हरियाणा की माटी से ………. स्कूल से जीवन की ओर

-कमलेश भारतीय

आज आपके बीच एक शिक्षक के अनुभव बांटने के लिये आया हूं । आज आप लोग मुझे बेशक पत्रकार के रूप में थोड़ा बहुत जानते हो लेकिन ज़िंदगी के पहले सत्रह वर्ष शिक्षक रहा और आज यह कह सकता हूं कि शिक्षक होने पर गर्व है । सबसे पहले यही कहना चाहता हूं कि शिक्षक होने पर गर्व कीजिये न कि शर्म महसूस कीजिये । तभी आप बच्चों को अच्छा ज्ञान दे पायेंगे । ज्यादातर शिक्षक यह उदासी बांटते हैं कि मैं शिक्षक नहीं बनना चाहता था लेकिन मेरी मन की नहीं हुई तो मां बाप ने एजुकेशन में बीएड कोर्स में डाल दिया तो क्या करें जिंदगी तो जीनी है न ! नहीं ! बिल्कुल नहीं ! यह उदासीन रवैया नहीं चलेगा ! सबसे पहले मन ही मन यह स्वीकार कीजिये कि मैं शिक्षक हूं और मुझे शिक्षक होने पर गर्व है ! मैं देश निर्माण का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण काम कर रहा हूं ! इसलिये मैं खुश हूं और उदासी कभी मुझे घेर नहीं सकती ! गर्व से कहो कि मैं शिक्षक हूं ! गर्व से कहो कि हम शिक्षक हैं ! मेरा पहला प्यार शिक्षण ही था और आज भी उसी प्यार के नाते आपके सामने खड़ा हूं !

अब आइये शिक्षक की महत्ता को जान लीजिये ! संत कबीर का दोहा सबने पढ़ा या सुना जरूर होगा ! आजकल तो फेसबुक पर भी गुरु पूर्णिमा वाले दिन खूब वायरल होता है

गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागूं पांयें
बलिहारी गुरु आपणौ जिन गोविंद दियो मिलाये !

यह कितनी बड़ी बात है कि गुरु का दर्जा भगवान् से भी ऊपर बताया है संत कबीर ने । इतने बड़े हैं आप ! बच्चों के लिये भगवान् से कुछ कम नहीं ! यही नहीं शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है ? जानते हैं न आप सब ! हमारे राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन् के जन्मदिवस पर ! आप देखिये कि शिक्षक देश के सर्वोच्च पद पर विराजमान हुए तो फिर शिक्षक कहलाने में संकोच कैसा ?

दूसरी बात समझ लीजिये कि सबसे पहले शिक्षक कौन होते हैं ? बच्चे के मां बाप , उसके परिवार के सदस्य ! चार साल तक वह परिवार के स्कूल में पढ़ता और सीखता है ! आजकल तो चार साल भी नहीं मिलते । तीन साल के बच्चे को ही अभिभावक आपके सामने लाकर खड़ा कर देते हैं ! फिर भी मां बाप के बाद बच्चा आपके ही हवाले कर दिया जाता है । अब आप एक अच्छे कुम्हार की तरह की भूमिका मे आ जाते हैं । क्या बनाना है , कैसे बनाना है और कैसे कैसे तरीके अपनाने हैं ! बेशक बीएड का कोर्स आपने कर रखा है लेकिन बच्चे को व्यावहारिक तौर पर समझने की जरूरत होती है ।

मैं जब छोटा था तब हमारी दादी ने घर में एक तोता पाल रखा था । वह आज याद आ रहा है क्योकि जैसे ही मैं स्कूल से आता वह शोर मचा देता-बीजी ! काका जी आ गये !

फिर मुझसे पूछता -काका जी ! रोटी खानी है ? । वाह ! एक तोता भी जानता था कि मेरी उस समय की जरूरत क्या है ! हम तो इंसान हैं और हमें मालूम होना चाहिये कि हमारे छात्रों की जरूरत क्या है ! निरी किताबी पढ़ाई से कुछ नहीं होगा ! आप पर बच्चे के चरित्र निर्माण की भी , सामाजिक व्यवहार की भी जिम्मेदारी है । मैं जब प्रिंसिपल बन गया तब सुबह की प्रार्थना सभा के बाद कुछ देर उन्हें प्रतिदिन संबोधित करता था -देखो ! हम सारे शिक्षक आप सबको शायद डाॅक्टर या इंजीनियर या वैज्ञानिक या फिर वकील तो न बना सकेंगे लेकिन एक वादा है और एक कोशिश है कि आपको देश के सबसे अच्छे नागरिक जरूर बनायेंगे क्योंकि हमारी असली जिम्मेदारी यही है ! आपको देश के अच्छे नागरिक बनाना ! तभी तो स्वामी अग्निवेश ने कहा था कि मेरी मां मेरा कान पकड़कर स्कूल यह कहती हुई लेकिन गयी कि चल तुझे बंदा बनवाऊंगी लेकिन अफसोस बीस साल पढाई करने के बाद भी मैं बंदा न बन पाया ! यह है हमारी शिक्षा ?

