दिल्ली एनसीआर में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध ‘ग़ैरकानूनी एवं एक राष्ट्रीय स्तर की साजिश’।
दिल्ली एनसीआर में 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध को एक ग़ैरकानूनी एवं एक सोची समझी साजिश करार देने के मामले में एक कानूनी चुनौती ने यथास्थिति को हिला कर रख दिया है।
ऑस्ट्रेलिया एवं लंदन की मीडिया में भी ये मामला सुर्खियां बन चुका है।

गुरुग्राम : 25 अक्टूबर 2023 – एक नाटकीय मोड़ में, वकील मुकेश कुल्थिया ने गुड़गांव अदालत में हरियाणा प्रदेश एवं केंद्रीय परिवहन मंत्रालय के उच्च पदस्थ आईपीएस आईएएस अधिकारियों के खिलाफ एक विस्फोटक आपराधिक मामला खड़ा दिया है। इस कानूनी टकराव का केंद्र बिंदु है दिल्ली एनसीआर में विवादास्पद 10-15 साल पुराने वाहनों पर प्रतिबंध, जिसे कुल्थिया ने ‘कारबंदी घोटाला’ का नाम दिया है।

मामले पर संज्ञान लेते हुए माननीय गुड़गांव न्यायालय की मजिस्ट्रेट सुश्री हिमानी गिल की कोर्ट ने नवदीप सिंह विर्क -आईपीएस सचिव परिवहन मंत्रालय हरियाणा एवं सचिव सड़क परिवहन मंत्रालय भारत सरकार अरामाने गिरधर-आईएएस, सुश्री अलका उपाध्याय-आईएएस, अनुराग जैन-आईएएस

एवं अन्य अधिकारियों के कार्यालयों के साथ गुड़गांव पुलिस कमिश्नर कार्यालय को भी समन जारी किए हैं।

इस कानूनी विषय के केंद्र में कुल्थिया का तर्क यह है कि यह ग़ैरकानूनी प्रतिबंध संशोधित मोटर वाहन अधिनियम का स्पष्ट उल्लंघन करता है। अधिनियम 2019, 2021 और 2023 के संशोधित कानून स्पष्ट रूप से डीजल और पेट्रोल कारों के जीवनकाल को 15 साल तक निर्धारित करते हैं, एवं अतिरिक्त 5 वर्षों के लिए वैकल्पिक नवीनीकरण की इजाज़त भी देते हैं। 

कुल्थिया का तर्क इस कानूनी आधार पर टिका हुआ है कि 10 साल पुराने डीजल और 15 साल पुराने पेट्रोल वाहनों पर प्रतिबंध के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है।

उनका कानूनी दावा है कि साजिश में शामिल अधिकारी एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का गलत इस्तेमाल करके ये गैरकानूनी प्रतिबंध लगा रहे हैं। उनका कानूनी दावा है कि साजिश में शामिल अधिकारी एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का गलत व्याख्यान कर इन आदेशों को तोड़ मरोड़ कर इन आदेशों का झूठा हवाला देते हुए ये गैरकानूनी प्रतिबंध लगा रहे हैं। 

कुल्थिया के दावे के अनुसार इस ग़ैरकानूनी प्रतिबंध के पीछे का मकसद मिडिल क्लास एवं लोअर मिडिल क्लास की रोजी रोटी कमाने के साधन वाले वाहनों को स्क्रैप कर इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को बढ़ावा दे कर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को आर्थिक मुनाफा पहुंचाना है एवं आम जनता को बर्बाद कर देना है।

कुल्थिया का दावा है कि साजिश में शामिल अधिकारियों की लिस्ट और भी लंबी है जो उचित दस्तावेजों के साथ माननीय न्यायालय में जल्द ही पेश की जाएगी।

कुल्थिया का कहना है कि इस साजिश के पाप में इन साजिशकर्ताओं ने देश के मीडिया को गुमराह कर उसे भी इस पाप का भागीदार बना दिया है जिस कारण इस साजिश की हकीकत आज तक उजागर नहीं हो पाई।

भारत की प्रमुख मीडिया के साथ साथ लंदन एवं ऑस्ट्रेलिया की मीडिया का ध्यान एवं निगाहें भी कुल्थिया के इन विस्फोटक मामले की तरफ़ खींच गई हैं।

दिल्ली जैसे हलचल भरे महानगर में 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल कारों पर प्रतिबंध लंबे समय से चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रदूषण के बढ़ते स्तर को देखते हुए सरकार ने कड़ा रुख अपनाया। फिर भी, एक मुखर वकील के कानूनी आधार पर दर्ज दावे ने इस कहानी के हालिया मोड़ में इस प्रतिबंध को सवालों के घेरे में डाल दिया है। वकील मुकेश कुल्थिया का कहना है कि वो इस मामले में किसी भी मुवक्किल का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं, बल्कि, वो एक चिंतित नागरिक हैं और व्यक्तिगत रूप से इस ग़ैरकानूनी प्रतिबंध से पीड़ित हैं अतः माननीय अदालत में, सडक से लेकर संसद तक एवं  तमाम मीडिया एवं जनता के बीच इस ग़ैरकानूनी साजिश घोटाले प्रतिबंध के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करने का कानूनी एवं संवैधानिक अधिकार रखते हैं।

कुल्थिया के तर्क का सार संशोधित मोटर वाहन अधिनियम पर केंद्रित है, जिसके अनुसार पेट्रोल और डीजल दोनों वाहनों का जीवनकाल 15 वर्ष है। इसके अलावा, इन वाहनों को अतिरिक्त 5 वर्षों का नवीकरणीय का प्रावधान है। इस दृष्टिकोण से, कुल्थिया ने एक वाजिब विस्फोटक दावा किया है कि  डीजल एवं पेट्रोल वाहनों को केवल इसलिए जब्त या प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता कि वो 10 या 15 वर्ष के हो चुके हैं।

मामले की बुनियाद यह है कि डीजल और पेट्रोल दोनों कारों के लिए पंजीकरण प्रमाणपत्र 15 साल की वैधता के साथ आते हैं, उसी अवधि के लिए रोड टैक्स लिया जाता है एवं उसी अवधि के अनुसार वाहन की कीमत ली जाती है, उसके बाद ये अवधि 5-5 वर्षों के लिए रिन्यू करने का देश का कानून है, किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है,

और इस ग़ैरकानूनी प्रतिबंध की साजिश में शामिल अधिकारी एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का गलत इस्तेमाल करके ये गैरकानूनी प्रतिबंध लगा रहे हैं,

जिस साजिश का मक़सद मिडिल क्लास एवं लोअर मिडिल क्लास की रोजी रोटी कमाने के साधन वाले वाहनों को स्क्रैप कर इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री को बढ़ावा दे कर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री एवं स्क्रेपिंग एजेंसियों को आर्थिक मुनाफा पहुंचाना है एवं आम जनता को बर्बाद कर देना है।

कोई शक नहीं कि गुड़गांव निवासी एडवोकेट मुकेश कुल्थिया ने एक ज्वलंत विस्फ़ोट करते हुए देश के अत्यंत ज्वलनशील घोटाले का पर्दाफ़ाश करते हुए इस घोटाले की जड़ें तो खोद ही डाली हैं।

एडवोकेट मुकेश कुल्थिया के अनुसार देश के कानून, देश की माननीय अदालत के साथ साथ देश की ईमानदार मीडिया पर मुकेश कुल्थिया एवं जनता की उम्मीदें जिंदा है और ये ग़ैरकानूनी प्रतिबंध अब और ज्यादा समय नहीं टिक पाएँगे।

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