दोहे, कहानी, कविता, संपादकीय लिखने वाले डॉ सत्यवान सौरभ का जन्म बड़वा भिवानी हरियाणा में हुआ। ये वर्तमान दौर के युवा स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा आकाशवाणी और टीवी पेनालिस्ट है। इसलिए उनकी रचनाएं सामयिक घटनाओं व प्रसंगों से प्रेरित होती हैं तथा उनकी रचनाएं देश भर के अखबारों में में प्रतिदिन अनिवार्य उपस्थिति रहती है।  कृषि और पशुपालन उत्पादन तेजी से परिवर्तन के दौर में है जिसमें जैव प्रौद्योगिकी, सिंथेटिक रसायन विज्ञान, जैविक रसायनों और जैव कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि देखी गई है। इन विषयों को अनुप्रयोग प्रौद्योगिकी, डिजिटल खेती और बड़े डेटा के उपयोग में सुधार के साथ एकीकृत किया गया है। संभावित पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करते हुए, ये प्रगति नई पर्यावरणीय चिंताओं को भी बढ़ाती है। यह पुस्तक कृषि और पशुपालन उद्योग में होने वाले परिवर्तनों का एक सिंहावलोकन प्रदान करती है, प्रभावों को संबोधित करने के अवसरों पर प्रकाश डालती है और प्रौद्योगिकी को अपनाने में संभावित बाधाओं का संकेत देती है। इस नए संस्करण को जैविक खेती और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों सहित कृषि विकास में नवीनतम को शामिल करने के लिए अद्यतन किया गया है। यह छात्रों और शिक्षाविदों के साथ-साथ किसानों और जमींदारों और कानून में काम करने वालों के लिए भी रुचिकर है।

-ऋषि प्रकाश कौशिक

डॉ सत्यवान सौरभ का आज के हिंदी लेखकों में प्रमुख स्थान है। ‘तितली है खामोश’ उनका चर्चित दोहा संग्रह है। ये गत 18 वर्षों से लेखन और  संपादन में सक्रिय हैं। आपकी रचनाओं से देश-विदेशों में लिखे जा रहे साहित्य को एक नया आयाम मिला है। उनकी ताजा कृति ‘प्रज्ञान’ बाल काव्य संग्रह के तुरंत  बाद नव समसामयिक निबंध संग्रह ‘खेती किसानी और पशुपालन’ आया है जो कि देश के किसानों के संघर्ष और वर्तमान दौर में उनसे जुड़ी समस्याओं का एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। ‘खेती किसानी और पशुपालन’ को नोशन प्रकाशन, चेन्नई ने प्रकाशित किया है। कुल 180 पेज की इस पेपरबैक कृति का मूल्य 250रुपए है। पुस्तक का आवरण आकर्षक है। पुस्तक में कुल 50 निबंध हैं। पहला निबंध ‘वन्य जीवों पर मंडराता संकट’ तथा अंतिम निबंध ‘कुदरत को पीर जोशीमठ की तस्वीर’ है।  पहले निबंध में लेखक लिखता है- हाल आज वन और वन्य जीवों का दिख रहा है उससे प्रतीत होता है कि रफ्ता-रफ्ता इंसानों ने अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए वनोन्मूलन का कार्य किया है तथा इंसान आधुनिकीकरण की आड़ में वनों और वन्यजीव संरक्षण को विस्मृत करता जा रहा है।  वनों के कटने से यह स्थिति पैदा हो रही है कि हमारे वन्यजीवों को मुनासिब आवास की व्यवस्था भी नहीं है जो उनके लिहाज से उन्हें उपयुक्त सुरक्षा प्रदान कर सके इसलिए हमारी अग्रता वन्यजीवों के लिए उपयुक्त आवास व्यवस्था और वन व वन्यजीव संरक्षण होनी चाहिए क्योंकि यही हमारे जीवन में स्वास्थ्य पर्यावरण के निर्माण के लिए नितांत अत्यावश्यक है।

