क्या  सनातन धर्म में कोई भी प्रमुख पूजा बगैर पत्नी के होनी चाहिए?

मंदिर का क्रेडिट मोदी-योगी को क्यों पर बोले मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास, अदालतें तो इतने वर्ष

राम मंदिर के लिए दान में मिले सैकड़ों किलो सोने और चांदी का क्या होगा?

राम राम तो कह लोगे पर, राम सा दुख भी सहना होगा, इस जबरदस्ती के जय श्री राम में सब कुछ है..बस राम नहीं!

राम पर वायरल हो रही इस कविता में ऐसा क्या है?

अशोक कुमार कौशिक

अयोध्या के नवनिर्मित भव्य मंदिर में 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा तय हो चुका है। राम मंदिर को लेकर शंकराचार्यों का क्या कहना है सबसे पहले इस पर चर्चा करें।

ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से पुछा गया कि आपके गुरू ब्रम्हलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का राम मंदिर आंदोलन में अहम योगदान रहा और राम मंदिर का उद्घाटन होने जा रहा है, आपको कोई न्यौता दिया गया है आने का?

तो उनका कहना था कि नहीं, हमें इसे लेकर कोई आमंत्रण नहीं मिला है। प्रधानमंत्री ने मन्दिर का शिलान्यास किया वही उद्घाटन कर दें। फिर जो ट्रस्ट बना है उसमें कोई धर्माचार्य तो है नहीं ,सिर्फ राजनीतिक दल और इसके आसपास काम करने वाले कार्यकर्ता ही हैं। कोई विश्व हिंदू परिषद का है तो कोई संघ का, कोई बजरंग दल या कहीं किसी और संगठन का।

अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य जगतगुरु अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा था कि जब रामनवमी कुछ ही महीना बाद है। ऐसे में रामनवमी से पहले जनवरी माह में मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की क्या आवश्यकता थी? सत्ताधारी दल पर सवाल उठाते हुए कहा कि भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा दूसरे नंबर पर है। प्राण प्रतिष्ठा में जल्दबाजी की पहली वजह दूसरी है। क्योंकि लोकसभा चुनाव 2024 होने वाले हैं और सत्ताधारी दल इसका लाभ लेना चाहता है। इसीलिए रामनवमी तक प्रतीक्षा करने की जगह जनवरी में ही भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा की जा रही है।

इससे पहले ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखने के समय को लेकर आपत्ति जताई थी, इसे अशुभ घड़ी बताई है। उन्होंने कहा कि ये चाह नहीं है कि हमें कोई ट्रस्टी या पदाधिकारी बनाया जाए। हम तो राम भक्त हैं। राम मंदिर कोई भी बनाता है सही ढंग से बनाता है तो हमें प्रसन्नता होगी पर ये सब उचित तिथि और उचित मुहूर्त में होना चाहिए। जिस मुहुर्त में ये हो रहा है ये अशुभ घड़ी है।

सनातन धर्म में कोई भी प्रमुख पूजा बगैर पत्नी के होनी चाहिए? यदि नहीं, तो जशोदाबेन को सनातन हक कब दिलाएंगे?

श्रीराम मंदिर की पहली प्रमुख पूजा भी नरेंद्र मोदी ने बगैर पत्नी के की थी और इस बार भी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की, पत्नी की गैरमौजूदगी में अमर्यादित पूजा नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। क्या इस पर कोई कुछ बोलेंगे? वैसे तो किसी बड़े मंदिर में फोटोग्राफी होनी ही नहीं चाहिए, खासकर जहां वर्जित है। लेकिन फोटोजीवी पीएम नरेंद्र मोदी की पूजा के समय फोटोग्राफर तो मौजूद ही रहता है। जरूरत पड़े तो मुख्य पुजारी को हटा कर एक ओर भी कर दिया जाता है। क्या इस पर कोई टिप्पणी करेंगे? कोई जूते पहन कर मंदिर परिक्रमा करे या भगवान की ओर पीठ करके फोटोग्राफी, क्या ऐसी घटनाओं पर कोन सनातन ज्ञान देंगे?

