प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ बदले, बने राष्ट्रीय सचिव सांसद नायब सैनी बने प्रदेश अध्यक्ष
क्या जातीय समीकरण साधने की रणनीति? क्या बदलेगा संगठन भी?
क्या बदलाव की आंधी पहुंचेगी मुख्यमंत्री तक

भारत सारथी/ऋषि प्रकाश कौशिक

गुरुग्राम।  भारतीय जनता पार्टी ने अपनी हरियाणा इकाई के संगठन में बदलाव करते हुए शुक्रवार को पार्टी सांसद नायब सिंह सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया, जबकि अभी तक इस जिम्मेदारी को संभाल रहे ओम प्रकाश धनखड़ को राष्ट्रीय सचिव नियुक्त किया। पार्टी की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान में इन नियुक्तियों की घोषणा की गई। बयान में कहा गया, ”यह नियुक्ति तत्काल प्रभाव से लागू होगी।”

इस घोषणा के बाद धनखड़ ने ‘एक्स’ पर किए गए एक पोस्ट के जरिए भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से लेकर बूथ स्तर तक के नेतृत्व को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, ”आप सबने संगठन कार्य हेतु परिश्रम की पराकाष्ठा की। दिल की गहराइयों से आभार, नमन, आपकी मेहनत को प्रणाम।”

ओमप्रकाश धनखड़ इससे पहले भी 2002 से 2004 तक भाजपा के राष्ट्रीय सचिव रह चुके हैं। अभी कुछ समय पूर्व अपने विधानसभा क्षेत्र बादली में एक सभा में उन्होंने कहा था कि मैं 2019 का विधानसभा चुनाव हार गया, फिर भी पार्टी ने मुझे हरियाणा में 2 नंबर का नेता बनाया। यदि जनता मुझे जिताती तो शायद एक नंबर का नेता होता। अर्थात उनकी नजर मुख्यमंत्री पद पर थी।  फिर भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष शायद इसलिए बनाया था कि वह लंबे समय तक किसानों से जुड़े रहे। 2 बार भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे 2011 से 2015 तक, फिर हरियाणा सरकार में 2014 से 2014 से 2019 तक कृषि मंत्री रहे। जाति से जाट हैं ही। अत: किसानों और जाटों को हरियाणा में भाजपा के साथ जोड़ सकेंगे लेकिन उन्हें इसमें सफलता प्राप्त नहीं हुई और फिर कारण यह भी हो सकता है कि मुख्यमंत्री और इनका समन्वय नहीं रहा। अत: इन्हें हरियाणा की राजनीति से दूर कर फिर 2002 वाली स्थिति में आ गए।

सांसद नायब सैनी मुख्यमंत्री की विश्वस्त टीम में माने जाते हैं। वह 1996 से 2000 तक प्रदेश महामंत्री रहे। 2002 में भाजपा युवा मोर्चा के जिला महामंत्री रहे। 2005 में युवा मोर्चा के अध्यक्ष बने और 2009 में किसाना मोर्चा के प्रदेश महामंत्री बने। 2012 में जिला अध्यक्ष अंबाला के बन गए, 2014 में नारायणगढ़ से विधानसभा चुनाव जीता और 2016 में मुख्यमंत्री ने इन्हें राज्यमंत्री का ओहदा नवाजा तथा 2019 से लोकसभा सांसद हैं। वर्तमान में देखा जा रहा है कि ओबीसी वर्ग भाजपा से छिटकता जा रहा है। जाटों को तो ये आकर्षित कर नहीं पाए। अत: शायद यह प्रयास ओबीसी वर्ग को अपनी ओर आकर्षित करने का हो सकता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि भाजपा ने हरियाणा में जो जाट-नॉन जाट की राजनीति चलती है, तो जाटों को भुलाकर नॉनजाट पर केंद्रित होने का निर्णय लिया है।

जातीय समीकरण की बात करें तो हरियाणा में जाट वर्तमान में बिखरे नजर आ रहे हैं। जाटों में एक ओर भाजपा की सहयोगी जजपा है, दूसरी ओर ओमप्रकाश चौटाला इनेलो को लेकर खड़े हैं और फिर भूपेंद्र सिंह हुड्डा स्वयं हैं। इनके अतिरिक्त बलराज कुंडू ने अपनी अलग पार्टी बना ली है। सोमवीर सांगवान निर्दलीय होते हुए भी भाजपा के समर्थक नजर आते हैं। इसी प्रकार भाजपा में भी सुभाष बराला, कैप्टन अभिमन्यु, जेपी दलाल और ओमप्रकाश धनखड़ भी हैं तो भाजपा में ही। अर्थात रणनीति यह हो सकती है कि जाटों का महत्व खत्म कर नॉनजाट पर केंद्रित हो अपनी सत्ता बना पाएं।

वर्तमान में ओमप्रकाश धनखड़ को प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाले तीन वर्ष तीन माह से कुछ अधिक समय हो गया था। ऐसे में संगठन भी उन्हीं का बनाया हुआ है तो जाहिर ही बात है कि नए प्रदेश अध्यक्ष अपना संगठन अलग ही बनाएंगे। और फिर संगठन पदाधिकारियों का कार्यकाल भी तो समाप्त हो रहा है। अत: कह सकते हैं कि संगठन में ही व्यापक स्तर पर बदलाव होने की पूर्ण संभावना है। ये बदलाव उस समय किया गया है जब हरियाणा दिवस के स्थान पर 2 नवंबर को अमित शाह को करनाल आना है और करनाल मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष के सामंजस्य की कमी और मुख्यमंत्री के हाईकमान में अच्छे संबंध होने के कारण यह बदलाव किया गया है।

वैसे पुराना इतिहास बताता है कि भाजपा चुनाव से पूर्व अपने मुख्यमंत्रियों को बदल देती है, जिससे भाजपा की छवि को सुधारा जा सके। तो इसके चलते आज चर्चा यह भी चल पड़ी है कि 3 दिसंबर को 5 राज्यों के परिणाम आने के पश्चात मुख्यमंत्री के बदलाव की भी संभावना है, क्योंकि देखा यह जा रहा है कि मुख्यमंत्री की लोकप्रियता जनता में ही नहीं अपितु उनकी पार्टी में भी घट रही है, जिसके प्रमाण यह हैं कि पहले मुख्यमंत्री कोई घोषणा करते थे तो अनेक पदाधिकारी, विधायक, मंत्री उनकी उसके लिए सराहना करते थे लेकिन वर्तमान में देखा जा रहा है कि मुख्यमंत्री लगातार योजनाओं के अंबार लगा रहे हैं परंतु उनकी पार्टी के नेता भी उनके स्तुतिगान को आगे नहीं आ रहे। अत: संभव है कि लोकसभा चुनाव जीतने के लिए हरियाणा के मुख्यमंत्री में भी बदलाव हो।

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