विशाल मंदिर के निर्माण के लिए अभियान की शुरुआत की।‌ विहिप ने एक समिति का गठन भी किया।

1986: 1 फरवरी को फैजाबाद कोर्ट के फैसले से हिंदुओं को राहत मिली। विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी गई। फैसले के बाद विवादित ढांचे का ताला दोबारा खोला गया। इससे नाराज मुसलमानों ने विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।

1989: 1 जुलाई को भगवान रामलला विराजमान नाम से पांचवां मुकदमा दर्ज किया गया। यह केस वीएचपी नेता देवकीनंदन अग्रवाल ने दायर किया।

1989: 9 नवंबर को उस समय देश के प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी की सरकार ने विवादित स्थल के पास ही राममंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी।

1990 : 25 सितंबर को बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से एक रथ यात्रा शुरू की। इस यात्रा को अयोध्या तक जाना था। इस रथयात्रा से पूरे मुल्क में एक जुनून पैदा किया गया, जिसकी वजह से गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश में दंगे भड़क गए। कई इलाके कर्फ्यू लगा दिया गया।

1990 : आडवाणी को 23 अक्टूबर को बिहार में लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया।

1990 : कारसेवक ढाचे के गुंबद पर चढ़ गए और गुम्बद तोड़ा। वहां भगवा फहराया। इसके बाद दंगे भड़क गए।

1991 : जून में आम, चुनाव हुए और यूपी में बीजेपी की सरकार बन गई।

1992 : 30-31 अक्टूबर को धर्म संसद में कारसेवा की घोषणा हुई।

1992 : नवंबर में कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की हिफाजत करने का हलफनामा दिया।

1992 : 06 दिसंबर वह दिन था, जिसके लिए रामंदिर आंदोलन सबसे ज्यादा चर्चा में रहा है। इस दिन हजारों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंचे। लाखों कारसेवकों ने बाबरी ढाचे को गिरा दिया। कारसेवक 11 बजकर 50 मिनट पर ढाचे के गुंबद पर चढ़े। करीब 4.30 बजे मस्जिद का तीसरा गुंबद भी गिर गया।

बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद देशभर में दंगे भड़क उठे। इसी दौरान जल्दबाजी में एक अस्थायी राममंदिर बनाया गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने मस्जिद के पुननिर्माण का वादा भी किया।

2002 : अप्रैल में विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने सुनवाई शुरू की। 

2003: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने झगड़े वाली जगह पर खुदाई करवाई ताकि पता चल सके कि क्या वहां पर कोई राम मंदिर था।

2005: जुलाई में यहां आतंकवादी हमला हुआ। लेकिन आतंकवादी वहां कुछ नुकसान नहीं कर सके और मारे गए। आतंकवादियों ने विवादित स्थल पर विस्फोटक से भरी एक जीप का इस्तेमाल किया सुरक्षा बलों ने मुठभेड़ में 5 आतंकियों को मार गिराया।

2010 : 30 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। जिसमें विवादित स्थल को तीन बराबर हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बांटा गया।

2017 : 21 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में मध्यस्थता की पेशकश की। चीफ जस्टिस जेएस खेहर ने पेशकश की कि अगर दोनों पक्ष राजी हों तो वह कोर्ट के बाहर मध्यस्थता के लिए भी तैयार हैं।

2018 : 8 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के लिए सिविल अपील पर सुनवाई शुरू हुई।

2019 : 8 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की एक संविधान पीठ बनाई, जिसका नेतृत्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई कर रहे थे. इसमें अन्य चार जज जस्टिस एसए बोबड़े, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ थे।

2019 : 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बातचीत से सुलझाने का फैसला किया और इसके लिए तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति का गठन कर दिया।

2019 : 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने हिंदुओं को पक्ष में फैसला सुनाया और पूरी विवादित जमीन सौंप दी। मुस्लिम पक्ष को भी इस जगह से दूर मस्जिद देने का आदेश सुनाया गया।

2020 : 5 अगस्त को राम मंदिर के लिए भूमि पूजन का कार्यक्रम रखा गया। पीएम नरेंद्र मोदी के हाथों अयोध्या में भव्य राम मंदिर का भूमि पूजन हुआ। इस तरह से अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की शुरुआत हुई।

2024 : 22 जनवरी को अयोध्या में बनकर तैयार हुए भव्य राममंदिर का उद्घाटन और मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा होगी।

राम जन्मभूमि आंदोलन के नारे

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन को संकल्प से सिद्धि तक पहुंचने में तत्कालीन नारों ने महती भूमिका निभाई। आंदोलन के हर चरण में अलग-अलग नारे और अलग-अलग जयघोष थे। ”जय श्रीराम” राम मंदिर आंदोलन के हर चरण का नारा था।विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री अंबरीश ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि ‘बच्चा-बच्चा राम का जन्मभूमि के काम का’ नारे ने जन-जन को राम मंदिर आंदोलन से जोड़ने का काम किया। आंदोलन के प्रारंभिक काल में ‘सौगंध राम की खाते हैं हम मंदिर भव्य बनाएंगे’ यह नारा खूब लोकप्रिय हुआ।

कुछ चर्चित नारे:-

:-समता ममता के उद्गाता, राम से है हम सबका नाता

:-राम ने उत्तर-दक्षिण जोड़ा, भेदभाव का बंधन तोड़ा

:-बच्चा-बच्चा राम का, जन्मभूमि के काम का

:-सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे

:-सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर भव्य बनाएंगे

:-जहां राम ने जन्म लिया है, मंदिर वहीं बनाएंगे

:-जन्मभूमि है रामलला की, बाबर की जागीर नहीं, तेल लगाओ डाबर का, नाम मिटाओ बाबर का

:-जिस हिन्दू का खून न खौला, खून नहीं वह पानी है, जन्मभूमि के काम न आवे, वह बेकार जवानी है

:-जिस हिन्दू की भुजा न फड़की, खून न खौला सीने का, भारत मां का लाल न होगा, होगा किसी कमीने का

:-हम हिन्दू हैं साठ करोड़, ताला देंगे तोड़-मरोड़

:-जो बाबर का नाम लिया तो, जीभ खींच ली जाएगी

:-आज ताले में बंद पड़े राम, अयोध्या सूनी पड़ी, हम सुविधा के बने हैं गुलाम, अयोध्या सूनी पड़ी

;-आगे बढ़ो जोर से बोलो, जन्मभूमि का ताला तोड़ो

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