कितने आश्चर्य की बात है कि श्रीराम मंदिर आंदोलन के प्रमुख ध्वजवाहक लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को ही श्रीराम मंदिर समारोह से दूर रखा जा रहा है और आचार्य प्रमोद को आमंत्रित किया जा रहा है, ऐसा काहे, कोई बताएगा?

उससे पहले राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने खुलकर अपनी बात रखी हैं। उन्होंने श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन से जुड़ी पुरानी यादों को साझा किया है। उन्होंने कहा कि इस घड़ी की वर्षों से प्रतिक्षा थी। प्राण प्रतिष्ठा का दृश्य अपने आप में अदभुत होगा। जिस दिन रामलला अपने भव्य और दिव्य मंदिर में विराजेंगे। वह एक युग के समान होगा। उन्होंने कहा कि अब समय बदल गया है, परेशानियां समाप्त हो गई हैं। अब राम युग आ गया है।

राम मंदिर का श्रेय किसे

राम मंदिर का श्रेय किसको जाता है के सवाल पर सतेंद्र दास ने कहा कि अदालतें आज से नहीं हैं, आजादी के पहले से हैं। इतने साल से राम मंदिर को लेकर फैसला नहीं आया। कांग्रेस की सरकार आई तब कुछ नहीं हुआ। भाजपा की सरकार आई तो सुनवाई टालने की कोशिश हुई। मैं कहना चाहूंगा की जिनको राम में आस्था है, जिन पर भगवान की कृपा है वो सत्ता में हैं और जो राम के विरोधी थे वो सत्ता से बाहर है। उन्होंने कहा कि जब से भाजपा की सरकार आई, खासकर पीएम मोदी और योगी की नजर अयोध्या पर बनी हुई हैं। उनकी वजह से आज अयोध्या में तेजी से विकास हो रहा है।

रामलला की कृपा से वे 28 वर्ष भी बीत गए

आचार्य सत्येंद्र दास ने पुराने समय को याद करते हुए कहा कि जब वर्षों तक रामलला को तिरपाल के नीचे रहना पड़ा। उन्होंने कहा कि आज से पहले वह समय बहुत दर्दनाक था। ये मान कर चलिए की भगवान रामलला की कृपा से 28 वर्ष बीत गए और पता भी नहीं चला। उन्होंने कहा कि जब भगवान राम वनवास के लिए जाने लगे थे तो माता सीता ने हठ किया था की मैं भी साथ चलूंगी। तब भगवान ने तमाम तर्क रखे थे कि क्यों उनका जाना ठीक नहीं है। तब सीता माता ने कहा था कि जैसे बिना जल के गंगा और सरयू का मतलब नहीं रह जाता, वैसे ही साथ में पति नहीं तो नारी भी निर्जीव है।

सत्येंद्र दास ने कहा कि इस घड़ी का सालों से इंतजार था। प्राण प्रतिष्ठा का दृश्य अपने आप में अद्भुत और विलक्षण होगा। जिस दिन प्राण प्रतिष्ठा होगी तथा रामलला अपने भव्य और दिव्य मंदिर में विराजेंगे वह एक युग के समान है। उन्होंने कहा कि उस वक़्त बहुत कष्ट होता था जब बरसात के छींटे भगवान के आसन तक आते थे। प्रभु को सप्ताह में 7 वस्त्र पहनाए जाते थे।