असल मे ऐसे शिक्षक बनें कि जिस दिन किसी कारणवश आप स्कूल न आ पायें तो बच्चे आपको मिस करें ! याद करें ! आपके न आने से उदास हो जायें ! मैंने ऐसा ही शिक्षक बनने की कोशिश जरूर की तभी तो मेरे छात्र कहते थे -हमको हो गया है प्यार मिस्टर इंडिया से ! बच्चे आपसे प्यार करने लगें ! आपको मिस करने लगे तभी आप अच्छे शिक्षक हैं ! यदि बच्चा आपके व्यवहार से डर महसूस करे और दुआ करे कि आप स्कूल आयें ही नहीं तो आप सफल शिक्षक कैसे माने जायें ? बीएड की शिक्षा के दौरान मनोविज्ञान के पेपर में यह बात मैं आज भी नहीं भूला कि यदि किसी विषय का अध्यापक बच्चे को बहुत बुरी तरह डांटता फटकारता ही रहेगा तो बच्चा न केवल उस शिक्षक से बल्कि उस विषय से भी नफरत करने लगेगा । शिक्षक की नफरत विषय की नफरत में बदल जायेगी ! यह ध्यान रखियेगा ! आप कहीं अनजाने में ही बच्चे को एक विषय से सदा के लिये दूर कर देंगे ! बहुत संवेदनशील होते हैं बच्चे ! बहुत कोमल ! जैसे कहते हैं न कि तारे जमीन पर ! इन तारों की चमक आपने बढ़ानी है न कि इनकी चमक धूमिल करनी है ! ये तारे आपके हाथों से सितारों में बदलने चाहियें ! ये सितारे आपको जीवन भर याद रखेंगे ! यही शिक्षक की पूंजी है ! हमारे स्कूल को जिले के सभी स्कूलों में श्रेष्ठ स्कूल का पुरस्कार जिला प्रशासन की ओर से मिला था । यह उपलब्धि आज भी रोमांचित कर देती है ।

मेरी बड़ी बेटी रश्मि जब छोटी कक्षा में थी तब मैंने गौर किया कि उसका अंग्रेजी का उच्चारण बहुत ही बढ़िया होने लगा तो मैंने पूछा बेटी ! कौन है आपकी अंग्रेजी की मैम? ।

-सुनंदा है पापा !

तो मैं स्कूल गया और उस सुनंदा से मिलकर उसका धन्यवाद किया कि कितना अच्छा पढ़ाती हो ! वह बहुत बड़ी उम्र की नहीं थी । फिर उसकी शादी पर भी हम लोग गये । मेरी बेटी आकाशवाणी , हिसार में केजुअल अनाउंसर चुनी गयी और उसने तीन चार साल काम किया तो सुनंदा बहुत याद आई ! इस तरह आप अनजाने ही छात्रों को बहुत कुछ दे देते हैं !

गुरु ब्रह्म यूं ही नहीं माने जाते !

आप सोचो कि मैं साहित्य कैसे पढ़ने लगा ? हमारे प्रिंसिपल थे दत्ता साहब ! वे सुबह की प्रार्थना सभा के बाद किसी न किसी पुस्तक के बारे में थोड़ा सा बता कर फिर अधूरा छोड़कर रुक जाते और कहते पूरी किताब स्कूल की लाईब्रेरी में है । आप वहां से लेकर पढ़ लेना ! इस तरह मैंने पहली बार गुलीवर की यात्रायें पुस्तक पढ़ी और फिर पुस्तकों से मेरी दोस्ती हो गयी ! आप भी पुस्तकों से दोस्ती कीजिये और अपने छात्रों को भी इस जादुई दुनिया में ले जाइये ! इसी तरह हमारे स्कूल में उस जमाने में भी अर्द्धवार्षिक पत्रिका प्रकाशित होती थी -शिक्षा दर्पण ! उसमें हमारे कुछ सहपाठी लिखते थे पर आप हैरान होंगे कि मुझे लिखना नहीं आता था । मैं अपने सहपाठियों की रचनायें पढ़ता जरूर था और सोचता था कि कैसे लिख लेते हैं ये ! आज वही सहपाठी हैरान हैं कि हम तो स्कूल से निकलते ही लिखने की कला भूल गये और यह आज भी लिख रहा है !

शायद आज के लिये काफी है ! फिर कभी आऊंगा तो और बातें करेंगे ! कुछ नयी बातें !
अभी आपसे मिलकर जी नहीं भरा
रखियो न हिसाब में मुलाकात आज की !
-पूर्व उपाध्यक्ष,हरियाणा ग्रंथ अकादमी । 9416047075

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