रविवार हो, शुक्ल पक्ष हो, सप्तमी तिथि हो ऐसे दुर्लभ संयोग होने पर काम्यक वन में कामयेश्वर तीर्थ में स्नान करने से पुत्ररत्न व मोक्ष की प्राप्ति होती है

वैद्य पण्डित प्रमोद कौशिक

कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र से लगभग 12 कि.मी. ढांड रोड पर महाभारतकालीन कमौदा नामक ग्राम में काम्यकेश्वर तीर्थ स्थित है। वामन पुराण के कुरुक्षेत्र भूमि में नौ नदियाँ और सात वन थे जो की सरस्वती के तट के साथ मेरु भूमि तक फैला हुआ था। इन सात वनों में आदित वन, व्यास वन, फलकी वन, सूर्य वन, मधु वन, शीत वन के साथ ही काम्यक वन का उल्लेख है।

शृणु सप्त वननिः क्षत्रियस्य मध्यः।
येषां नामानि पुण्यानि सर्वपापहरणी च।
काम्यकं च वनं पुण्यं अदिवनं महत्।
व्यासस्य च वनं पुण्यं फलकीवनमेव च।
तत्र सूर्यवनस्थानं तथा मधुवनं महत्।
पुण्यं शीतवनं नाम सर्वक्लमशनाशनम्।(वामन पुराण 34/1-5)

वामन पुराण के अनुसार काम्यक वन में प्रवेश करने से ही सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
काम्यकं च वनं पुण्यं सर्वपातकनाशनम्।
यस्मिन् प्रविष्टे मात्रास्तु मुक्तो भवति किल्विषैः।।
(वामन पुराण 20/32)

महाभारत के वन पर्व के अनुसार काल में काम्यक वन में ही पाण्डवों की भेट वेद व्यास से हुई थी। इसी तीर्थ पर पांडवों से भगवान श्रीकृष्ण, विदुर व मैत्रेय ऋषि भी मिले थे। द्रौपदी द्वारा सत्यभामा को प्रतिव्रत धर्म की शिक्षा दी गई थी। जनश्रुतियां के अनुसार अश्वत्थामा त्रिकाल दर्शन में से एक काल की यात्रा इसी तीर्थ पर की जाती है। पुराणों के अनुसार काम्यक वन में भगवान सूर्य पूषा नामक विग्रह स्थित हैं। रविवार हो, शुक्ल पक्ष हो, सप्तमी तिथि हो ऐसे दुर्लभ संयोग होने पर काम्यक वन में कामयेश्वर तीर्थ में स्नान करने से पुत्ररत्न व मोक्ष की प्राप्ति होती है। पांडवों द्वारा स्थापित कामयेश्वर महादेव मंदिर व तीर्थ चारों ओर से घने पेड़ों से घिरा हुआ रमणीक स्थल स्वच्छ व निर्मल जल अनेक महत्व लिए यह तीर्थ पांडवों के बनवास का साक्षी रहा है महर्षि पुलस्त्य और महर्षि लोमहर्षण ने वामन पुराण में काम्यकवन तीर्थ की उत्पत्ति का वर्णन करते हुए बताया कि इस तीर्थ की उत्पत्ति महाभारत काल से पूर्व की है। एक बार नैमिषारण्य के निवासी बहुत ज्यादा संख्या में कुरुक्षेत्र की भूमि के अंतर्गत सरस्वती नदी में स्नान करने काम्यवक वन आए थे। वे सरस्वती में स्नान न कर सके। सरस्वती ने उनकी इच्छा पूर्ण करने के लिए साक्षात कुंज रूप में प्रकट होकर दर्शन दिए और पश्चिम-वाहिनी होकर बहने लगीं।

वामन पुराण के अध्याय 2 के 34 वें श्लोक के काम्यकवन तीर्थ प्रसंग में स्पष्ट लिखा है कि रविवार को सूर्य भगवान पूषा नाम से साक्षात रूप से विद्यमान रहते हैं।

द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण अपनी धर्मपत्नी सत्यभामा के साथ पांडवों को सांत्वना देने पहुंचे थे। पांडवों को दुर्वासा ऋषि के श्राप से बचाने के लिए और तीसरी बार जयद्रथ के द्रौपदी हरण के बाद सांत्वना देने के लिए भी भगवान श्रीकृष्ण काम्यकेश्र्वर तीर्थ पर पधारे थे। धर्मपारायण लोग सोमवती अमावस्या, फल्गू तीर्थ के समान शुक्ला सप्तमी का इंतजार करते रहते हैं।

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