हिसार में पच्चीस साल की कुछ यादें ………

-कमलेश भारतीय

हैरान हूं कि हिसार में रहते पच्चीस साल हो चुके हैं। वही हिसार जो हिसार ए फिरोजां से हिसार बना। पहली जुलाई, 1997 में आया था चंडीगढ़ से। मैं कुछ लोगों को हिसार आने से पहले जानता था और मिला था या परिचित था-उदयभानु हंस, कुमार रवींद्र, सतीश कौशिक, राधेश्याम शुक्ल, मधुसूदन पाटिल,शमीम शर्मा, मनोज छाबड़ा, प्रदीप नील । इनकी रचनायें भी जिस पत्र में काम करता था, प्रकाशित करने का सौभाग्य मिला। विष्णु प्रभाकर ने हिसार में ही लेखन शुरू किया। बीस वर्ष तक यहीं रहे।

कुमार रवींद्र नवगीतकार के रूप में प्रसिद्ध थे तो हंस गीत और रुबाइयों के लिये। शमीम शर्मा लघुकथा के लिये, मनोज छाबड़ा कविता और कार्टून के लिए, प्रदीप नील व्यंग्य और कविता लेखन में जाने जाते हैं । मनोज छाबड़ा ने कविता में अच्छी पहचान बनाई है । राधेश्याम शुक्ल व सतीश कौशिक गीत के लिए तो ऋतु कौशिक व तिलक सेठी गज़ल के लिए जाने जाते हैं। वीरेंद्र कौशल और जयभगवान यादव व लाडवाल व्यंग्य चुटकियों के लिए । प्रदीप सिंह और कुलदीप ढाका शारीरिक अक्षमता के बावजूद सशक्त लेखन कर रहे हैं । कमला चमोला लेखन से दूरी बना चुकी हैं। सुशील बुड़ाकोटी भी सक्रिय रहे। अब हिसार में नहीं रहते। ओमप्रकाश कादयान विविध विधाओं में रमे रहते हैं । डा वंदना बिश्नोई, डा मिहिर रंजन पात्रा, प्रज्ञा कौशिक और गीतू धवन छोटी और प्रभावशाली कविताएँ लिखते हैं।

कुमार रवींद्र, मधुसूदन पाटिल ,रघुवीर शरण अनाम मदन गोपाल शास्त्री व उदयभानु हंस, आशा कुंदन की अब यादें ही शेष हैं। निर्दोष हिसारी मेरे हिसार आने से पहले ही विदा हो चुके थे, उनका बेटा सदोष हिसारी भी इस दुनिया में नहीं रहा। निर्दोष की बेटी अल्पना सुहासिनी इनकी याद में समारोह आयोजित करती रहती है।

पहले पहले शमीम शर्मा के घर रहा और बाद में कृषि विश्वविद्यालय में एक माह बिताया। वहाँ दीपक भंडारी , राजरति हुड्डा और नीलम पीआर में थे और जोशी गेस्टहाउस में थे । सबने खूब ध्यान रखा । अब सभी रिटायर हो चुके हैं और मैं भी । रामस्वरूप शर्मा तब पी आर ओ थे। आजकल सुरेंद्र सैनी पी आर ओ हैं। कमला चमोला व उदयभानु हंस ने अपने अपने घर रात्रि भोज पर बुलाया। गुरु जम्भेश्वर विश्विद्यालय को बने तब कम समय हुआ था जो पच्चीस सालों में खूब बड़ा विश्विद्यालय बन चुका है।

मीमांसा मलिक, रोहित सरदाना व राकेश तनेजा ने गुजवि की पहचान बनाई। बेटो रश्मि ने भी गुजवि से जनसंचार में डिग्री ली। रोहित सरदाना व राकेश तनेजा छोटी आयु में ही चले गये। दोनों को कोरोना लील गया । लाला लाजपत राय विश्विद्यालय भी बना। लाला लाजपतराय ने छह साल हिसार मे वकालत की और आर्य समाज की स्थापना भी की ।

