अजीत सिंह     

स्वतंत्रता दिवस समारोहपूर्वक खुशियां मनाने और शहीदों को याद करने का दिन होता है। साथ ही यह किसी राष्ट्र या समुदाय की उपलब्धियों और चुनौतियों का लेखा जोखा जुटाने का अवसर भी होता है। राष्ट्र की उपलब्धियों और चुनौतियों के बारे में इन दिनों मीडिया और गोष्ठियों में विस्तृत चर्चा हो रही है। मैं आज अपने गांव के संबंध में इसी हवाले से बातचीत करना चाहता हूं।

मेरा जन्म देश की आज़ादी से चंद महीने पहले हरियाणा में करनाल जिले के एक छोटे से गांव हरसिंहपुरा में हुआ था। गांव यमुना नदी से करीबन चार किलोमीटर की दूरी पर था और हर दूसरे तीसरे साल आने वाली बाढ़ गांव के कच्चे घरों को गिरा देती या नुकसान पहुंचाती। गांव में केवल दो घर पक्के थे। दो अन्य घरों की केवल आगे की दीवार पक्की थी, पीछे का पूरा घर कच्चा होता था।   

आज मेरे गांव में कोई घर कच्चा नहीं है। शहरी तरह के अनेक मकान हैं। पहले किसी भी घर में शौचालय या बाथरूम नहीं थे, आज सभी में हैं। कुछ घरों में बिजली दो अक्टूबर 1969 गांधी जन्मशताब्दी पर आ गई थी। अब सभी घरों में बरसों से बिजली है।   

लगभग सब घरों में कलर टीवी हैं। अनेकों में फ्रिज भी हैं। लगभग सभी घरों में एलपीजी गैस कनेक्शन हैं। ट्रैक्टर, कार, जीप, मोटरसाइकिल और स्मार्टफोन बड़ी संख्या में हैं।    

अब मेरे गांव में बाढ़ नहीं आती। पचास के दशक में यमुना के आस पास के हर गांव से बारी बारी 20 जवान किसान  रोज़ाना अपना तस्ला व कस्सी लेकर यमुना पर बांध बनाने के लिए  जाते थे।  हजारों आदमी काम करते थे। महीनों काम चला।  उन्हें किसी तरह की मजदूरी नहीं मिलती थी। कोई मांगता भी नहीं था। उन्हें बस यमुना का रुख मोड़ कर बाढ़ से बचाव की उम्मीद थी और यह पूरी भी हुई।   

मेरे गांव में कोई स्कूल नहीं था। पास के गांव में मैने पढ़ाई शुरू की। तीसरी कक्षा में पहुंचा तो हमारे गांव में सरकारी प्राइमरी स्कूल खुला जो आज मिडिल स्तर का हो चुका है।  अब गांव में सीनियर सेकेंडरी स्तर का एक केंद्रीय विद्यालय और एक प्राइवेट स्कूल भी काम कर रहे हैं।     

सुबह सवेरे अनेक पीली बसें गांव में आती हैं और बच्चों को महंगे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई के लिए ले जाती हैं। मैं गांव से पहला ग्रेजुएट था। अब बहुत हैं पर उनका स्टैंडर्ड बहुत नीचे है और अधिकतर उपयुक्त रोज़गार  योग्य नहीं हैं। सरकारी नौकरी में गांव के बहुत कम युवा हैं। एक दर्जन से भी कम। पानीपत के आसपास बड़ी संख्या में छोटे बड़े अनेक उद्योग कायम हुए हैं। वहां अधिकतर युवा कम वेतन के बावजूद काम करते हैं।      

खेती की जोत बहुत छोटी हो गई है। केवल खेती से गुजारा नहीं हो सकता। पशुपालन भी करते हैं। पिछले तीन चार साल से विदेशों में जाने का रुझान बना है। गांव से 10 युवा अमरीका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जा चुके हैं। वे पचास लाख रुपए में एक एकड़ ज़मीन बेचते हैं और एजेंटों के जरिए डंकी रूट से अमेरिका पहुंच जाते हैं। घर डॉलर भेजते हैं, परिवार वाले आलीशान मकान बना लेते हैं।   

मेरे गांव में शराब व नशे का चलन नहीं था, अब खूब है। कई परिवार तबाह हो चुके हैं। मेरे एक छोटा भाई और उसके दो बेटों को नशे ने लील लिया। शुक्र है कि घर की महिलाओं ने घर को संभाल लिया।     

मेरे गांव में अनुसूचित जाति के स्थानीय लोग अब कम ही मजदूरी करते हैं। वे मनरेगा की दिहाड़ी जरूर करते हैं।

खेती अब बिहार, यूपी, झारखंड से आए मजदूरों पर ही आधारित है।    

अक्सर मीडिया में खबर आती है कि हरियाणा में देश में सबसे अधिक बेरोजगारी है, 30% से अधिक. इस आंकड़े पर कुछ यकीन नहीं होता। अगर यहां इतनी बेरोजगारी है तो लाखों की तादाद में यहां बाहरी राज्यों के मजदूर किस लिए आते हैं। बिहार यूपी से लाखों की संख्या में मजदूर अन्य राज्यों में रोजगार के लिए जाते हैं। हरियाणा से तो इस तरह का माइग्रेशन नही होता। यहां का स्थानीय युवा मजदूरी नहीं करना चाहता, वो तो सरकारी नौकरी चाहता है जो बड़ी संख्या में नहीं हैं।