वही एक बार रामनवमी को जो वस्त्र बनते थे, वही वर्षभर चलते थे। जबकि उन्हें रोज नए वस्त्र पहनाए जाने चाहिए। उनके भोग, प्रसाद और अन्य खर्चों के लिए केवल 20 हजार रुपए सालाना मिलते थे। हम जितना मांगते थे उतना नहीं मिलता था। 28 सालो के चलते आखिरी में 30 हजार रुपए सालाना मिलता था। इत्र, चंदन, वस्त्र इत्यादि पर इन पैसों का खर्च होता था। तिरपाल फट जाने पर भी इसे बदलने के लिए कोर्ट जाना पड़ता था। मगर रामलला की कृपा से यह दौर भी बीत गया’। वही यह पूछे जाने पर कि क्या आपके मन मुताबिक मंदिर का निर्माण हो रहा है? आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा, ‘बहुत अच्छा निर्माण हो रहा है। जैसा सोचा था उससे भी भव्य। हम ईंट-पत्थर से बने भवन देखते थे। मगर राम मंदिर में सिर्फ कीमती पत्थरों का उपयोग हुआ है’।

राम लला की प्रतिमा कैसी होगी इस बारे में उन्होंने कहा, ‘प्रभु की मूर्ति बालक रूप वाली होगी। यह रूप विलक्षण होता है, जिसे देखने के लिए स्वयं भगवान शंकर आए थे। बालक रूप में प्रभु राम का दर्शन अद्भुत होता है’।

राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पश्चात् रामलला की पूजा की पद्धति बदलने की बात पर आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा, ‘ट्रस्ट पुजारियों की नियुक्ति कर रहा है। क्या परिवर्तन होगा इस बारे में पता नहीं है। मगर देशभर में राम, सीता और लक्ष्मण के जितने मंदिर हैं वहां रामानंदी परंपरा के मुताबिक पूजा होती है और हम भी सालों से इसी परंपरा से रामलला की पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं। इस पद्धति में 16 मंत्र होते हैं और वैष्णव परंपरा में इन्हीं मंत्रों से पूजा होती रही है’।

राम मंदिर के लिए देशभर से कई किलो सोना और चांदी दान में मिला है, जिसके बाद अब सवाल है कि आखिर इतने सोने का आगे क्या होगा?

कई चीजों में दिखेगी सोने की चमक

दरअसल राम मंदिर में कई ऐसी चीजें होंगी, जिन पर सोने की परत चढ़ाई जा रही है। रामलला के सिंहासन से लेकर पादुकाओं तक में सोने की चमक दिखेगी। इसके अलावा गर्भगृह में जो दरवाजे होंगे, उन पर भी सोने से उकेरी कलाकारी देखी जा सकती है। साथ ही रामलला के हाथों में जो धनुष-बाण होंगे उनके भी सोने से बने होने की बात सामने आ रही है।

बाकी बचे सोने का क्या होगा?

इस सबके बावजूद राम मंदिर में कई सौ किलो सोना बच जाएगा, साथ ही चांदी की मात्रा भी इससे कई ज्यादा है। अब राम मंदिर के इस खजाने को सुरक्षित रखने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। कई लोगों ने सोने से बने आभूषण, ईंटें और सिक्के राम मंदिर में दान किए हैं। इन सभी को एक साथ सुरक्षित रखना काफी मुश्किल हो सकता है। ऐसे में मंदिर ट्रस्ट अब इस पूरे सोने को गलाकर इसे एक जगह रखेगा। ऐसा करने से इतनी सारी सोने-चांदी की चीजों को संभालने का झंझट भी खत्म हो जाएगा और इसे सुरक्षित रखना भी आसान होगा।

बता दें कि राम मंदिर के लिए लोग पिछले कई सालों से दान कर रहे हैं, मंदिर निर्माण शुरू होने के साथ ही दान कई गुना बढ़ गया। विदेशों से भी मंदिर को दान में कई महंगी चीजें मिल रही हैं। लाखों-करोड़ों में आने वाले इस दान का हिसाब-किताब भी रखा जा रहा है। इसके लिए पहले से ही ट्रस्ट की तरफ से व्यवस्था की गई है।

