नवगठित हरियाणा के पहले स्पीकर थे राव वीरेंद्र

‘आया राम, गया राम’ के शिकार हुए थे राव बीरेंद्र

अशोक कुमार कौशिक

स्वर्गीय राव वीरेंद्र सिंह का परिवार जिसे रामपुरा हाउस के नाम से जाना जाता है का सम्बंध राव तुला राम से जुड़ा है, जो एक सरदार थे जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। दक्षिणी हरियाणा की राजनीति में इस परिवार का आज भी बोलबाला है।

समय-समय का फेर है समय-समय की बात। किसी समय के दिन बड़े और किसी समय की रात। राजनीति में दिग्गजों के उतार-चढ़ाव भरे दिन इस कहावत को चरितार्थ करते रहे हैं। आज हम आपका उस दौर की घटना बता रहे हैं जब अहीरवाल के दिग्गज राव बिरेंद्र सिंह के सितारे चमक रहे थे। वर्ष 1971 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा में कांग्रेस की तूती बोल रही थी, लेकिन राव ने कुछ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आई अपनी विशाल हरियाणा पार्टी के टिकट पर कांग्रेस को हरा दिया था। राव की हार सुनिश्चित करने के लिए खुद इंदिरा गांधी रेवाड़ी आई थी, लेकिन इंदिरा भी राव की जीत नहीं रोक पाईं।

राव 24 मार्च 1967 से 2 नवंबर 67 तक 224 दिन संयुक्त विधायक दल के बल पर हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे थे। इसी दौर में उनकी कांग्रेस से अनबन हुई और उन्होंने विशाल हरियाणा पार्टी बना ली। हालांकि आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी की मौजूदगी में राव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था, लेकिन इससे पूर्व राव ने खुद की पार्टी बनाकर देश की राजनीति में अपने प्रभाव का जलवा दिखा दिया था। उस समय पूर्व मुख्यमंत्री राव बिरेंद्र सिंह का जलवा कुछ ज्यादा ही था।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय राव निहाल सिंह के पक्ष में चुनाव प्रचार के लिए आई थी। इंदिरा को देखने के लिए नारनौल रोड़ पर कई गांवों के लोग सड़कों के किनारे आकर खड़े हो गए थे। इंदिरा गांधी ने भी हाथ हिलाकर सभी ग्रामीणों का अभिवादन स्वीकार किया था। इस चुनाव में राव बिरेंद्र सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर भी। बुजुर्ग बताते हैं कि राव बिरेंद्र सिंह पैदल चलकर लोगों से वोट मांग रहे थे। संभवत: यह पहला और आखिरी मौका था जब राव ने पैदल चलकर वोट मांगे और वह जनता के दिलों पर राज करने में सफल भी रहे। कांटे के मुकाबले में राव बिरेंद्र सिंह ने कांग्रेस के राव निहाल सिंह को 1899 वोट से हराकर चुनाव में जीत दर्ज की थी। इंदिरा गांधी का प्रचार भी उन्हें हरा नहीं पाया था।

तब ऐसी थी राजनीतिक तस्वीर

वर्ष 1971 के चुनाव में हरियाणा में 9 लोकसभा सीटें थी। इनमें से कांग्रेस ने 7 व भारतीय जनसंघ ने जीती थी। कांग्रेस की लहर के बावजूद राव 1899 वोटों से अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे थे। राव बिरेंद्र सिंह को 159125 व उनके प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के निहाल सिंह को 157226 वोट मिले थे। तब कुल छह उम्मीदवार थे। चार की जमानत जब्त हो गई थी। मतदान 3 मई 1971 को हुआ था। 3 लाख 49 हजार 98 मतदाताओं ने मतदान किया था। 9067 वोट रद हो गए थे।