 मेरे गांव में  पंचायत चुनाव जो पहले सर्वसम्मति से होते थे अब लाखों रुपए खर्च करते हैं। हर चुनाव में गांव जाति आधार पर बंट जाता है। पंचायत के पास तीस एकड़ जमीन हैं। इसकी सालाना नीलामी से अच्छी आमदनी होती है जो विकास कार्यों पर लगाई जाती है। सरकार ने गांव के सभी बड़े विकास कार्य ऑनलाइन टेंडर के जरिए कराने का फैसला किया है। इसका प्रदेश भर में विरोध हो रहा है। एक सरपंच का कहना था कि अगर उन्हें इस फैसले का पता होता तो वे चुनाव में इतना पैसा न लगाते। विरोधी पार्टी वादा कर रही है कि उसकी सरकार आने पर वह ऑनलाइन टेंडर सिस्टम समाप्त कर देगी।

 गांव की आबादी एक हज़ार से बढ़ कर लगभग दो हज़ार हो चुकी है। अब ठहराव सा आ गया है। वर्तमान पीढ़ी में अधिकतर घरों  में दो से ज्यादा बच्चे नहीं हैं। लड़के ज्यादा पैदा हो रहे हैं, लड़कियां कम। युवाओं की शादी की बड़ी समस्या है। लड़कियां नहीं मिल रही। 

 गांव में जाता हूं तो लोग अक्सर यही कहते हैं कि उनके लड़के की नौकरी लगवा दो, उसकी शादी हो जायेगी। उनके पास अच्छी मेरिट नहीं है। मैं तैयारी करने की बात कहता हूं तो वे कुछ ले दे के सौदा कराने की बात कहने लगते हैं। वे मुझसे निराश होकर ही चले जाते हैं। भाई तो ये भी उलहाना दे देते हैं कि तूने अपने बच्चे भी तो नौकरी लगवाए हैं, हमारे क्यूं नही?

मेरिट में उनका यकीन नहीं है।

 लोग मोदी के प्रशंसक हैं पर इस बार मुख्य मंत्री को हराने की बात करते हैं यह कह कर कि वह लोगों के काम नहीं करता। और काम एक ही है, बच्चों को नौकरी दिलाना। 

 मुख्य मंत्री करनाल से विधायक हैं और मेरा गांव निकटवर्ती विधानसभा क्षेत्र में आता है। सार्वजनिक काम काफी हुए हैं, पर लोगो की मुख्य समस्या तो पर्सनल है, रोजगार की।

मेरे गांव के सेन नाई ओबीसी वर्ग के अति गरीब परिवार के दो भाई निजी कंपनियों में मैनेजर हैं। विदेशों की यात्राएं करते हैं। काश ऐसी और कहानियां होती।

 टमाटर की महंगाई का मेरे गांव में कोई जिक्र नहीं है। कहते हैं ये शहर वालों की प्रोब्लम है। वे कहते हैं इससे किसानों का फायदा ही है। अगले साल वे भी टमाटर लगाने की कह रहे हैं। दूध, अनाज, घी घर का है। घीया तोरी सब्जी भी लगा लेते हैं।

    मेरा गांव बदल रहा है, बड़ी तेज़ी से।

उन्नत बीजों और ट्यूबवेल की सिंचाई के विस्तार से पैदावार कई गुना बढ़ी है पर जल स्तर गिरता जा रहा है।   रेत और मिट्टी की खदाने कृषि के भविष्य पर सवाल खड़े कर रही हैं। रसायनिक खाद और पेस्टीसाइड का उपयोग फूड चेन में आ चुका है। मेरे गांव में डायबिटीज के एक दर्जन से ज्यादा केस हैं। कैंसर के तीन मरीज़ हैं। इनमें एक मेरा अपना भाई है जिसका केस एडवांस स्टेज पर है।

 आज़ादी के बाद गांव बदल गया है। समृद्धि आई है पर साथ ही बीमारी और बेरोजगारी भी बढ़ गई हैं। पहले कुछ न होते हुए भी संतोष था, आज बहुत कुछ होते हुए भी निराशा और असंतोष है। करीबन ऐसी ही स्थिति उत्तर भारत के अधिकतर गांवों की है।

  पचास के दशक में मेरी याद के पहले स्वतंत्रता दिवस पर तत्कालीन सरपंच पंडित रामकिशन तिरंगा लेकर गांव की गलियों से घूमे थे और हम भारत माता की जय के नारे लगाते हुए गांव के भूमिया खेड़ा पर पहुंचे थे जहां झंडे को टांग दिया गया था। हमें कुछ पताशे मिले थे। भूमिया खेड़ा वह स्थान होता है जहां गांव बसाने के समय भूमि पूजन किया गया होता है। यह एक ग्राम देवता की तरह ही होता है। सभी शुभ कार्यों पर भूमिया खेड़े की पूजा की जाती है।

   गांव में अब स्वतंत्रता दिवस तीन बड़े स्कूलों में धूमधाम से मनाया जाता है।

   मेरे सभी ग्रामवासियों को स्वतंत्रता दिवस की बधाई। नए ज़माने की नई चुनौतियों का सामना अपने आप ही करना होगा। अवसरों की जानकारी लें, उनका लाभ उठाएं।  बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाएं, बुरी संगत व आदतों से खुद भी बचें और बच्चों को भी बचाएं।

    आप सभी ग्रामवासियों के लिए स्वतंत्रता दिवस शुभ हो।

... लेखक अजीत सिंह वर्तमान में हिसार में रहते हैं ।  वह 2006 में दूरदर्शन केंद्र हिसार के समाचार निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए ।  वह अब एक स्वतंत्र पत्रकार हैं ।

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