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बीच सोशल मीडिया पर श्रीराम को लेकर एक कविता वायरल हो रही है। साइको शायर (Psycho Shayar) नाम के यूट्यूब चैनल पर ये वीडियो 25 दिसंबर को अपलोड हुआ था। 29 दिसंबर तक चार दिनों में इसे छ: लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं। इस कविता को लिखा और परफॉर्म किया है, अभि मुंडे ने। पूरा नाम अभिजीत बालकृष्ण मुंडे, पिछले कुछ सालों से वे अभि मुंडे/Psycho Shayar के नाम से कविताएं लिख रहे हैं। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाके में एक गांव है अंबाजोगाई, वे वहीं के रहने वाले हैं। जलगांव के सरकारी कॉलेज से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। उसी दौरान दूसरे साल में पढ़ाई के दौरान कविताएं लिखना शुरू किया। उससे पहले तक वे चित्रकार और रंगोलीकार ही थे और उसी में कुछ करना था पर नियति ने कुछ और ही नियत कर रखा था। उनका व्यक्तित्व वर्सेटाइल है। इतिहास की किताबें लिखी हैं। शंभूगाथा ,छत्रपति संभाजी महाराज, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र थे, उनकी पूरी जीवनी लिखी है। वे मराठी में स्टैंड-अप कॉमेडी करते हैं। और कविताएं भी लिखते हैं।

आपने उनके बारे में सुना, अब उस कविता को भी सुन लीजिए जिसकी बात हो रही है, इसमें पहले एक मोनोलॉग है। जिसमें अभि आते हैं, कविता के अनुसार वो त्रेता से आए हैं। वे सबसे पहले अपने श्रोताओं और दर्शकों से कहते हैं कि दस तक गिनती गिन रहा हूं। इस बीच राम लिखते, सुनते, पढ़ते, देखते या दिखते ही जो छवि आपके मन में आए। उसे सहेजकर रखिये. फिर वे नौ तक गिनते हैं। लेकिन वहीं रुक जाते हैं. फिर कहते हैं,

हाथ काट कर रख दूंगा, ये नाम समझ आ जाए तो

कितनी दिक्कत होगी पता है, राम समझ आ जाए तो

राम राम तो कह लोगे पर, राम सा दुख भी सहना होगा

पहली चुनौती ये होगी के, मर्यादा में रहना होगा

और मर्यादा में रहना मतलब कुछ खास नहीं कर जाना है.. बस..

बस त्याग को गले लगाना है और अहंकार जलाना है

अब अपने रामलला के खातिर इतना ना कर पाओगे

अरे शबरी का जूठा खाओगे तो पुरुषोत्तम कहलाओगे

काम क्रोध के भीतर रहकर तुमको शीतल बनाना होगा

बुद्ध भी जिसकी छांव में बैठे वैसा पीपल बनाना होगा

बनना होगा ये सब कुछ और वो भी शून्य में रहकर प्यारे

तब ही तुमको पता चलेगा.. थे कितने अद्भुत राम हमारे

सोच रहे हो कौन हूं मै,? चलो.. बता ही देता हूं

तुमने ही तो नाम दिया था,मैं.. पागल कहलाता हूं

नया नया हूं यहां पे तो ना पहले किसी को देखा है

वैसे तो हूं त्रेता से.. मुझे कृ.. किसने कलयुग भेजा है

भई बात वहां तक फैल गई है की यहां कुछ तो मंगल होने को है

के भरत से भारत हुए राज में सुना है राम जी आने को हैं

बड़े भाग्यशाली हो तुम सब नहीं, वहां पे सब यहीं कहते है

के हम तो रामराज में रहते थे.. पर इन सब में राम रहते है यानी..

तुम सब में राम का अंश छुपा है.?

नहीं मतलब वो.. तुम में आते है रहने?

सच है या फिर गलत खबर? गर सच ही है तो क्या कहने

तो सब को राम पता ही होगा घर के बड़ों ने बताया होगा..

तो बताओ.. बताओ फिर कि क्या है राम

बताओ फिर कि क्या है राम.. बताओ…

अरे पता है तुमको क्या है राम..? या बस हाथ धनुष तर्कश में बाण..

