महापुरुषो की संगत करने व उनके वचन सुनने से सुधरते हैं आपके कर्म : कंवर साहेब

चरखी दादरी/दिल्ली जयवीर सिंह फौगाट

22 अक्टूबर, हिन्दुस्तान त्योहारो का देश है। यहां मनाए जाने वाले हर त्योहार का विशेष महत्व है। दशहरे का महत्व भी हम सबको पता है। रामायण हमें जीवन का हर मर्म समझाती है लेकिन मुख्यत ये भक्ति और सेवा पर बल देती है। श्री राम की यह कथा हमें बताती है कि भक्ति करने वालो के कारज कैसे आसानी से संवरते हैं। दशहरे का त्यौहार हमें बुरे से अच्छे की और लेकर जाता है लेकिन यह सम्भव तभी होगा जब हम इसे केवल लौकिक रूप से न मनाकर इसे अपने अंतर में स्थापित करेंगे।

यह सत्संग वचन परमसंत सतगुरु कंवर साहेब जी महाराज ने दशहरे से दो दिन पूर्व दिल्ली के निलवाल गांव में स्थित राधास्वामी आश्रम में फरमाए। उल्लेखनीय है कि हर वर्ष दशहरे के अवसर पर सत्संग का आयोजन दिल्ली में होता है। हुजूर महाराज जी ने कहा कि आदि काल से काल और दयाल की जंग चल रही है। काल पुरुष ने सतपुरुष की भक्ति करके ही जीव मांगे थे। जीव माया के फेर में उलझे और चौरासी लाख यौनि और चार जून में भटका खाने लगे। उन्होंने कहा कि जिस रामायण के आदर्श पात्र श्री राम की रावण पर विजय का त्योहार हम दो दिन बाद मनाएंगे उसी रामायण में जीवन की अनेक सीख भी है। एक सीख यह भी है कि यह जगत, यह विश्व कर्म प्रधान है। जो व्यक्ति जैसा करता है उसे वैसे ही फल की प्राप्ति होती है। अगर आपने कर्म अच्छा किया है तो उसका शुभ फल आपको हर हाल में मिलेगा लेकिन अगर आपके कर्म बुरे हैं तो उसके बुरे परिणामों से भी आप स्वयं को बचाकर नहीं रख सकते। हमारे पास ज्ञान विवेक बुद्धि सब है लेकिन फिर भी सब के सब इस जगत जाल मे बन्धे हैं। सब के सब काल नदी में बहे जा रहे हैं। यही कारण है कि आज युग पलट गए लेकिन रावण का दहन आज भी होता है।

गुरु महाराज जी ने कहा कि दुष्ट विचार और सोच युगों बाद भी घृणा ही पाते हैं। उन्होंने कहा कर्म युग बीत जाने पर भी पीछा नहीं छोड़ते। जो किया है उसका परिणाम आप को मिलेगा ही मिलेगा। इसलिए इंसानी चोले में आकर इस अवसर को वृथा मत खोवो। उन्होंने कहा कि जिसे भक्ति की ललक लग जाती है उसे दुनिया की कोई ताकत भक्ति से रोक नहीं सकती। गुरु महाराज जी ने कहा कि धन्य वो है जो परमात्मा की भक्ति करता है। मनुष्य आया तो था परमात्मा की भक्ति करने लेकिन काल के चक्र में ऐसा उलझा कि अपनी सांस रूपी पूंजी को यहीं लुटा बैठा। जगत और भक्त का सदा बैर रहा है। चाहे कबीर साहब हों या नानक साहब। परवेश तबरेज हो या दयानन्द सरस्वती। सब को इस दुनियादारी ने कष्ट दिए लेकिन वो अपने पथ से विमुख नहीं हुए। वो अपने मिशन पर अडिग रहे इसीलिए उनके दिखाए मार्ग पर आज भी दुनिया चल रही है। उन्होंने कहा कि रामायण में जिस भीलनी का जिक्र आप सुनते हो उसके साथ भी यही हुआ था। उसका राम के दर्शन का संकल्प था। उस का यह संकल्प ही श्री राम को उसकी कुटिया पर ले आया।

गुरु महाराज जी ने कहा कि आप के द्वारा की गई अच्छाई आपको दुगुने चौगुने रूप में वापिस मिलेगी। हुजूर महाराज जी ने कहा कि महापुरुषो की संगत करने से, उनके वचन सुनने से आपके कर्म सुधरते हैं लेकिन होगा तभी जब आपका विश्वास दृढ़ होगा। हुजूर कंवर साहेब जी ने फरमाया कि रामायण से बढ़ कर कोई ग्रन्थ नहीं है लेकिन रामायण का फायदा भी वही उठाता है जिसने रामायण को आत्मसात किया है। वचन का फायदा तभी है जब उसका मनन चिंतन करके उसको जीवन में अपना लोगे। सत्संग का भी फायदा तभी है जब आप सत्संग देखने सुनने नहीं बल्कि करने आओगे। उन्होंने कहा कि आज सन्तान उत्पति का आशय ही शुद्ध नहीं है। पहले ऋषि महात्मा संतान को एक विशेष ध्येय से पैदा करते थे लेकिन आज संतानोत्पति भी स्वार्थ वश हो रही है।

z हुजूर ने कहा कि रामायण केवल राम रावण युद्ध तक सीमित नहीं है। रामायण तो अनेको अनेक बिम्ब का ग्रन्थ है। एक बिम्ब सती सुलोचना का भी है जो नागराज अनन्त की पुत्री तथा रावण के पुत्र इंद्रजीत की पत्नी थी। उसने अपने पति के कटे हुए हाथ से युद्ध का वर्णन लिखवा दिया था और कटे सर से हंसी निकलवा दी थी। सती सुलोचना ने लक्ष्मण को कहा था कि आप यह मत समझना कि आपने मेरे पति को मारा है। उनका वध करने का पराक्रम किसी में नहीं। यह तो आपकी पत्नी के सतित्व की शक्ति है। अंतर मात्र यह है कि मेरे स्वामी ने असत्य का साथ दिया। गुरु महाराज जी ने कहा कि आज भी हमारे अंदर वो शक्तियां हैं लेकिन हमारा विश्वास पक्का नहीं है। आज तो सुमिरन करना ही नहीं जानते। जाप और अजाप तो तब मरेगा ना जब हमारा गुरु पर विश्वास दॄढ होगा। आज सुमिरन कल्याण के लिए नहीं हो रहा बल्कि स्वार्थ पूर्ति के लिए हो रहा है। उन्होंने कहा कि इंसान वही भला है जो किसी का हित करता है।

उन्होंने कहा कि आज विजयदशमी का शुभ दिन है इसलिए आज आप ये संकल्प लेकर जाओ कि आज आप अपने मन से सभी बुराइयों का दहन करके जाओ। संकल्प लेकर जाओ की राम की भांति अच्छे पुत्र बनोगे। लक्ष्मण और भरत जैसे भाई बनोगे। विभीषण जैसे सत के साथी बनोगे। माता सीता जैसे सती बनोगे। उन्होंने कहा कि कामना रहित हो जाओ क्योंकि जब तक कामना रहेगी तब तक भटकोगे। जो आपके लिए कांटा बोता है उसके लिए भी आप फूल ही बोवो क्योंकि वो लेखाकार सबका लेखा रखता है।

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