हिंदुस्थान ‌संरचनात्मक दृष्टि से गांवों का देश है और सभी ग्रामीण समुदायों द्वारा व्यापार कृषि कार्य किया जाता है इसीलिए हमारे देश को कृषि प्रधान देश की संज्ञा भी मिली हुई है। यहां लगभग ७० फीसदी लोग किसान हैं। वे देश के रीढ़ की हड्डी के समान हैं। किसान अन्नदाता के साथ देश का भाग्य विधाता भी है। चाहे स्वतंत्रता की लड़ाई हो, १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम हो, चंपारण का सत्याग्रह हो या गुजरात के बारडोली का आंदोलन, किसानों ने अंग्रेजों की चूलें हिला दी थीं, इसे डॉ सत्यवान सौरभ अच्छी तरह से जानते हैं। वे इस बात से दुखी हैं कि देश में किसान आज मुफलिसी के दौर में है। इसलिए ये कृति दुनिया के किसानों व भारत के किसानों को समर्पित की गई है। पुस्तक में किसानों खेती और पशुपालन से जुड़े मुद्दों को लिया गया हैं। मसलन डेयरी विकास और पशुधन, जड़ी-बूटियों की खेती, महंगी होती खाद, खेतों में करंट से मरते किसान, बाढ़ जोखिम, आवारा मवेशी, घटिया दाम, गायों की हो रही है दुर्दशा, वायु की गुणवत्ता, टिकाऊ हरित पर्यावरण,“पोषण का पावरहाउस” बाजरा, मृदा क्षरण, भूजल उपयोग, आयुर्वेद और योग, आपदा जोखिम, पशु चिकित्सा, कृषि रोबोट,  भारत का पशुधन, भूकंप, तपती धरती, संकट में अस्तित्व, कुदरत की पीर, फूड फोर्टिफिकेशन, पोषण की कमी, सर्दियों में बिगड़ती हवा की गुणवत्ता, पर्यावरण को बचाने के लिए पंचामृत मंत्र, वैदिक संस्कृति,प्रकृति संरक्षण, जल बचत-प्रबंधन, रोजगार सृजन, अमृत सरोवर, भविष्य की जैविक कृषि, पशु चिकित्सकों को व्यक्तिगत स्वास्थ्य और कल्याण की जरूरत, जड़ी-बूटियों की खेती बड़ा स्रोत, मोटे अनाजों को महत्व, भूजल प्रदूषण की समस्या, भुखमरी, पशु मेले पशुपालन की स्वरोजगार में महत्वपूर्ण भूमिका आदि।

दोहे, कहानी, कविता, संपादकीय लिखने वाले डॉ सत्यवान सौरभ का जन्म बड़वा भिवानी हरियाणा में हुआ। ये वर्तमान दौर के युवा स्वतंत्र पत्रकार हैं तथा आकाशवाणी और टीवी पेनालिस्ट है। इसलिए उनकी रचनाएं सामयिक घटनाओं व प्रसंगों से प्रेरित होती हैं तथा उनकी रचनाएं देश भर के अखबारों में में प्रतिदिन अनिवार्य उपस्थिति रहती है।  कृषि और पशुपालन उत्पादन तेजी से परिवर्तन के दौर में है जिसमें जैव प्रौद्योगिकी, सिंथेटिक रसायन विज्ञान, जैविक रसायनों और जैव कीटनाशकों के उपयोग में वृद्धि देखी गई है। इन विषयों को अनुप्रयोग प्रौद्योगिकी, डिजिटल खेती और बड़े डेटा के उपयोग में सुधार के साथ एकीकृत किया गया है। संभावित पर्यावरणीय प्रभावों को कम करने के लिए अद्वितीय अवसर प्रदान करते हुए, ये प्रगति नई पर्यावरणीय चिंताओं को भी बढ़ाती है। यह पुस्तक कृषि और पशुपालन उद्योग में होने वाले परिवर्तनों का एक सिंहावलोकन प्रदान करती है, प्रभावों को संबोधित करने के अवसरों पर प्रकाश डालती है और प्रौद्योगिकी को अपनाने में संभावित बाधाओं का संकेत देती है। इस नए संस्करण को जैविक खेती और आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलों सहित कृषि विकास में नवीनतम को शामिल करने के लिए अद्यतन किया गया है। यह छात्रों और शिक्षाविदों के साथ-साथ किसानों और जमींदारों और कानून में काम करने वालों के लिए भी रुचिकर है।

हाल के वर्षों में, खाद्य सुरक्षा, आजीविका सुरक्षा, जल सुरक्षा के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण दुनिया भर में प्रमुख मुद्दों के रूप में उभरा है, विकासशील देश इन मुद्दों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन और वैश्वीकरण के दोहरे बोझ से भी जूझ रहे हैं। यह दुनिया भर में सभी द्वारा स्वीकार किया गया है कि सतत विकास ही आर्थिक विकास को बाधित किए बिना संसाधनों और पर्यावरण संरक्षण के तर्कसंगत उपयोग को बढ़ावा देने का एकमात्र तरीका है। दुनिया भर के विकासशील देश सतत कृषि प्रथाओं के माध्यम से सतत विकास को बढ़ावा दे रहे हैं जो उन्हें सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय मुद्दों को एक साथ संबोधित करने में मदद करेगा। टिकाऊ कृषि की व्यापक अवधारणा के भीतर “एकीकृत कृषि प्रणाली” विशेष स्थान रखती है क्योंकि इस प्रणाली में कुछ भी बर्बाद नहीं होता है, एक प्रणाली का उपोत्पाद दूसरे के लिए इनपुट बन जाता है। मौजूदा मोनोकल्चर दृष्टिकोण की तुलना में एकीकृत खेती खेती के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण है।

 कुल मिलाकर डॉ सत्यवान सौरभ की ‘खेती किसानी और पशुपालन’ एक पठनीय कृति है और इसकी रचनाएं संवेदनाओं को तो झकझोरती हैं ही साथ ही समसामयिक समस्याओं को भी उजागर करती है।

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