सुरेश गोयल धूप वाला ………… मीडिया प्रभारी, निकाय मंत्री डॉ. कमल गुप्ता

आज से दो वर्ष बाद विश्व के सबसे बड़े समाजसेवी संघठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सौ वर्ष पूरे हो जायेंगे, जिसकी स्थापना 27 सितम्बर 1825 को विजयदशमी के दिन नागपुर में डॉ. केशव राम बलीराम हेडगेवार ने की थी।संघ की स्थापना का उद्देश्य पूरे देश को सांस्कृतिक आधार पर एक जुट करना था।

महाराष्ट्र के नागपुर के अखाड़ा में तैयार हूआ यह संगठन मौजूदा समय मे एक विराट स्वरूप धारण कर चुका है।डॉ हेडगेवार ने दो दर्जन से भी कम लोगो के द्वारा इसकी शुरुआत की थी। हिंदुओ को संगठित करने के उद्देश्य से बनाये गए इस संगठन में व्यक्तित्व निर्माण पर विशेष बल दिया गया।नागरिक सामाजिक  मूल्यों को बनाये रखते हुए आदर्शो औऱ नैतिक मूल्यों पर जोर दिया गया।गौरवशाली भारतीय संस्कृति से रूबरू कराते हुए बालको मे खेलो औऱ गीतों के माध्यम से राष्ट्र भक्ति के संस्कार कूट-कूट कर भरे जाने लगे।

 संघ की स्थापना से पूर्व डॉ. केशव राम बलिराम हेडगेवार के मन मस्तिक में अनेको विचार कौंध रहे थे कि लगभग एक हजार वर्षों से भारत भूमि पराधीन क्यो?बार बार विदेशी आक्रांताओ  द्वारा सोने की चिड़िया कहे जाने वाली  भारत भूमि को रौंदा गया?हजारों वर्ष पुराने सांस्कृतिक केंद्रों , मंदिरों नालन्दा जैसे विश्वव्यापी विश्वविद्धालय को नष्ट किया गया । ज्ञान- विज्ञान की लाखों पुस्तको को जला दिया गया।धन संपदा को लूटा गया। भयंकर नरसंहार हुए।

उनके मन मे विचार उठते की भारत अतीत में बौद्धिक संपदा, बाहुबल, आर्थिक संपदा व ज्ञान- विज्ञान में अग्रणी ,फिर इसके पतन के आखिर क्या कारण रहे?अंततःमस्तिक मे कौंध रहे सवालों के उत्तर उन्हें मिल ही गया।वे इस परिणाम पर पहुंचे की छोटे-छोटे रजवाड़ो में बटे उनके शासकों में आपसी समन्वय शून्य हो गया था। अनेको ऐसे जयचंद जैसे देशद्रोही हुए जिन्होंने विदेशी आक्रांताओं को पनाह दी। देशी रजवाड़ो की आपसी कलह चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी । जिसका फायदा बहारी आक्रांताओ ने उठाया। 

डॉ. हेडगेवार ने गहन चिंतन कर भारत की एकजुटता करने के उद्देश्य से सांस्कृतिक एकता मार्ग जिसे हिंदुत्व कहा गया कि ओर अग्रसर होकर संस्कृतिक आधार पर हिंदुओ को संगठित करने का बीड़ा उठाया।

वे अपने उद्देश्य में सफल हुए और संघ निरंतर आगे बढ़ता गया।

भारतीय परंपरा में गुरु परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है।वे चाहते तो गुरु का नाम अपने स्वयं के नाम से प्रस्तुत कर सकते थे, परंतु उन्होंने ऐसा नही किया। सभी की सहमति से भगवा ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया।

किसी भी संगठन या संस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता को नकारा नही जा सकता , इसके लिए समाज से चंदा एकत्रित करना या किसी धनी व्यक्ति से धन लेना उचित नही समझा गया।इसके लिए प्रावधान किया गया कि संघ के स्वयंसेवक ही स्वयं प्रेरणा से भगवा ध्वज (गुरु) के सम्मुख वर्ष में एक बार गुरुपूर्णिमा के दिन गुप्त रूप से राशि का समर्पण करेंगे।

 आदि सरसंघचालक डॉ. केशव राम बली राम हेडगेवार की बीमारी से मृत्यु के बाद माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर दूसरे सरसंघचालक नियुक्त हुए। वे प्रध्यापक रहे थे इसी कारण उन्हें सभी प्यार से गुरुजी कह कर संबोधित करते थे। यद्धपि डॉ. हेडगेवार के समय मे ही संघ का काफी विस्तार हो चुका था । गुरु जी के समय इसे विस्तार की औऱ अधिक गति मिली।पूरे देश के कोने- कोने में  स्वयंसेवको प्रशिक्षित कर प्रचारक निकाला गया, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में संघ कार्य को अंजाम दिया।आज भी पुराने लोग बताते हैं कि दुकानों की पटरियों पर सोकर रात बिताते थे। बड़ी मुश्किल से जो भी मिल जाता खाकर गुजारा कर लेते थे। 

30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के मिथ्या आरोप में संघ पर 4 फरवरी को प्रतिबंध लगा दिया गया । परन्तु आरोप गलत साबित हुआ और प्रतिबंध हटा लिया गया । संघ पहले से भी औऱ अधिक मजबूत होकर उभरा।

1962 मे  चीनीआक्रमण के बाद गुरुजी का दिया गया मार्गदर्शन औऱ संदेश देश कि जनता में मनोबल बढ़ाने में बहुत ही सहायक रहा।चीन के साथ इस युद्ध में संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

शेष अगली  क़िस्त में

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