डी एन कालेज, जाट कालेज और दो गवर्नमेंट कालेज व इम्पीरियल कालेज भी हैं। दोनों जिंदल स्कूल व अस्पताल जिंदल का बड़ा योगदान कहा जा सकता है। पहले दूरदर्शन भी था, जिसे बंद किये 14 दिसम्बर को एक साल हो जायेगा। आकाशवाणी जरूर चल रही है ।

हिसार के साहित्य में हंस जी और उनकी संस्था साहित्य कला संगम का बहुत योगदान है। संयोग देखिये कि प्रवीण, आदर्श व हंस के बेटे शशि हंस ने उनकी संस्था का मुझे ही अध्यक्ष बना दिया और हमने मिलकर उनकी जयंती मनाई । हंस जी ने अपने नाम पर हंस पुरस्कार शुरू किये जो उनके जीवन तक प्रदान किये जाते रहे। वैसे रघुवीर शरण जिज्ञासा मंच, शुभकरण गौड़ प्रेरणा परिवार, अशोक मोनालिसा वृक्ष मित्र, वीरेंद्र कौशल कलम चलाते रहे और टाउन पार्क में हर रविवार काव्य गोष्टी रखते। इन दिनों सिटी मजिस्ट्रेट राजेश खोथ भी आते रहते थे। महेंद्र जैन चंदन बाला मंच चला रहे हैं।

सर्वोदय भवन में पिछले पचास सालों से हर रविवार गोष्ठी होना किसी कीर्तिमान से कम नहीं । पंडित जगत स्वरूप, एम एम जुनेजा के बाद भगवान् दत्त, महेंद्र विवेक इन दिनों इसे चलाये हुए हैं। आजकल प्रसिद्ध वकील पी के संधीर इसके संरक्षक हैं। स्टेज संभालते हैं सत्यपाल शर्मा । एम एम जुनेजा व महेंद्र विवेक इतिहासकारो के रूप में जाने जाते हैं। पंडित जगत स्वरूप रहे नहीं और जुनेजा पंचकूला चले गये। सही राम जौहर ने लम्बे समय तक बिश्नोई मंदिर से निकलने वाली अमर ज्योति पत्रिका का संपादन किया । यह अब भी निकलती है। शमीम शर्मा ने चौपाल पत्रिका निकाली । फिर से निकालने की सोच रही हैं। कुछ वर्ष तक मधुसूदन पाटिल ने भी व्यंग्य विविधा पत्रिका निकाली। मनीष जोशी ने नाटक लिखे हैं तो यशपाल शर्मा काव्यपाठ करते रहे और अब भी कभी कभी करते हैं। हिसार में कम से एक सौ लेखक हैं। सबका जिक्र बहुत मुश्किल है। जिनका जिक्र भूलवश रह गया वे माफ करेंगे। डा माधुरी मेहता, राजेश छाबड़ा और विवेक पेंटिंग के लिए जाने जाते हैं । सुचेता सर्राफ और पूनम परिणीता पेंटिंग और कविता लेखन के लिए। सुरेश नादान मधुर गीतों के लिए। अशोक मोनालिसा व ओमप्रकाश कादयान फोटोग्राफी के लिए जाने जाते हैं।

शमीम शर्मा ने राजगुरु मार्केट दिखाई। उन दिनों राजगुरु मार्केट का जलवा ही कुछ और था। अब तो एम सी, डी सी मार्केट व पटेल नगर मार्केट भी फल फूल रही हैं। आटो मार्केट बहुत बड़ी है । अस्पताल असंख्य हैं। जिंदल कम्पनी ने देश भर में नाम रोशन किया। सिक्के यहीं बनते हैं और ब्लेड बनाने का सामान भी। बाकी यादें फिर कभी!

You May Have Missed

error: Content is protected !!