70 फीसदी पानी बचाकर दोगुना उत्पादन देती है प्राकृतिक खेती : आचार्य देवव्रत

गुजरात के जिला विकास अधिकारियों के दल ने किया गुरुकुल का भ्रमण।
प्राचीन मूल्यों के साथ आधुनिक शिक्षा का अद्भुत संगम देख प्रसन्न हुए सभी अधिकारी। प्राकृतिक खेती के विभिन्न पहलुओं पर हुआ विस्तृत संवाद।

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र 9 सितम्बर : गुजरात के राज्यपाल आचार्यश्री देवव्रत ने कहा कि रासायनिक खेती के महंगे कीटनाशक, यूरिया, पेस्टीसाइड से किसान को कर्जदार बना दिया है वहीं इस कीटनाशकों के कारण खाद्यान्न विषैले हो गये है जिस कारण बीपी, शुगर, हार्ट अटैक, किडनी फेल आदि बीमारियों ने आम आदमी को भी अपने चपेट में ले लिया है। आज भारत में ऐसा कोई घर नहीं है जहां इन बीमारियों से कोई प्रभावित न हों। यह सब रासायनिक खेती में डाले जा रहे यूरिया, कीटनाशकों के प्रयोग से हुआ है, अब तो मां के दूध में भी यूरिया पाया गया है जिससे स्पष्ट है कि हमारा पर्यावरण पूरी तरह से दूषित हो चुका है, यही केमिकल जमीन के अंदर जाकर भूमिगत जल को दूषित करते है जिससे चर्मरोग पैदा होते हैं। इन सबसे बचने का एक ही उपाय है कि मेरे देश का किसान रासायनिक खेती को छोड़कर प्राकृतिक खेती को अपनाएं।

प्राकृतिक खेती में 70 फीसदी पानी की बचत के साथ दोगुना उत्पादन मिलता है और किसान को अपनी फसल का दाम भी अधिक प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि गुरुकुल के फार्म पर धान की फसल में पानी भरकर नहीं रखा जाता बल्कि अन्य फसलों की तरह ही सिंचाई की जाती है और पैदावार भी 30 से 32 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसी प्रकार गन्ने की फसल एक बार लगाने के बाद चार-पांच वर्ष तक चलती है और पैदावार 400 से 600 क्विंटल तक होती है। राज्यपालश्री आज गुरुकुल कुरुक्षेत्र में गुजरात से पधारे अतिथियों को सम्बोधित कर रहे थे। ज्ञात रहे गुजरात के मुख्य सचिव श्री राजकुमार, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के ज्वाइंट सेकेटरी पी.डी. पलसाना, आत्मा के डायरेक्टर श्रीप्रकाश राबड़ी, डिप्टी डायरेक्टर के.के. पटेल, एच. के. जिन्दल, डी. एन. पटेल सहित 30 जिलों के विकास अधिकारियों का दल गुरुकुल के भ्रमण हेतु आया है। गुरुकुल में पहुंचने पर ओएसडी. टू गर्वनर डाॅ. राजेन्द्र विद्यालंकार, प्रधान राजकुमार गर्ग, निदेशक ब्रिगेडियर प्रवीण कुमार, प्राचार्य सूबे प्रताप और व्यवस्थापक रामनिवास आर्य, कृषि वैज्ञानिक डाॅ. हरिओम ने सभी अतिथियों को फूल- मालाओं से अभिनन्दन किया।

गुरुकुल भ्रमण के दौरान आचार्यश्री ने अतिथियों को बताया कि गुरुकुल कुरुक्षेत्र भारत में एकमात्र ऐसा संस्थान है जिसके 14 छात्रों ने अपनी अभूतपर्वू प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए एनडीए में जाने का सपना साकार किया, केवल एक वर्ष में इतनी बडी सख्या में एनडीए में किसी दूसरे संस्थान के छात्र नहीं गये हैं। इसके अलावा आईआईटी, एनआईटी, पीएमटी में भी गुरुकुल के छात्रों ने परचम लहराया है। हाल ही में हुई नेशनल चैम्पियनशिप में गुरुकुल के छात्रों ने शूटिंग और किक बाॅक्सिंग में अनेक पदक जीते हैं, वहीं मल्लखम्भ और योगासन में तो गुरुकुल के बच्चों के सामने कोई ठहरता ही नहीं।

कृषि फार्म पर आचार्यश्री ने बताया कि पिछले दिनों हुई भारी बरसात में जहां पड़ोसी किसानों के खेत पानी से लबालब भर गये और उनकी पूरी फसल बरबाद हो गई वहीं गुरुकुल के फार्म पर कोई नुकसान नहीं हुआ जिसमें बहुत बडा योगदान केंचुओं का रहा। प्राकृतिक खेती से गुरुकुल के खेतों में लाखों की संख्या में केचुंआ है जो दिन-रात मिट्टी को भूरभुर बनाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। जब बरसात हुई तो खेतों में जितना पानी आया, वह केंचुओं द्वारा बनाये गये असंख्य छिद्रों के माध्यम से धरती मां के पेट में चला गया, मतलब केंचुओं ने गुरुकुल के फार्म पर नेचुरल हार्वेटिंग सिस्टम बना दिया है जिससे भूमि की सेहत सुधरने के साथ-साथ वाटर लेवल ठीक रहता है, अज्ञानता के कारण किसानों ने रासायनिक खेती कर-करके केचुओं जैसे अपने अनेक मित्रजीवों मार दिया जो अब प्राकृतिक खेती के माध्यम से ही पुनः आपके खेतों में आ सकते हैं।

इससे पूर्व प्राकृतिक खेती संवाद में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डाॅ. हरिओम ने अतिथियों को रासायनिक खेती से धरती को होने वाले नुकसान के साथ-साथ प्राकृतिक खेती से धरती, पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग पर प्रभाव का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया। डाॅ. हरिओम ने कहा कि 60 के दशक में एक किलो फर्टिलाइजर से 13 किलो अन्न उत्पन्न होता था मगर आज स्थिति बिल्कुल उल्टी है। अधिक उत्पादन के चक्कर में किसानों ने बडी मात्रा में यूरिया, डीएपी, कीटनाशक डालकर धरती का स्वास्थ्य बिगाड़ दिया है। इसका प्रभाव पर्यावरण पर भी हुआ अब थोड़ी सी बरसात से बाढ़ आ जाती है और यदि बरसात न हो तो सूखा पड़ जाता है। गेहू-धान फसल चक्र के कारण हरियाणा, पंजाब में 4 से 10 फुट पानी प्रतिवर्ष नीचे जा रहा है जो बेहद घातक स्थिति है। धरती का आर्गेनिक कार्बन लगतार गिर रहा है जिससे भूमि बंजर हो रही है। उन्होंने गुरुकुल फार्म के उस हिस्से की रिपोर्ट भी अतिथियों के समक्ष प्रस्तुत की जो रासायनिक खेती के कारण बंजर हो चुका था। फिर इसमें गोमूत्र और जीवामृत डालकर प्राकृतिक खेती की गई जिससे अब फिर से ये खेत हरे-भरे हो गये हैं। डाॅ. हरिओम ने कहा कि प्राकृतिक खेती ही किसान, प्रकृति और पर्यावरण को बचा सकती है, अतः देशभर में अधिक से अधिक किसानों को इसे अपनाना चाहिए।

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