-जांच के दौरान नहीं मिले दिव्यांगता से जुड़े मूल दस्तावेज, आरटीआई में हुआ था खुलासा
-दिव्यांगता दर्शाने के लिए लगाए गए थे दो अलग-अलग दिव्यांगता प्रमाण पत्र

भिवानी, 01 जून। राज्य आयुक्त दिव्यांगजन पंचकूला राजकुमार मक्कड़ ने शिक्षा विभाग में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र मामले में सेकेंडरी शिक्षा विभाग के निदेशक को गलत लाभ लेने वाले प्रधानाचार्य युद्धवीर सिंह के खिलाफ तीन माह में कार्रवाई किए जाने की सिफारिश भेजी है। जांच के दौरान भी दिव्यांगता से जुड़े दस्तावेज नहीं मिले थे वहीं आरटीआई में फर्जी दिव्यांग प्रमाण पत्र के सहारे एसएस मास्टर की नौकरी और फिर प्रधानाचार्य की सीधी भर्ती मे लाभ लेने के लिए अलग-अलग दिव्यांगता प्रमाण पत्र लगाए जाने का खुलासा हुआ था।

राज्य आयुक्त दिव्यांगजन पंचकूला राजकुमार मक्कड़ ने स्वास्थ्य शिक्षा सहयोग संगठन के प्रदेश अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार की ओर से की गई शिकायत पर ये फैसला दिया है। संगठन की तरफ से राज्य आयुक्त दिव्यांगजन को दी गई शिकायत में आरोप लगाया कि युद्धवीर सिंह एसएस मास्टर 2003 में शिक्षा विभाग में नौकरी लगते समय मुक(बोलने में दिक्कत) दिव्यांग दिखाया था। जबकि शिक्षा विभाग के रिकार्ड में कोई प्रमाण पत्र नहीं मिला। इसके बाद दिव्यांग कोटे से प्रधानाचार्य के पद पर भर्ती शुरू हुई तो ऑर्थो(पोलियो) का फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर प्रधानाचार्य के पद पर दिव्यांग कोटे का गलत तरीके से लाभ ले लिया।

संगठन अध्यक्ष बृजपाल सिंह परमार ने जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मांगी गई जानकारी में फर्जी प्रमाण पत्र का खुलासा हुआ। आरटीआई से मिले रिकार्ड के आधार पर बृजपाल सिंह परमार ने मामले की शिकायत राज्य आयुक्त दिव्यांगजन पंचकूला और प्रतिनिधि दिव्यांग समाज हरियाणा के अध्यक्ष एडवोकेट संजय अग्रवाल को दी। शिकायत पर कड़ा संज्ञान लेते हुए राज्य दिव्यांगजन आयुक्त न्यायालय ने तीन पक्षों को नोटिस जारी किया। जिसमें उच्च शिक्षा हरियाणा के निदेशक, जिला शिक्षा अधिकारी भिवानी व प्राचार्य युद्धवीर को पक्षकार बना कर शामिल किया।

राज्य आयुक्त दिव्यांगजन न्यायायलय ने जांच में पाया कि युद्धवीर का मुक दिव्यांगता का प्रमाण पत्र रिकार्ड में कहीं नहीं मिला। जिसके आधार पर एसएस मास्टर दिव्यांग कोटे से लगे थे। इसके बाद ऑर्थो का दिव्यांग सर्टिफिकेट न्यायालय को रिकार्ड में मूल प्रमाण पत्र नहीं मिला। युद्धवीर द्वारा अपने बयान में बताया गया कि वो बचपन से ही पोलियो ग्रस्त है। जबकि उच्च स्तरीय विभागीय जांच में पाया था कि 2005 में पैर में गोली लगने से दिव्यांग हुआ था। उसके बयान और जांच रिपोर्ट विरोधाभाष मिला है। रिकार्ड से पता चला कि युद्धवीर ने दिव्यांग सर्टिफिकेट नए नियमों के आधार पर बनवाने के लिए के लिए एक आवेदन दिया था जो खारिज हो चुका है। न्यायालय ने पाया कि युद्धवीर प्राचार्य 2003 से दिव्यांगों के बैकलॉग का नाजायज फायदा उठा रहाहै। इस पर न्यायालय ने अपने आदेश में दिव्यांग अधिनियम की धारा 80 बी का उपयोग करते हुए शिक्षा निदेशक सेकेंडरी शिक्षा को तीन माह में कार्रवाई कर रिपोर्ट न्यायालय में देने की सिफारिश की है।

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