या बन में जिन्होंने किया गुजारा या फिर कैसे रावण मारा

लक्ष्मण जिनको कहते भैया जिनकी पत्नी सीता मैया

फिर ये तो हो गई वो ही कहानी एक था राजा एक थी रानी

क्या सच में तुमको राम पता है या वो भी आकर हम बताएं?

बड़े दिनों से हूं यहां पर.. सबकुछ देख रहा हूं कबसे

प्रभु से मिलने आया था मै.. उन्हें छोड़ कर मिला हूं सब से

एक बात कहूं गर बुरा ना मानो नहीं तुम तुरंत ही क्रोधित हो जाते हो

पूरी बात तो सुनते भी नहीं.. सीधे घर पर आ जाते हो

ये तुम लोगों के.. नाम जपो में.. पहले सा आराम नहीं

ये तुम लोगों के.. नाम जपो में..पहले सा आराम नहीं

इस जबरदस्ती के जय श्री राम में सब कुछ है..

बस राम नहीं!

ये राजनीति का दाया बायां जितना मर्ज़ी खेलो तुम

( दाया बायां.. अरे दाया बायां..?

ये तुम्हारी वर्तमान प्रादेशिक भाषा में क्या कहते है उसे..?

हां.. वो.. लेफ्ट एंड राइट)

ये राजनीति का दाया बायां जितना मर्ज़ी खेलो तुम

चेतावनी को लेकिन मेरी अपने जहन में डालो तुम

निजी स्वार्थ के खातिर गर कोई राम नाम को गाता हो

तो खबरदार गर जुर्रत की.. और मेरे राम को बांटा तो

भारत भू का कवि हूं मैं.. तभी निडर हो कहता हूं

राम है मेरी हर रचना में मै बजरंग में रहता हूं

भारत की नीव है कविताएं और सत्य हमारी बातों में

तभी कलम हमारी तीखी और.. साहित्य.. हमारे हाथों में!

तो सोच समझ कर राम कहो तुम ये बस आतिश का नारा नहीं

जब तक राम हृदय में नहीं.. तुम ने राम पुकारा नहीं

राम- कृष्ण की प्रतिभा पर पहले भी खड़े सवाल हुए

ये लंका और ये कुरुक्षेत्र.. यूं ही नहीं थे लाल हुए

अरे प्रसन्न हंसना भी है और पल पल रोना भी है राम

सब कुछ पाना भी है और सब पा कर खोना भी है राम

ब्रम्हा जी के कुल से होकर जो जंगल में सोए हो

जो अपनी जीत का हर्ष छोड़ रावण की मौत पे रोए हो

शिव जी जिनकी सेवा खातिर मारूत रूप में आ जाए

शेषनाग खुद लक्ष्मण बनकर जिनके रक्षक हो जाए

और तुम लोभ क्रोध अहंकार छल कपट, सीने से लगा कर सो जाओगे?

तो कैसे भक्त बनोगे उनके? कैसे राम समझ पाओगे?

अघोर क्या है पता नहीं और शिव जी का वरदान चाहिए

ब्रम्हचर्य का इल्म नहीं.. इन्हे भक्त स्वरूप हनुमान चाहिए

भगवा क्या है क्या ही पता लहराना सब को होता है पर भगवा क्या है वो जाने

जो भगवा ओढ़ के सोता है, राम से मिलना.. राम से मिलना..

राम से मिलना है ना तुमको..? निश्चित मंदिर जाना होगा!

पर उस से पहले भीतर जा संग अपने राम को लाना होगा

जय सिया राम और हां.. अवधपुरी का उत्सव है

कोई कसर नहीं.. सब खूब मनाना

मेरे प्रभु है आने वाले रथ को उनके खूब सजाना

वो.. द्वापर में कोई राह तके है, मुझे उनको लेने जाना है

चलिए तो फिर मिलते है, हमें भी अयोध्या आना है।

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