राव राजा का रामपुरा हाऊस राजवंश सबसे प्रभावशाली है

केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत सिंह, हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री राव बीरेंद्र सिंह के बड़े बेटे हैं। साथ ही वह पूर्ववर्ती राज्य रेवाड़ी के रामपुरा हाउस के प्रमुख सदस्य भी हैं। भाजपा गुरुग्राम सांसद के दो भाई ओर भी हैं जिनका नाम राव अजीत सिंह और सबसे छोटे राव यादवेंद्र सिंह हैं। राव इंद्रजीत सिंह की बेटी आरती राव जहां हरियाणा में बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी सदस्य हैं, वहीं अजीत सिंह के बेटे राव अर्जुन सिंह व राव यादवेंद्र सिंह अब कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं। राव यादवेंद्र सिंह जहां गुड्डा गुड से जुड़े हुए हैं वहीं राव अर्जुन सिंह सुरजेवाला के नजदीकी है।

राव बीरेंद्र सिंह की विरासत

फरवरी में डाक विभाग की ओर से राव बीरेंद्र सिंह की याद में एक डाक टिकट जारी किया गया था। इस अवसर पर, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राव बीरेंद्र सिंह को “जनता के लोकप्रिय नेता के रूप में वर्णित किया, जिन्होंने हमेशा लोगों, विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों के मुद्दों का समर्थन किया और राष्ट्र निर्माण में बहुत योगदान दिया।”

राव बीरेंद्र सिंह, पंडित भगवत दयाल शर्मा के स्थान पर हरियाणा के दूसरे मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि वह 24 मार्च, 1967 से 2 नवंबर, 1967 तक ही इस पद पर रह पाए। स्वतंत्रता सेनानी राव तुला राम के वंशज, राव बीरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों की सेवा की थी। 1939 से 1947 तक भारतीय सेना में कैप्टन पद पर काम किया था। 1950 से 1951 तक वह एक कमीशन अधिकारी के रूप में प्रादेशिक सेना में थे।

उनका चुनावी पदार्पण काफी मुश्किल भरा रहा क्योंकि वह 1952 में रेवाड़ी से राव अभय सिंह से हार गये थे। रेवाड़ी तब पंजाब विधानसभा का हिस्सा था। इसके बाद वह 1954 में कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्हें अविभाजित पंजाब के लिए विधान परिषद (एमएलसी) के सदस्य के रूप में नामांकित किया गया और 1966 तक लगातार दो कार्यकाल तक पद पर बने रहे।

इस अवधि के दौरान, वह प्रताप सिंह कैरों सरकार में पीडब्ल्यूडी, सिंचाई, बिजली, राजस्व और चकबंदी जैसे कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों के मंत्री रहे। इस समय राव बीरेंद्र सिंह उन नेताओं में से थे जिन्होंने लगातार अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई।

नवंबर 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा बनने के बाद, पंडित भगवत दयाल शर्मा पहले मुख्यमंत्री बने और राव बीरेंद्र सिंह नवगठित राज्य के पहले स्पीकर बने।

1967 में हरियाणा के लिए हुए पहले विधानसभा चुनाव में राव बीरेंद्र सिंह पटौदी से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुने गए। हालांकि, उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और अपनी विशाल हरियाणा पार्टी की स्थापना की।

उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण समय तब आया जब उन्हें 24 मार्च, 1967 को राज्य का दूसरा मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया। लेकिन नवंबर 1967 में, विधानसभा भंग कर दी गई और हरियाणा में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

राज्यपाल बी.एन. चक्रवर्ती ने राव बीरेंद्र सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया था क्योंकि उन्हें पता चला था कि दो विधायकों ने दो बार कांग्रेस और विशाल हरियाणा पार्टी के साथ पाला बदल लिया था। यह वह साल था जब हरियाणा में पहली बार एक ऐसी संस्कृति का आगमन हुआ, जिसमें निर्वाचित प्रतिनिधियों ने तत्परता के साथ अपनी वफादारी बदल ली – जो कि ‘आया राम, गया राम’ वाक्यांश में समाहित है, जिसे किसी और ने नहीं बल्कि राव बीरेंद्र सिंह ने गढ़ा था, जो खुद इसके शिकार हुए थे।

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