ज्ञान के बिना मुक्ति सम्भव नहीं, मानव का वास्तविक स्वरूप आत्मा है : डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि। कथा के समापन एवं पूर्णाहुति में शामिल हुए लेफ्टिनेंट जरनल (सेवानिवृत) विष्णुकांत चतुर्वेदी। वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक कुरुक्षेत्र, 14 अक्तूबर : भगवान श्री कृष्ण के मुखारविंद से उत्पन्न गीता की जन्मस्थली, तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के अखंड गीता पीठ शाश्वत सेवाश्रम में चल रही देश के लिए शहीद हुए सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा के समापन दिन व्यासपीठ से महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि भागवत कथा का समापन नहीं है यह आत्म कल्याण की सम्पूर्ण प्राप्ति है। कथा तत्व ज्ञान की दृष्टि से होती है। कथा समापन दिन के अवसर पर सुबह शाश्वत सेवाश्रम में चल अनुष्ठान की यज्ञ में महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज के सानिध्य में यजमानों ने पूर्णाहुति दी। इस मौके पर मुख्य रूप से सेना के लेफ्टिनेंट जरनल (सेवानिवृत) विष्णुकांत चतुर्वेदी तथा अन्य लोग शामिल हुए। कथा व्यास महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कथा में बताया कि ज्ञान के बिना मानव को मुक्ति नहीं मिल सकती है। मानव का तो वास्तविक स्वरूप ही आत्मा है। इसलिए आत्मज्ञान का होना आवश्यक है। ब्रह्म ही सत्य है। सृष्टि की रचना व सरंचना करने वाले सब कुछ ब्रह्म ही हैं। जगत तो मिथ्या है। उन्होंने बताया कि मिथ्या में झूठ एवं सच दोनों ही हैं। सत्य कभी मौसम, समय एवं परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित नहीं होता है। सत्य कभी मरता नहीं है। कथा के समापन दिवस पर मदन कुमार धीमान, सूबेदार रमेश कुमार, शशिबाला, प्रेम नारायण शुक्ल, राजपाल सिंह, राजेश बिश्नोई, नरेश गर्ग , डा. पुनीत टोकस, केवल राम शर्मा, सुभाष चंद्र गुप्ता, राजेश गोयल, राजेंद्र वानप्रस्थी, कांता देवी व मनु दत्त कौशिक इत्यादि मौजूद रहे। Post navigation शहीद सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा का 16 वां दिन हरियाणा में पहली बार हुआ ब्राह्मण खाप समाज का निर्माण