नकारात्मक आकांक्षाओं के कारण ही विनाश होता है : डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि।
परस्पर विरोधी प्रवृतियों में ही सृष्टि की रचना है।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक।

कुरुक्षेत्र, 10 अक्तूबर : गीता की जन्मस्थली, तीर्थों की संगम स्थली एवं धर्मनगरी कुरुक्षेत्र के अखंड गीता पीठ शाश्वत सेवाश्रम में चल रही देश के लिए शहीद हुए सैनिकों को समर्पित पितृ मोचनी श्रीमद भागवत कथा के 13 वें दिन व्यासपीठ से महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने कहा कि भागवत पुराण की कथाएं जीवन में अनेक शिक्षाएं देती हैं। परमात्मा सभी में विद्यमान हैं। इसकी पहचान हर किसी को नहीं है। उन्होंने कथा में ऋषि दुर्वासा तथा इंद्रदेव के प्रसंग की चर्चा की। प्रारम्भ से पूर्व यजमान डा. रुपेश गौड़ तथा सोनिया शर्मा ने  महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज के सानिध्य में भारत माता एवं व्यासपीठ का पूजन व आरती की।

कथा व्यास महामंडलेश्वर डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि मनुष्य को अपने जीवन में की गई गलतियों का परिणाम भुगतना पड़ता है। दुर्वासा ऋषि के श्राप से इंद्र देव भी श्री वहीन हुए। मनुष्य अगर सकारात्मक सोच का हो तो बुराइयों में भी अच्छाई देखता है। सदाचारी के अच्छे आचरण से ही बुराई को खत्म किया जा सकता है। डा. स्वामी शाश्वतानंद गिरि महाराज ने बताया कि विवेक से उत्पन्न होने वाली वृतियां नीतिगत होती हैं। विवेक से ही विकास होता है। शीर सागर के समुद्र मंथन की चर्चा करते हुए कहा कि मनुष्य की सोच को भी मंथन की आवश्यकता होती है। परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों से ही सृष्टि की रचना है। चरित्रवान के समक्ष ही राक्षसी प्रवृतियां हैं। इस मौके पर डा. दीपक कौशिक, डा. सुनीता कौशिक, प्रेम नारायण शुक्ल, पुष्पा शुक्ल, जय शंकर, मीनाक्षी शर्मा, कुसुम सैनी, प्रेम नारायण अवस्थी, भूपेंद्र शर्मा, भारत भूषण बंसल इत्यादि भी मौजूद रहे। सुलोचना शिव कुमार ने भंडारा दिया।

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