पूर्व राज्यपाल मलिक और किसान नेता राकेश टिकैत ने बताएं आंदोलन के गुर
1810 एकड़ जमीन को लेकर  पीङित किसानो  ने किया आमरण  अनशन 
एचएसआईडीसी और मानेसर तहसील में ताला लगा किसानों ने जाहिर किए इरादे
नवीन जयहिंद सहित आप हरियाणा के अध्यक्ष डॉ सुशील गुप्ता भी किसानों के साथ 
किसानों की एक ही मांग है कि सरकार लिखित में दे आश्वासन   

फतह सिंह उजाला                                       

मानेसर / पटौदी । दिल्ली जयपुर नेशनल हाईवे के किनारे औद्योगिक क्षेत्र , नगर निगम तथा सबडिवीजन मानेसर क्षेत्र के किसानों के लिए दुविधा बनी हुई है कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर भरोसा करें या फिर अफसरशाही पर अथवा सरकार पर भरोसा किया जाए ? शायद किसानों को इस मामले में बहुत ही कड़वा अनुभव हुआ है ।

  यही कारण रहा शायद 1 वर्ष तक अनिश्चितकालीन अनशन के बाद मानेसर क्षेत्र के कासन और आसपास के गांवों के 1810 अधिग्रहित जमीन के पीड़ित किसान अब  आमरण अनशन पर बैठने के लिए मजबूर हो गए । अहीरवाल क्षेत्र जिसकी पहचान सरसों , गेहूं और बाजरे की फसल के लिए रही है । अब उसी अहीरवाल की पहचान औद्योगिक क्षेत्र मानेसर में आंदोलन की पाठशाला के रूप में तेजी से बनती दिखाई दे रही है । इस मैराथन आंदोलन और धरने प्रदर्शन की दूसरी कड़ी में पूर्व राज्यपाल सतपाल मलिक , किसान नेता राकेश टिकैत , नवीन जयहिंद आम आदमी पार्टी के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सुशील गुप्ता, किसान नेता गुरनाम सिंह के अलावा और भी बड़े किसान नेताओं का समर्थन आंदोलनकारी किसानों को मिलने से इस आंदोलन को ताकत सहित धार मिला निश्चित है  ।   

 बीते दिन कासन के अनिश्चितकालीन आमरण अनशन पर बैठे किसानों व किसानों की मांग के समर्थन में पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक , किसान नेता राकेश टिकैत , जाटलैंड के नेता नवीन जयहिंद, आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सुशील गुप्ता अपना-अपना समर्थन देने के साथ किसानों की मांग शासन प्रशासन और सरकार तक पहुंचाने के लिए मानेसर पहुंचे । यहां सबसे अहम बात यह रही कि किसान नेता राकेश टिकैत और पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने खुले मंच से किसानों को बताया कि किस प्रकार से अपने आंदोलन को मजबूत बनाया जाए । पूर्व राज्यपाल मलिक ने तो यहां तक कहा कि भाजपा सरकार केंद्र में हो या हरियाणा में हो , यह सरकार घमंडी सरकार है । 1 वर्ष तक किसान 3 कृषि कानूनों के विरोध में धरने पर बैठे रहे,  इस दौरान करीब 700 किसानों ने अपना बलिदान दे दिया । लेकिन जिद्दी और हठीली भाजपा सरकार ने देश के अन्नदाता किसान के आंदोलन को बहुत हल्के में लिया । आखिरकार किसानों की बात पीएम मोदी और केंद्र सरकार को मानने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । उन्होंने बताया किसान आंदोलन के संदर्भ में कई बार पीएम मोदी से बात की गई । राज्यपाल पद से त्यागपत्र का पत्र अपनी जेब में रख कर के पीएम मोदी से मिलकर किसानों की मांगों और आंदोलन के संदर्भ में कई बार चर्चा की गई । उन्होंने कहा यह जिद्दी और हठीली सरकार केवल और केवल पूंजीपतियों की हितैषी सरकार ही है ।

 इसी बीच में अमूमन शांत रहने वाले अहीरवाल क्षेत्र के औद्योगिक इलाके मानेसर के कासन गांव के आमरण अनशन पर बैठे किसानों व समर्थक किसानों ने शासन-प्रशासन तथा सरकार को अपनी एकता और ताकत का भी परिचय कराते हुए एचएसआईडीसी सहित मानेसर तहसील में भी ताला लगाने का काम कर दिखाया । हालांकि सरकारी कार्य में बाधा डालने के आरोप में किसानों पर मामला भी दर्ज किया गया । इसी कड़ी में किसान नेता राकेश टिकैत ने भी आंदोलनकारी किसानों का हौसला बढ़ाते हुए कहा कि हरियाणा सरकार की नीयत मानेसर में कासन गांव की जमीन को लेकर साफ नहीं है । सही मायने में तो आंदोलन उस दिन आरंभ होगा जब सरकार इस जमीन पर अपना कब्जा करेगी अथवा लेगी । किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा मानेसर और कासन के किसानों के साथ पूरे देश का किसान और विभिन्न संगठन साथ खड़े हैं । उन्होंने कहा देशभर के किसानों की मांग है एमएसपी लागू कर दिया जाए , लेकिन भाजपा सरकार अपनी आंखें बंद किए हुए मोदी सरकार को किसान और कमेरे वर्ग से कुछ लेना देना नहीं है । यह सरकार पूरी तरह से व्यापारियों और पूंजी पतियों की सरकार है । राकेश टिकैत ने आंदोलनकारी किसानों का आह्वान करते हुए कहा कि जब हरियाणा सरकार अट्ठारह सौ 10 एकड़ जमीन पर कब्जा करना शुरू करें तो किसान भाई अपने-अपने ट्रैक्टर से सरकार के द्वारा किए गए कब्जे को धराशाई कर दें।   

  इसी कड़ी में आंदोलनकारी किसानों का साफ-साफ कहना है कि 9 जुलाई तक सरकार ने अट्ठारह सौ 10 एकड़ के किसानों की मांगों और मुआवजे के संदर्भ में लिखित आश्वासन नहीं दिया , तो फिर 9 जुलाई को एक बार फिर से मानेसर में किसान महापंचायत का आयोजन किया जाएगा । वही बहुत से किसानों ने यह भी कहा है कि ऐसी हठीली और जिद्दी सरकार तथा सरकार में हिस्सेदार जनप्रतिनिधियों को 2024 में किसानों की अनदेखी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा । कुल मिलाकर अब आंदोलनकारी किसानों के द्वारा गेंद पूरी तरह से सरकार के पाले में सरकाई जा चुकी है । अब देखना यह है कि 9 जुलाई तक आंदोलनकारी किसानों को क्या सरकार और शासन प्रशासन की तरफ से लिखित में आश्वासन मिलता है या फिर इसी प्रकार से किसान आंदोलन करते हुए आमरण अनशन पर एक बार फिर से बैठने के लिए मजबूर होंगे  ।                                                                                                       

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